राकेश अचल।
निदा साहब के जाने की खबर मुझे अटलांटा में मिली तो सन्न रह गया,फौरन कुछ समझ में नहीं आया,लेकिन देर से ही सही लिखे दे रहा हूँ,मन नहीं मानता बिना लिखे। निदा साहब का नाम निदा कैसे रखा गया ये तो उनके वालिद ही जानते होंगे लेकिन नैदा की आवाज निदा यानि किसी लड़की की आवाज नहीं थी। आप निदा फाजली की आवाज मुल्क के गरीब,शोषित,पीड़ित आदमी की बुलंद आवाज थी। निदा साहब से मुलाक़ात तो अस्सी के दशक में ही हो गयी थी लेकिन बतियाने का पहला मौक़ा बहुत बाद में मिला। हमारे शहर में मनमोहन घायल एक स्थानीय चैनल चलाते थे ,नब्बे के आसपास की बात होगी की चैनल के संचालक मन मोहन घायल का फोन आया की निदा फाजली साहब उनके स्टूडियो में आ रहे हैं और मुझे उनसे बातचीत करना है। निदा साहब ग्वालियर के हैं ये मुझे पता था लेकिन मुझे ये भी पता था की वे देश के नामचीन्ह शायरों में शुमार हो चुके हैं,मुझे हैरानी हुयी की उन्होंने एक नामालूम चैनल को बातचीत के लिए समय कैसे दे दिया? लेकिन हकीकत थी की निदा साहब ने समय दे दिया था और निदा साहब तय समय पर मेरे सामने थे।
निदा साहब से आधा घंटे का समय था लेकिन बातचीत चली तो समय की सीमाएं पीछे छूट गयीं। उन्होंने तल्ख से तल्ख सवालों के जबाब बेहद विनम्रता से दिए और वे तमाम रचनाएँ सुनाईं जो वे बहुत कम सुनाते थे। बातचीत के बाद निदा साहब ने अपना पसंदीदा पान खाया और कहा -यार मुझे पहली बार किसी ने इतना छीला है। निदा साहब इस साक्षात्कार के बाद हमेशा के लिए मेरे प्रिय हो गए। वे जब भी ग्वालियर आते या किसी दूसरी जगह मिलते मुझसे मेरे लेखन के अलावा अपने पुराने दोस्तों की खैर-खबर जरूर पूछते। आखिरी बार आईटीएम के प्रोग्राम में उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया और कहा-मियाँ टोपी खूब जम रही है,मैं हंस दिया और उन्होंने बड़ी ही शरारत से मेरी हथेली दबाई और मंच पर चले गए। निदा साहब भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका लिखा और लोगों से लखाया गया बहुत सा साहित्य हमारी धरोहर तब तक रहेगा,जब तक कोई दूसरा निदा हमें नहीं मिल जाता ,और ये इतना आसान नहीं है। निदा साहब चाहे लड़की का नाम हों,आवाज हों लेकिन वे अवाम की आवाज बने ही रहेंगे। मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
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