उमाशंकर सिंह।
2020 में लॉकडाउन खुलने के बाद महानगरों से छोटी जगहों को चली ट्रेनें सात-सात आठ-आठ दिन लेट हो गई। अपने डेस्टीनेशन के बदले किसी और शहर, स्टेट पहुंच गईं। बिना ऐसी और पेंट्री कार वाले उन ट्रेनों में घर जा रहे मजदूर लोग गार्मियों की वजह से बिना पानी के मर गए। हमने परवाह नहीं की। सरकार को बाइज्जत बरी किया। आलोचना करनें वालों को देशद्रोही कहा। सरकार को क्लीनचिट और सेफ पैसेज दिया।
फिर कोविड के दूसरे लहर में लाखों लोग मरे। सरकार मीडिया ने सब छुपाया। बचे हुए लोगों ने कहा अमेरिका में कितने मरे पता है ?? चीन-यूके में कितने लोग मरे पता है ?? हालांकि उनमें से ज्यादातर कभी विदेश के नाम पर नेपाल के अलावा कहीं और नहीं गए थे। पर उन्हें ये एक्सपर्ट ज्ञान मीडिया और व्हाटसअप से मिला था। सरकार, प्रशासन की कहीं कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई।
गुजरात में मोरबी पुल कई सौ करोड़ का कांट्रेक्ट देके, कई साल लगाके दुबारा जनता के लिए खुला और अचानक धराशाई होके गिर गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 141 लोगा कुछ मिनटों में मर गए। मरे हुए लोग साइबेरिया के नहीं, इसी हिंदुस्तान के नागरिक थे, जहां के हम-आप हैं। ब्रिज का रेनेावेशन और रखरखाव करने वाली कपंनी के मुखिया जयसुख पटेल मुख्य आरोपी बनाए गए, पर जब तक मामला सुर्खियों में रहा अरेस्ट नहीं हुए थे। बाद का पता नहीं। कोई त्यागपत्र, कोई बर्खास्तगी, कोई कारवाई हुई हो तो आप बता दो।
फिर पता नहीं कितने सौ साल बाद आए कंभ में सैकड़ों लोग सिर्फ प्रयागराज में भगदड़ में नहीं मरे। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पे मरे। आते-जाते रोड एक्सीडेंटों में मरे। मरने वालों को गिना तक नहीं गया। रिकगनाइज तक नहीं किया गया।
फिर आरसीबी की विक्ट्री के सेलीब्रेशन में भगदड़। मुंबई लोकल में गिर के मारे गए लोग। और अब ये विमान हादसा। न कोई पक्षी टकराई। ना मौसम खराब था। एक साथ दोनो इंजन फेल और टेक ऑफ के जस्ट बाद चालीस सेकेंड में गिरा सारे यात्री गारे गए। जिस मेडिकल हॉस्टल पे ये विमान गिरा, उसमें मरने वालों की तो मीडिया बात ही नहीं कर रहा।
जब छोटे हादसों पे जिम्मेदारी तय नहीं होगी। कार्रवाई नहीं होगी। तो उससे बड़े हादसे होंगे ही। आप उसे रोक नहीं सकते।
हम चाहे सरकार को क्रिटिसाइज कर रहे हों या उसका बचाव। असल में हम सब दूसरे कामों में मुब्तिला अपने मरने की बारी का इंतजार ही कर रहे हैं।
जाते जाते एक और बात याद आई। ज्यादा दिन नहीं बीते जब कोई भी रेल हादसा होता तो बढ़ चढ़कर मीडिया और निजीकरण के हिमायती उसे सरकार के हाथ से लेके प्राइवेट सेक्टर को सौंप देने की की वकालत करने लग जाते थे। पता नहीं अब उनका क्या स्टेंड होगा ! कई बार लगता है लाल बहादुर शास्त्री जी इस देश के तो रेल मंत्री नहीं थे जिनने एक मामूली रेल दुर्घटना पे रिजाइन कर दिया था। वो भारत नामका शायद कोई दूसरा देश होगा जो अब रहा नहीं।
लेखक स्क्रीनप्ले राईटर हैं यह तात्कालिक टिप्पणी उनकी फेसबुक वॉल से ली गई है
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