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दो साल में भाजपा और सरकार की खोज

खरी-खरी            May 31, 2016


sanjay-singhसंजय कुमार सिंह। आर्थिक बेईमानी और भ्रष्टाचार दूर करने के वादे पर सत्ता में आई पार्टी को इसमें कुछ अनैतिक नहीं लगता है। पहले भी होता रहा है। लेकिन, अगर ऐसा ही है तो भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की क्या जरूरत थी? कालाधन वापस लाना नहीं है तो सिर्फ यह बताने के लिए कि आ गया तो हर किसी को 15 लाख मिलेंगे और जनता झांसे में आ गई तो सत्ता मिल जाएगी। अभी यह भी तय नहीं हुआ है कि जितना कालाधान कहा था उतना है भी कि नहीं। 1) 31 जनवरी 2014 को वीआरएस लेने वाले मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह बागपत से भाजपा के सांसद हैं। 2) जन्म तिथि को लेकर रिटायरमेंट से पहले पिछली सरकार से विवादों में रहे पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह गाजियाबाद से सांसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य हैं। 3) केंद्रीय गृह सचिव के रूप में दो साल के कार्यकाल के बाद 30 जून 2013 को रिटायर होने वाले आरके सिंह मई 2014 से भाजपा सांसद हैं। आरके सिंह अक्तूबर 1990 में समस्तीपुर (बिहार) के जिलाधिकारी थे और उस समय के मुख्यमंत्री लालू यादव के आदेश पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा के दौरान गिरफ्तार किया था। गृहमंत्री के रूप में आडवाणी ने 1999 में सिंह को गृहमंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाया था। 4) 19 जुलाई 2013 से 26 अप्रैल 2014 तक देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रहे पी (पलानीस्वामी) सदाशिवम केरल के राज्यपाल हैं। अगस्त 2014 में राज्यपाल बनाए जाने वाले सदाशिवम देश के पहले मुख्य न्यायाधीश हैं। 5) दो साल विधायक और इसी दौरान करीब डेढ़ साल उड़ीसा की भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल की गठबन्धन सरकार में मंत्री रही द्रौपदी मुर्मू झारखंड की पहली आदिवासी और महिला राज्यपाल हैं। झारखंड के नौवें राज्यपाल के रूप में उन्होंने मई 2015 में शपथ ली थी। 6) पूर्व आईपीएस किरण बेदी रिटायरमेंट के बाद अन्ना हजारे के साथ केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के बाद दिल्ली चुनाव में भाजपा की उम्मीदवार बनाई गईं और हार गईं। अब उन्हें पुडुचेरी का राज्यपाल बनाया गया है। ias-politician-kolaz 7) 22 मई 2013 को देश के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के पद से रिटायर होने वाले विनोद राय रेलवे के मानद सलाहकार और रेलवे कायाकल्प कौंसिल के सदस्य हैं। इसके बावजूद कि वे संयुक्त राष्ट्र के बाहरी लेखापरीक्षकों के अध्यक्ष हैं। उस समय के प्रधानमन्त्री कार्यालय के राज्य मन्त्री वी० नारायणसामी ने कहा था कि "सीएजी को सरकारी योजनाओं में हो रहे घोटालों पर टिप्पणी देने का कोई अधिकार नहीं है। इससे भारत के नियन्त्रक एवं महालेखाकार की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगता है।” इसपर विनोद राय ने कहा था, “सीएजी का यह मूलभूत और नैतिक दायित्व है कि वह सरकार के कामकाज में दखल न देते हुए भी आर्थिक मामलों में पायी गयी अनियमितताएँ उसे बताये। 8) उत्तर प्रदेश के रिटायर पुलिस प्रमुख बृजलाल बाकायदा भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर चुके हैं और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी ओम प्रकाश माथुर एवं उस समय के प्रदेश अध्यक्ष डा लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सेवानिवृत्त पूर्व पुलिस महानिदेशक, बृजलाल, ही नहीं, सेवानिवृत्त पुलिस उप महानिरीक्षक ज्ञान सिंह एवं मिर्जापुर जनपद के पूर्व विधायक राजेन्द्र प्रसाद सिंह को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कराई। उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता अभी ही पुलिस प्रशासन के लिए परेशानी है। पार्टी को इनके पुलिस अधिकारी होने का लाभ मिलेगा और ठीक से मिल गया तो रिटायर पुलिस अधिकारी को समय पर भाजपा में आने का लाभ मिलेगा। तकनीकी तौर पर यह कहीं से गलत नहीं है पर इससे गंलत संदेश तो जाता ही है। 9) केंद्र सरकार ने जो पहली सार्वजनिक नियुक्ति की वही विवादों में पड़ गई। अभिनेता गजेन्द्र चौहान को भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) का अध्यक्ष बनाया जाना विवादों में रहा। संस्थान के छात्रों ने लंबे समय तक विरोध किया। अनुपम खेर भी उन्हें समझा नहीं पाए। फिर अलग काम ढूंढ़ लिया। एक तरफ तो भाजपा की खोज ये सांसद, मंत्री और दूसरे लोग हैं। दूसरी ओर, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ (दोनों भाजपा शासित) के आईएएस अधिकारियों अजय सिंह गंगवार और अमित कटारिया को फेसबुक पोस्ट और चश्मा लगाने के लिए सरकार के गुस्से का शिकार होना पड़ा है। चश्मा लगाने वाला मामला तो पुराना हो गया लेकिन फेसबुक पोस्ट के नाराजगी झेलने वाले आईएएस अधिकारी पूर्व मुख्यमंत्री और एआईसीसी के महासचिव दिग्विजय सिंह के विशेष सहायक रह चुके हैं। जाहिर है आईएएस अधिकारी को उनकी पोस्ट के लिए नहीं तो राजनीतिक संपर्कों के लिए नौ महीने में ही जिलाधिकारी के पद से हटा दिया गया। हालांकि अब सरकार कह रही है कि फेसबुक पोस्ट नेहरू की नीतियों पर लिखने के कारण मोदी के खिलाफ जनक्रांति वाली पोस्ट लाईक करने के कारण ऐसा किया गया। ये अलग बात है कि इस पोस्ट को लाईक करने के पांच महीने बाद गंगवार को बड़वानी कलेक्टर बनाया गया और अब 9 महीने बाद होश आया सरकार को कोड आॅफ कंडक्ट का। इस तरह, पूर्व न्यायधीशों, पूर्व नौकरशाहों और पूर्व सेनाध्यक्ष तक की चुन-चुन कर नियुक्ति और संवैधानिक पदों से लेकर प्रमुख पदों पर बैठे लोगों का राजनीतिकरण और राजनीतिक लाभ देना तकनीकी तौर पर भले भ्रष्टाचार में न आता हो पर भ्रष्ट राजनीति तो है ही। जवाब में कोई ना कोई भक्त कहेगा कांग्रेस ने कि किया वो आपको नहीं दिखता है। पर यह जवाब नहीं है। राजनीति को भ्रष्ट करना इससे नहीं रुकेगा। कहने की जरूरत नहीं है कि भ्रष्ट राजनीति से पद पाने वालों का भ्रष्टाचार ठेके दिलाने में कुछ पैसे बना लेने से ज्यादा बुरा है। भाजपा जो कर रही है, जैसे कर-करा रही है (सेल्फी पत्रकारिता समेत) उससे हर व्यक्ति को संदेश मिल रहा है। लोग अपने हिसाब से प्राप्त कर रहे हैं, प्रतिक्रिया कर रहे हैं। हो सकता है इसे पसंद करने वाले ज्यादा हों। पर यह सही या अच्छा नहीं हो जाएगा। लेकिन सरकार इसे कम करने के मूड में तो नहीं लगती है और इसका नुकसान भी साफ दिख रहा है। रिटायरमेंट के पहले दिल्ली के पुलिस प्रमुख बीएस बस्सी ने जेएनयू के मामले में जो सक्रियता दिखाई थी वह इसी का हिस्सा लग रहा था और उन्हें भी सरकार किसी पद या लाभ से गौरवान्वित करे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। फिर भी, मेरा देश बदल रहा है ...आगे बढ़ रहा है | (सभी सूचनाएं और फोटो विकीपीडिया तथा इंटरनेट से। सभी सूचनाएं शत प्रतिशत सही होने की गारंटी नहीं है हालांकि कोशिश की गई है कि कुछ गलत या अपमानजनक ना हो। कृपया पोस्ट के मकसद को समझें सूचनाओं को नहीं।) फेसबुक वॉल से।


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