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सेल्फ़ी विद अ मैन हू हेज नो नेम एंड फेस,यह बेख़ुदी बहुत रेअर है

वीथिका            Mar 12, 2022


नवीन रंगियाल।
कोई क्या बताएं कि हम क्या हैं, कैसे हैं, क्यूं हैं।- कोई बताएं कि हम क्या बताएं,

जिंदगी के आसपास जितनी भी मटेरियलिस्टिक चीज़ें घट रहीं, हो रहीं, आ रहीं और जा रही हैं। इनमें से कुछ भी नहीं बचता।

धीमे-धीमे सबकुछ घटता जाता है, खत्म होता जाता है।- या तो उम्र आदमी को खा जाती है और वो मर जाता है- या फिर कभी-कभी जीवित रहते वो चेतना के एक स्तर को अचीव करता है। -और फिर वहां सिर्फ वही होता है- दूसरा न कोई।

यह आध्यात्म का कोई स्तर हो शायद। जहां वो स्वयं और शेष दुनिया एक ही हो जाती होगी। अद्वेत, दूसरा न कोई।

लेकिन जीवन का एक तीसरा स्तर भी है- बेख़ुदी। यह बेख़ुदी बहुत रेअर है। हासिल हो जाए तो अचीवमेंट है। क्या कमाल होता होगा बेख़ुद हो जाना!

होश हासिल कर लेना आध्यात्मिक उपलब्धि है, इस अचीवमेंट को मोर अ लेस बयां भी किया जा सकता है, लेकिन बेहोशी और बेख़ुदी का क्या ब्यौरा। उसे कैसे बयां करें?

कोई क्या बतलाएं कि हम क्या हैं, कैसे हैं और क्यों हैं? कोई बताएं कि हम किसी को क्या बताएं?

कभी-कभी मिलते हैं ऐसे बेख़ुद लोग। रात की एक बजकर 37 मिनट हो रहे हैं। अपनी एक इंडिविजुअल अवस्था को लेकर मैं बहुत खिन्न हूं। मंदिर नहीं जाना चाहता हूं लेकिन चला जाता हूँ। मंदिर पहुंचते ही वो कहता है बहुत भूख लगी है, मैने कहा इतनी रात को सभी होटल भी बंद हो गए हैं। वो दो- तीन सौ रुपए की चिल्लर दिखाकर कहता है, क्या करूँ पैसे हैं लेकिन भूख के लिए पैसे खाऊं क्या? मैं उससे मज़ाक करने लगा, अच्छा नाम तो बता दे अपना? वो बोला मरे हुए आदमी का नाम नहीं होता।

'मरे हुए आदमी का नाम नहीं होता' यह सुनते ही मेरा तार उससे जुड़ गया।

आधी रात के अंधेरे में हनुमान मंदिर के सामने एक खानाबदोश आदमी की बेख़ुदी को मैं महसूस करने लगता हूं। इस आदमी की कोई शक्ल नहीं, कोई अतीत नहीं। कभी कोई एक नाम था, वो भी उसे पसंद नहीं था, इसलिए वो नाम छोड़ दिया। अ मैन विदाउट फ़ूड एंड डेस्टिट्यूड।
बहुत ही बेलिहाज़ आदमी। बे-लाग और बेलौस जिंदगी। बोला, भूख लगी है खाना खिलाना हो तो खिला दे। नहीं तो जा, मैं कहता हूं- ठीक है घर से लेकर आता हूँ।

करीब दस-पन्द्रह मिनट बाद खाना खाते हुए मैंने फिर पूछा, अच्छा नाम तो बता दो?
वो कहता है- मेरा एक नाम था, लेकिन मुझे पसंद नहीं था। इसलिए मैंने अपना नाम बदलकर माँ रख लिया और हाथ पर गुदवा भी लिया। माँ।

फिर कहता है, देखो दुनिया में कुुुछ भी बुरा नहीं है, सब अच्छा है, चारों तरफ अच्छा है। देखो, सड़क कितनी साफ है। सामने हनुमानजी महाराज का मंदिर है। यहाँ मेरे लिए धूप बत्ती की खुशबू आ रही है।

दीये जल रहे हैं, पेड़ हैं पत्तियां हैं और पूजा की दुकानों पर फूलों की मालाएं लटक रही हैं मेरे लिए। सबकुछ तो अच्छा है दुनिया में। अंधेरा भी कितना सुंदर है, जो मेरे आसपास पसरा है।
मेरी तकलीफ़ उसे नहीं पता है, लेकिन जब वो कहता है बीड़ी पी लो सब ठीक हो जाएगा, तो

मैं यह मान लेता हूँ कि उसे मेरा दरद पता होगा, हालांकि यह सच नहीं था, कोई किसी का दरद नहीं जानता। वो मेरा नहीं, मैं उसका नहीं।

बगैर शक्ल और नाम का यह आदमी। उसके पास कुछ नहीं है, एक दम मुफ़लिस है। ग़ुरबत का जीता जागता खंडहर। लेकिन उसने जो बेख़ुदी हासिल की वो हम में से किसी के पास नहीं।
सेल्फ़ी विद अ मैन हू हेज नो नेम एंड फेस,

 



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