क्या सोशल मीडिया से देश के मूड की सही तस्वीर मिल सकती है?

मीडिया            Oct 26, 2018


राकेश कायस्थ।
क्या सोशल मीडिया से देश के मूड की सही तस्वीर मिल सकती है? इसका जवाब बहुत आसान नहीं है।

भारत में फेसबुक और ट्विटर एक दशक से पुराने हो चुके हैं। ज़ाहिर है, मनचाहे निष्कर्षों के लिए इनका इस्तेमाल करना भी लोगों को आ गया है।

जब किसी नेता का फेसबुक लाइव चल रहा तो लगातार आ रहे कमेंट्स पर गौर कीजिये। जिन प्रोफाइल से कमेंट किये जा रहे हैं, वहां जाइये। आपको सच पता चल जाएगा।

ज्यादातर प्रोफाइल आपको ऐसे मिलेंगे जहां कोई एक्टिविटी नहीं है। मतलब फेसबुक एकाउंट होल्डर कुछ भी नहीं करता। वह उसी वक्त सक्रिय होता है, जब किसी नेता की रैली होती है। उसकी सक्रियता जय-जय बोलने या भद्धी गालियां देने तक सीमित होती हैं।

कई प्रोफाइल ऐसे होते हैं, जिन्हे देखकर आप समझ सकते हैं कि बंदे को सामान्य स्तर की अंग्रेजी भी नहीं आती है। लगता है, नाम और पेशा वगैरह भी बड़ी कठिनाई से भरे गये हैं।

लेकिन ऐसे प्रोफाइल से आपको अंग्रेजी में लंबे-लंबे कमेंट मिल जाएंगे।

नेताजी के लाइव पर थोड़ी देर रुकेंगे तो आपको यह दिखाई देगा कि कई और प्रोफाइल से भी वही कमेंट किये गये हैं।

मतलब बहुत साफ है। एकाउंट होल्डर का एकाउंट से कोई लेना-देना नहीं है। ये सारे एकाउंट कहीं से मैनेज किये जा रहे हैं। हज़ारों लाइक और लाखों फॉलोअर की सच्चाई भी यही है। हालांकि कई एकाउंट्स के जेनुइन फॉलोअर भी हैं।

लेकिन जहां व्यवसायिक या राजनीतिक हित जुड़े हैं, वहां ईमानदारी बरती जाये इस बात की संभावना कम है।

समाज और देश के मिजाज को समझने के लिए अपनी विश्लेषण क्षमता पर भरोसा करना हमेशा ज्यादा कारगर होता है। तथ्यपरक और वस्तुनिष्ठ आकलन ही सही नतीजे तक पहुंचा सकते हैं, सोशल मीडिया पर चल रही आंकड़ों की बाजीगरी नहीं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 


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