श्याम त्यागी।
भगत सिंह और गांधी दोनों के रास्ते अलग थे लेकिन इरादा सिर्फ एक था, भारत की आज़ादी। देशवासियों पर जिस तरह का शोषण हो रहा था उस शोषण से लोगों को मुक्ति दिलाना। आज़ादी के लिये गांधी के योगदान को नकारने वाले लोग निहायत ही बेवकूफी वाली बात करते हैं।
हां इतना भी जरूर है कि सिर्फ 'बिना खड़क और ढाल' के भी आज़ादी नहीं मिली। अमर क्रांतिकारियों के 'पूरी आजादी' वाले रास्ते ने अंग्रेजों को देश छोड़ने पर तो मजबूर किया ही। लेकिन गांधी को लेकर आज भी बहुत बड़ा तबका नाराज़ है और शायद दशकों तक नाराज़ रहेगा।
भगत सिंह की फांसी के मामले को देखता हूं तो मुझे भी गांधी से 'परेशानी' होने लगती है। क्योंकि गांधी सिर्फ एक 'समझौते' को लेकर अंग्रेजों को दबा नहीं पाए। गांधी को वो समझौता 'देशहित' में लगा।
मुझे लगता है जब देश के नौजवान 'बेटे' फांसी के फंदे पर झूलने वाले हों तो देशहित का कोई भी समझौता उनकी जान बचाने के लिए तोड़ा जा सकता था। अपनी शर्त पर अड़ा और लड़ा जा सकता था। लेकिन उस वक्त गांधी के मन में उन नौजवानों के लिए वो जगह नहीं रही होगी। गांधी के लिए वो भटके हुए नौजवान थे।
क्योंकि गांधी को अपना रास्ता ही सर्वोपरि और सर्वोत्तम लगता था। जब्कि भगत सिंह का रास्ता बिल्कुल गलत नहीं था। उन क्रांतिकारी नौजवानों को पहचाने में गांधी से बड़ी गलती हुई थी। गांधी-इरविन समझौते से जो अधिकार देश के लोगों को मिलने वाले थे वो तो बाद में भी मिल सकते थे।
क्योंकि अंग्रेजों को तो जाना ही पड़ता। तब पूरा देश अपना होता। देश के अधिकार अपने होते। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव भी होते।
लोगों ने जब इस बारे में गांधी से सवाल करने शुरू किए तो उन्होंने कहा भी "आप कहेंगे कि मुझे एक बात और करनी चाहिए थी— सजा को घटाने के लिए समझौते में एक शर्त रखनी चाहिए थी। ऐसा नहीं हो सकता था। और समझौता वापस ले लेने की धमकी को तो विश्वासघात कहा जाता।
कार्यसमिति इस बात में मेरे साथ थी कि सजा को घटाने की शर्त समझौते की शर्त नहीं हो सकती थी। इसलिए मैं इसकी चर्चा तो समझौते की बातों से अलग ही कर सकता था। मैंने उदारता की आशा की थी। मेरी वह आशा सफल होने वाली नहीं थी, पर इस कारण समझौता तो कभी नहीं तोड़ा जा सकता"
अंग्रेजों की सोच ये थी कि अगर तीनों की फांसी रोक दी जाती है तो भारत के लोग अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए ज्यादा निडर हो जाते। फिर वो किसी से नहीं डरते।
इसलिए वो देशवासियों को ये संदेश देना चाहते थे कि अगर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की कोशिश करोगे तो अंजाम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसा ही होगा।
खैर , अब वाद विवाद की स्थिति को खत्म करने के प्रयास होने चाहिए, आज़ादी के लिए जिसने भी संघर्ष किया उसका सम्मान होना चाहिए। योगदान तो सभी का था। किसी का कम, किसी का ज्यादा।
Comments