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अंग्रेज़ी की सनक में सरक गए मँझले सुकल:ABCD XYZ क ख ग घा इंगा

वीथिका            May 28, 2019


आशुतोष राणा।
ये उस समय की बात है जब छोटे शहरों, क़स्बों में अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव आतंक की हद तक हुआ करता था, बहुत कम लोगों को अंग्रेज़ी आती थी, अंग्रेज़ी बोलने वाले समाज में विशेष समझे जाते थे। परिणामस्वरूप अंग्रेज़ी का ज्ञान कुछ लोगों पर #रीऐक्शन कर जाता था जिससे वे सरक जाते थे और अपनी इस सटकी हुई अवस्था में वे शहर के हर गली चौराहे पर चाय, पान वालों से लेकर सड़क चलते हुए सामान्य आदमी को भी अपनी अंग्रेज़ी से टुचयाते रहते।

तो हमारे शहर के ‘मँझले सुकल’ ( शुक्ल ) जो पढ़ लिख कर पोस्टमास्टर के पद पर प्रतिष्ठित हो गए थे, उनको भी अंग्रेज़ी बहुत बुरी तरह से रीऐक्ट कर गई थी वे अपनी अंग्रेज़ी के लट्ठ को चाहे जहाँ अंधाधुँध घुमाते, इससे मँझले के सम्पर्क में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति हीनता, दीनता के भाव से भरा हुआ कुंठित, हतोत्साहित, प्रवंचित, लुटा-पिटा सा महसूस करता।

लेकिन शहर के बच्चों के लिए मँझले एक खिलौना हो गए थे, वे जब भी मँझले को देखते वैसे ही ज़ोर से चिल्लाते- “ABCD XYZ, मँझले हो गए पूरे मैड।”

बच्चों की इस हरकत से मँझले अंग्रेज़ी भूल कर हिंदी में गालियाँ बरसाने लगते और प्रतियुत्तर में बच्चों को चिढ़ाते हुए चीख़ते ‘क ख ग घा इंगा, तुमाए बाप छिंगा।’

अंग्रेज़ी की सनक में मँझले पूरे सरक गए थे, मँझले का आतंक इतना बढ़ गया था कि लोग तो लोग, शवयात्राएँ भी उनको देख कर अपना रास्ता बदलने के लिए मजबूर हो जातीं थीं।

एक वाक़या जिसका उल्लेख मँझले के व्यक्तित्व को ध्यान में रखते हुए करना बहुत ज़रूरी है, हुआ यूँ कि हमारे शहर के वयोवृद्ध नागरिक सुंदर सेठ का देहावसान हो गया, राम नाम सत्य है कि ध्वनि के साथ उनकी शवयात्रा मुक्तिधाम की ओर बढ़ रही थी, मुक्तिधाम का मार्ग मँझले के घर से लगा हुआ था। शवयात्रा जैसे ही मँझले के घर के पास पहुँची राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है सुनकर मँझले का दिमाग़ भन्ना गया वे चिल्लाकर बोले- होल्ड ऑन। कीप धिस डैडबॉडी डाउन। मे आई आस्क यू, हू इज़ राम ? वाई आर यू पीपल चैंटिंग हिज़ नेम ? हाउ विल ही मेक यू फ़्री ? धा पर्सन हू डाइड इज़ सुंदर सेठ, हू वाज़ अ फ़ेमस लायर। ही नेवर स्पोक सत्य इन हिज़ होल लाइफ़, नाउ ही इज़ अ डैड पर्सन, ही इज़ नॉट एबल टू स्पीक अ सिंगल वर्ड.. हाउ ही विल स्पीक राम ? इट मीन्स ही इज़ नॉट गोइंग टू बी फ़्री ?

उनके प्रश्न को सुनकर गुड्डन गुरु जो मिडल स्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ाते थे ग़ुस्से से बोले- शटाप मँझले.. राम वाज़ अ सन ऑफ़ महाराजा दशरथ फ़्रोम अयोध्या। ही वाज़ अ गॉड। ही इज़ रेस्पॉन्सिबल फ़ॉर एव्री बर्थ।

मँझले गुड्डन पर चढ़ गए- मिस्टर गुड्डन हैव यू एवर सीन राम ?
गुड्डन गुरु बोले- नो आई ऐम नॉट, बट तुलसीदास जी मेट हिम, ही हैज़ रिटन इन रामचरित मानस। डू यू नो हू तुलसीदास ? यू ब्लडीफूल पोस्ट मास्टर.. मूव फ़्रोम हीयर वी आर गेटिंग लेट, वी हैव तो बर्न सुंदर सेठ..सो ही रीच स्वर्ग ऑन टाइम, यमदूतस आर वेटिंग फ़ॉर हिम इन मुक्तिधाम।

मँझले ने ग़ुस्से में गुड्डन की कॉलर पकड़ ली- यू ब्लडी स्कूल मास्टर, आई विल नॉट अलाउ यू टू पास धिस डैडबॉडी फ़्रोम धिस रोड. इफ़ यू वॉंट तो बर्न धिस लायर ? धेन फ़ाइंड सम अधर वे टू रीच मुक्तिधाम, यू ब्लडी स्मॉल टीचर। आई ऐम नॉट अ फूल आई नो तुलसीदास, तुलसी वाज़ अ पोयट डुरिंग धा टाइम ऑफ़ अकबर..अकबर वाज़ अ सन ऑफ़ हुमायूँ, अकबर सी हुमायूँ एंड गिव स्माइल.. हुमायूँ वाज़ ओल्ड, एंड ओल्ड मीन्स ओल्ड मोंक, नॉट लिकर..मोंक मींन्स अ भिक्षु। भिक्षु हू नॉट आस्क भिक्षा, गिव ज्ञान।

ज्ञान वाज़ माई क्लासमेट, पीपल गो स्कूल टू रिसीव ज्ञान, आई वाज़ गोइंग स्कूल विध ज्ञान।
माई प्रिन्सिपल टोल्ड मी- कमिंग स्कूल विध ज्ञान इज़ वेस्टिंग योर टाइम, बीकज़ टाइम इज़ मनी एंड मनी इज़ हनी, हनी इज़ वेरी गुड विध सितोपलादी चूर्ण सितोपलादी चूर्ण क्युर खाँसी, खाँसी इज़ आ साइन ऑफ़ रोग, सो मेनी रोग बट धा मोस्ट डेंजरस रोग इज़ अ प्रेम रोग।

प्रेमरोग मेड बाई राजकपूर, राजकपूर वाज़ अ सन ऑफ़ पृथ्वीराज कपूर हू प्लेड अकबर, रिमेम्बर अकबर ? हू सी हुमायूँ एंड गेव स्माइल इन धा बिगनिंग ऑफ़ माई स्पीच। गो बैक .. आई विल नोट अलाउ टू पास धिस डैडबॉडी फ़्रोम माई होली एरीआ। यू ब्लडी मिडल स्कूल टीचर, टॉकिंग टू अ पोस्टमास्टर इन इंग्लिश ? फ़र्स्ट यू लर्न प्रॉपर इंग्लिश एंड कम टू मी। आई से गोऽऽऽ बैकऽऽ.. अधर्वायज़ आई विल डू हंगर स्ट्राइक एंड फ़िनिश माय सेल्फ़।

मँझले के मुँह से धाराप्रवाह अंग्रेज़ी सुनकर शवयात्रा में चल रहे लोग सन्न हो गए और उनको सुंदर सेठ की शवयात्रा का मुँह मोड़कर मुक्तिधाम पहुँचने के लिए एक किलोमीटर लम्बा रास्ता लेना पड़ा।

मँझले का सरकना हमारे छोटे से शहर के लिए बड़ा सर दर्द बन गया था। उसी दिन बड्डे शुक्ल की अध्यक्षता में पंचायत बैठी जिसमें सर्वसम्मति से फ़ैसला लिया गया की क्यों ना इनको आगरा के पागलखाने में अड्मिट करवा दिया जाए, जहाँ के झटके इनको दुरुस्त कर देंगे और शहर इनके फटके से बच जाएगा।

सो मँझले के बड़े भाई ‘बड्डे शुक्ल’, मँझले से छोटे ‘गंजले शुक्ल’, और सबसे छोटे ‘नन्हें शुक्ल’, के साथ उनके पड़ोसी मंटू नगाईच जिन्होंने यह आगरा ले जाने वाला सुझाव दिया था, तथा उनके बालसखा भोला बिचपुरिया तड़के की रेल से उनको लेकर आगरा की ओर कूच कर गए।

तीन दिन बाद मँझले शुक्ल का “क ख ग घा इंगा, तुमाए बाप छिंगा।” का मशहूर नारा शहर के हर गली कूचे में फिर से सुनाई देने लगा। मँझले वापस लौट आए थे, शहर में चिंता हो गई, की शायद आगरा मँझले शुक्ल को फ़तह करने में नाकामयाब रहा।

बड्डे शुक्ल और उनकी उस मंडली को को ढूँढा गया जो मँझले सुकल को लेकर आगरा गए थे, तो पता चला के वे पाँचों आदमी ग़ायब हैं !!

भोला बिछपुरिया, और मंटू नागाईच के यहाँ दुःख का साम्राज्य था, उनके परिजनों ने उन्हें मरा मान लिया था और मुंडन वुंडन करवा के उनके पिंडदान और तेरहवीं की तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। क्योंकि मँझले शुक्ल ने उन दोनों के पुराने कपड़े सुपाड़ी, सरोतिया, जनेऊ, गमछा उनके परिवार को वापस करते हुए ये जानकारी दी थी कि मंटू और भोला दोनों ने अपने परिवार से त्रस्त होकर यमुना जी में डूब कर अपने प्राण त्याग दिए हैं। चूँकि बड्डे शुक्ल ब्राह्मण हैं और ऊपर से उन दोनों के दोस्त भी हैं इसलिए वे वहीं रुक गए ताकि मृत्यु के बाद किए जाने वाले सभी कर्मों को सम्पन्न कर सकें, जिससे उनकी आत्मा को भूत बनकर भटकना ना पड़े।

क़रीब सात दिन बाद हमारे घर के टेलीफ़ोन पर घंटी बजी, भैया ने फ़ोन उठाया तो पता चला की बड्डे शुक्ल हैं, जो आगरा के मानसिक चिकित्सालय से बोल रहे हैं, जिनको उनके चार अन्य साथियों के साथ, मँझले शुक्ल ने अपनी फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी में बोलकर डॉक्टर को सिद्ध कर दिया की वे बड़ी मुश्किल से इन पाँचों पागलों को अपने साथ लेकर आए हैं, ये बेहद हिंसक हैं किंतु बातचीत करने पर आपको सामान्य दिखाई देते हैं, आपके पूछने पर ये स्वयं को ठीक और दूसरे को पागल कहते हैं। आप इनसे पूछ कर देखिए की क्यों भाई क्या समस्या है ? ये पाँचों ही आपसे कहेंगे की डॉक्टर साहब ये आदमी पागल है इसका इलाज कीजिए।
इनको अंग्रेज़ी समझ में नहीं आती इसलिए मैं आपसे अंग्रेज़ी में बोल रहा हूँ आप चुपचाप इन पाँचों को जमा कर लीजिए और बिजली के झटके से इनको ठीक कीजिए क्योंकि मैंने देखा है एक बार दीवाली में इनको ग़लती से बिजली का करेंट लग गया था तो ये क़रीब पंद्रह दिनों तक बिलकुल ठीक रहे थे।

बड्डे शुक्ल घबराए हुए से बोल रहे थे- भैया हम पाँचों को पिछले सात दिनों से करेंट दिया जा रहा है, आज बड़ी मुश्किल से डॉक्टर साब को सहमत किया, हम लोगों के ठीक होने के सबूत के तौर पर वे आपसे से बात कराना चाहते हैं, आप इनको बता दो की हमलोग पागल नहीं हैं, असली पागल वो है जो अंग्रेज़ी बोलकर हमें पागल सिद्ध करके अपने शहर में घूम रहा है।

दो दिन बाद पाँचों पंच लौट के शहर आए। किंतु बड़े भारी परिवर्तन के साथ, अब वे हर आदमी को देख के चिंहुक जाते थे, थोड़ी सी भी बिजली की स्पार्किंग देख के दौड़ लगा देते, किसी को अंग्रेज़ी में बोलता देख वहाँ से तुरंत ग़ायब हो जाते। एक और अजीब बात जो उन्होंने की जिसकी शहर में चर्चा बन गई, उन्होंने अपनी सरकारी बिजली का कनेक्शन लिखित रूप से पर्मनेंट्ली कटवा दिया, उनका घर अब लालटेन और ढिबरियों की रोशनी से प्रकाशित होता था।

इस घटना के बाद हमारे शहर के प्रत्येक बच्चे को मार पीट कर अंग्रेज़ी सिखाई जाने लगी क्योंकि बुज़ुर्गों के मन में ये बात बुरी तरह बैठ गई थी कि यदि आप अंग्रेज़ी बोलना जानते हैं तब पागला होने के बाद भी आपको ज्ञानी और सामान्य व्यक्ति माना जाएगा, और यदि आप सिर्फ़ हिंदी बोलते हैं तब ज्ञानी होने के बाद भी आपको पागल सिद्ध किया जा सकता है।

लेखक प्रसिद्ध बॉलीवुड कलाकार हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है

 


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