लाउडस्पीकर समाज का सच्चा नायक है

वीथिका            Apr 17, 2022


अमन आकाश।
भारतीय राजनीति, भारतीय संस्कृति, भारतीय धर्म की आवाज़ को अगर किसी ने मुखर किया है तो वो है ‘लाउडस्पीकर’. लाउडस्पीकर के बिना राजनीति, संस्कृति और धर्म की कल्पना भी नहीं कर पाता.

वक़्त आ गया है कि मास कम्युनिकेशन अपने सिलेबस में एक चैप्टर पूर्णतया लाउडस्पीकर पर ही केन्द्रित करे, लाउडस्पीकर के जनसंचार पर कोई मॉडल बने, भारतीय जनमानस के राजनीतिक, सांस्कृतिक व धार्मिक तुष्टि में लाउडस्पीकर का प्रभाव विषय पर शोधार्थी शोध करें.

इसके तमाम योगदानों को देखते हुए बरस में एक नियत तिथि को ‘नेशनल लाउडस्पीकर डे’ मनाया जाए.

पर पता नहीं इस ओर किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा. जो सबकी आवाज़ उठाता है उसकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं. भारतीय समाज की अपने नायकों को भुला देने की पुरानी परिपाटी रही है.

लाउडस्पीकर समाज का सच्चा नायक है. यह आपको अपनी बात सुनने के लिए मजबूर करता है.

आप अखबार को बिना पढ़े फेंक सकते हैं, रेडियो-टीवी को अपनी मर्जी से बंद कर सकते हैं, सोशल मीडिया को अपने तरीके से हैंडल कर सकते हैं गोया आपके गाँव-महल्ले में लाउडस्पीकर बज रहा हो तो आपको सुनना ही पड़ेगा.

आपका मूड कैसा भी हो, आपकी परिस्थिति कैसी भी हो आप उसको चुप नहीं करवा सकते. फ़र्ज़ कीजिए आप दो दिन से कब्जियत से लहालोट हैं, शरीर की सारी ताकत झोंक चुके फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली है और अचानक से आपका पडोसी की छत पर टंगा लाउडस्पीकर चिग्घाड़ दे ‘धीरे-धीरे से मेरी ज़िन्दगी में आना.’

बताइए आपकी आत्मा को ठेस पहुंचेगा कि नहीं.! बीमारी से संबंधित अंग जलेगा कि नहीं.! लेकिन आपको सुनना पड़ेगा. मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज के सांस्कृतिक, धार्मिक हितों की रक्षा करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है.

मेरे घर के आसपास खाली मैदान है, मिडिल स्कूल है और दो मंदिर हैं. तो मैं किसी न किसी वज़ह से लाउडस्पीकर को हमेशा अपने कंधे पर बैठा पाता हूँ.

कभी अष्टयाम, कभी नवाह, कभी मेला तो कभी बारात. हर स्वाद का गाना बजता है. हर रंग का. कभी किसी की आवाज़ ऊँची तो कभी किसी की.

चार अलग-अलग लाउडस्पीकर. चार अलग-अलग गाने. आप विश्वास नहीं करेंगे कई बार तो गानों के अजीब मिश्रण बन जाते हैं.

मैंने पूछा चाँद से रात दिया बुता के पिया क्या-क्या किया, दिल दिया है जान भी देंगे सुनते ही दौड़े चले आए मोहन. आदि-आदि-आदि.

खैर लाउडस्पीकर को तो आप चुप करा नहीं सकते इसलिए कान में रूई ठूंसिए, रजाई से शरीर को लेमिनेट कीजिए और दुबक जाइए.

लाउडस्पीकर को चुप करवाना मतलब भारतीय समाज की राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक भावना को आहत करना.

फलाने की बेटी की शादी में आधे गाँव में लाउडस्पीकर बंधा था तो मैं पूरे गाँव में बंधवाउंगा.

अच्छा मस्जिद पर दो भोंपू टंगे हैं. सुनो चंदे का जुगाड़ करो, मंदिर पर चार टंगवाने हैं.

अरे उस पूजा समिति की आवाज़ दो कोस तक जा रही थी. अच्छा ऐसा क्या. हमारी की आवाज़ चार कोस तक जाएगी. देखिए ना लाउडस्पीकर कैसे लोगों को खुश रख रहा है.!

है ना यह समाज का हीरो. अब आप सबसे ऊपर का पैराग्राफ पढ़िए और अपनी सहमति दर्ज करवाइए.

सुबह-सुबह देखा पड़ोसी के घर पर चहल-पहल थी. बड़ी-बड़ी भट्ठियों पर हंडे चढ़े थे. कनात-सामियाना लग रहा था. दरियां बिछ रही थीं.

छत पर बड़े-बड़े चार लाउडस्पीकर टाँगे जा रहे थे. बड़ा कुतूहल जगा. हमने बमुश्किल पड़ोसी महोदय को पकड़ा. अपनी पीली धोती को टांगों के बीच से पीछे ले जाकर खोंसते हुए जल्दीबाजी में उनने जवाब दिया ‘विश्व शान्ति के लिए महायज्ञ का आयोजन करवा रहे हैं बचवा.

काशी से पंडीजी आए हैं. पूरे नौ दिन चलेगा. इलाके में ऐसा यज्ञ ना कहीं हुआ है आ ना कहीं होगा.’

विश्व शांति के प्रयास में लगे लाउडस्पीकरों की संख्या को देखते हुए मैंने अपनी शान्ति के लिए तत्काल में टिकट देखना शुरू कर दिया.

 



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