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बाल साहित्य को सभी विधाओं में समृद्ध बनाने की जरूरत

वीथिका            Dec 11, 2025


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मंगलवार को आयोजित हिंदी लेखिका संघ की बाल साहित्य कार्यशाला में देशभर से आए साहित्यकारों ने कहा कि आज बाल साहित्य को कहानी, कविता और नाटक से आगे बढ़ाकर सभी विधाओं में विकसित करने की आवश्यकता है। वक्ताओं ने बच्चों की कल्पनाशीलता, संवेदना, भाषा कौशल और बौद्धिक विकास को केन्द्र में रखकर नए और प्रासंगिक लेखन की आवश्यकता पर जोर दिया।

दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में मंगलवार को आयोजित हिंदी लेखिका संघ की बाल साहित्य कार्यशाला में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक और वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. विकास दवे ने कहा कि हिंदी बाल साहित्य की परंपरा अत्यंत समृद्ध है, परंतु यह मुख्यतः कविता, कहानी और नाटक तक सीमित है। बाल मनोविज्ञान, विज्ञान-लेखन, यात्रा-वृत्तांत, संस्मरण, जीवनी, हास्य-विनोद और अन्य विधाओं में भी रचनात्मक कार्य की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि बाल साहित्यकार को अपनी कल्पनाओं की खिड़की पूरी तरह खोलनी चाहिए, और लेखन केवल सामान्य बच्चों तक सीमित न होकर मूक-बधिर व दिव्यांग बच्चों के लिए भी होना चाहिए।

बाल साहित्य को आनंददायक बनाना सबसे महत्वपूर्ण है,”

संस्था अध्यक्ष डॉ. साधना गंगराड़े ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि बाल साहित्य एक बीज की तरह है, जिसे यदि बाल-मन की गीली मिट्टी में बोया जाए तो भविष्य एक सुंदर बगिया बनकर विकसित होता है। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य बच्चे के व्यक्तित्व, भाषा, विचार और मनोवैज्ञानिक विकास की पहली पाठशाला है। इसलिए लेखिकाओं का दायित्व है कि वे बाल मन को सही दिशा देने वाला संवेदनशील, मूल्यनिष्ठ और आनंददायक साहित्य रचें।

प्रथम सत्र में जबलपुर की बाल साहित्यकार डॉ. मंजरी शुक्ला ने कहा कि कहानियाँ बच्चे को कल्पना लोक की यात्रा कराती हैं, जहाँ परियाँ, जादूगर, बोलने वाले पशु-पक्षी और उड़ने वाले ड्रैगन उसकी संवेदनाओं को विकसित करते हैं। उन्होंने कहा कि बाल साहित्यकार को बच्चों के मानसिक स्तर तक उतरकर लिखना जरूरी है, क्योंकि बच्चा प्रेम और संवाद को बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनाता है।

बाल साहित्यकार सुशील शुक्ला ने कहा कि भारत में अच्छा बाल साहित्य लिखा गया है, लेकिन मराठी, बांग्ला और मलयालम जैसी भाषाओं में इस दिशा में अत्यंत उल्लेखनीय काम हुआ है।

उन्होंने सुधा चौहान, उपेंद्रनाथ अश्क और विभूति भौमिक की रचनाओं का संदर्भ देते हुए कहा कि बच्चों को समझने के लिए उनके साथ रहना और उनके परिवेश को जानना आवश्यक है। “बच्चों को बताने के लिए बच्चों का अपना संसार ही पर्याप्त है,” उन्होंने कहा ।श्री महेश सक्सेना ने कहा कि बाल साहित्य से लोरी लगभग गायब हो चुकी है, जबकि यह माँ और शिशु के बीच सबसे कोमल संवाद है, जो बच्चे के मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ता है ।

डॉ. रामवल्लभ आचार्य ने कहा कि पंचतंत्र, बेताल पच्चीसी, अकबर–बीरबल और अमीर खुसरो की कहानियाँ हमारी प्रतीक परंपरा को मजबूत बनाती हैं। उन्होंने कहा, “जिस साहित्य में बच्चों के मन की बात हो, वही वास्तविक बाल साहित्य है।”

उन्होंने कहा कि कहानियों में पहेलियाँ बच्चों के बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती

प्रथम सत्र का संचालन सुश्री सुनीता यादव और द्वितीय सत्र का संचालन कमल चंद्रा ने किया।स्वस्ति वाचन डॉ. रंजना शर्मा, तथा आभार प्रदर्शन डॉ. नीलिमा रंजन ने किया।

कार्यशाला में बड़ी संख्या में बाल साहित्यकार एवं लेखिकाएँ उपस्थित रहीं।

 


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