Breaking News

नदी संरक्षण:बात निकली है तो अमल तक जानी चाहिये, छोड़ना होगा दोगलापन

खरी-खरी, मीडिया            Oct 18, 2015


ममता यादव मीडिया चौपाल:नदी संरक्षण संवर्द्धन और मीडिया की भूमिका। विषय लगभग अछूता है इस बात में कोई दो राय नहीं लेकिन स्पंदन के मुखिया अनिल सौमित्र ने चौपाल के बहाने नदियों को चर्चा में लाने का काम किया उसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। चार चौपालें हुईं। मैं चौथी में शामिल हो सकी। अनिल जी से बस य​ही कहना चाहूंगी कि बात निकली है तो अब अमल तक जानी चाहिये। कुलमिलाकर ये कि कुदाल भी उठवाईये मरती नदियों को जीवंत बनाने के लिये। भले ही एक सत्र के बराबर अवधि हो। दो दिन की चौपाल के सत्रों में वहां हुई बातों का अगर निष्कर्ष जो मैंने निकाला वो लिखूं तो ज्यादातर लोग मेरे विरोध में होंगे। बात नदियों के संरक्षण संवर्द्धन की है। मैं वो बातें नहीं दोहराउंगी जो दो दिन सुनीं और खबरों में लिखी गईं। हमारी नदियों को सबसे बड़ा नुकसान हम ही पहुंचा रहे हैं। सबसे बड़ी बात जो मैं मानती हूं नदियों की पूजा बंद कर दीजिए उनमें विसर्जन बंद कर दीजिये,उनके रास्ते मत रोकिये और ईमानदार पहल करिये। ये मेरा निष्कर्ष है। इसे ज्यादातर लोग पसंद नहीं करेंगे मुझे पता है। हम कहते हैं विदेश की नदियां कांच की तरह चमकती हैं हमारी नदियां भी चमक सकती हैं उनमें फैक्ट्रीस का केमीकल बहाना बद कर दीजिए। बहरहाल अगर प्रकृति के प्रति हमारे व्यवहार की बात की जाये तो हम दोगले हैं। दोगले इस मायने में हैं कि हम चिंता तो जताते हैं,चिंता करते भी हैं लेकिन उस चिंता को दूर करने के उपायों पर अमल नहीं सिर्फ बात करते हैं। हम मंचों से चिंता कर रहे हैं बात कर रहे हैं लेकिन अमल नहीं कर रहे। अमल इसलिये नहीं कर रहे क्योंकि हमारी धार्मिक भावनायें बहुत जल्दी आहत होती हैं। कोई पहल करेगा भी तो उसका विरोध इस हद तक किया जायेगा कि कोई हद ही नहीं होगी। नदियों को आप मां कहते हैं,मूर्ति पूजा भी करते हैं तो क्यों न नदियों के किनारे ही नदियों की प्रतीकात्मक मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की जाये।पूजा के वेस्टेज को खाद के रूप में उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता? चौपाल की व्यवस्थाओं अव्यवस्थाओं की मैं बात नहीं करूंगी। मगर एक सुझाव यह जरूर देना चाहूंगी कि अगली चौपाल में नदी भ्रमण के साथ—साथ नदियों को साफ करने के लिये भी चौपाल के स्तर से पहल की जाये। मंच से तो बातें होती ही हैं मगर अमल भी हो। रहा सवाल मीडिया का तो मीडिया में निश्चित यह विषय नगण्य है लेकिन इस स्तर पर पहल होगी तो मीडिया भी इसे अनदेखा नहीं कर पायेगा। सरकारी स्तर पर देखा जाये तो चिंता सबसे ज्यादा गंगा—यमुना की ही दिखाई—सुनाई देती है। अमल का हाल क्या है वो तो सबको पता है। सबसे बड़ी बात हमें खुद दोगलापन छोड़ना होगा। हम चिंता जताते हैं नदियां मूर्तियों के विसर्जन के कारण प्रदूषित हो रही हैं। लेकिन जब मूर्ति विसर्जन का समय आता है हम ही ढोल —नगाड़ों और उत्साह के साथ नदियों में मूर्तियां विसर्जित करके आते हैं। नदियों में मूर्ति विसर्जन की अवधारणा तब ठीक थी जब भारत की नदियां अविरल बहती थीं अब इस धारणा को छोड़ना होगा। पूजा सामग्री पूर्णत: प्रतिबंधित हो और नदियों के किनारे गंदगी करने वालों से वहीं निपटा जाये। ink-media इंक मीडिया के विद्यार्थियों का काम सराहनीय रहा। अखबार पढ़कर और डॉ़.आशीष द्विवेदी से बात कर निष्कर्ष यही निकला कि अपने उद्गम स्थल पर नदियां पवित्र हैं साफ हैं। पानी इतना साफ है कि पिया जा सकता है लेकिन जैसे—जैसे नदियां आगे बढ़ी हैं मानव आबादी की तरफ हद से ज्यादा प्रदूषित हुई हैं हो रही हैं। आशीष जी ने अपने छात्रों से अपने मार्गदर्शन में पीठ ठोकने लायक काम करवाया है, इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। चौपाली इंक पॉवर को एक बार पढ़ें जरूर।मीडिया को भी इस लेवल पर नदियों पर काम करने की जरूरत है। मीडिया ने अपने स्तर पर शुरूआत तो की है उदाहरण भोपाल में ही देख लीजिये ग्रीन गणेशा और कुंडों में विसर्जन। लेकिन नवरात्रि में इस पहल का क्या होता है यह पता नहीं चलता। मीडिया को निष्पक्ष होना होगा और निष्पक्ष होकर ही काम करना होगा। लेकिन बात अगर रेत उत्खनन की ही की जाये तो खबरें गवाह हैं कि इसके खिलाफ कार्रवाई करने वाले अफसरों और इसके खिलाफलिखने वाले पत्रकारों का हश्र क्या हुआ है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। तो दोगलापन यहां भी छोड़ना होगा।


इस खबर को शेयर करें


Comments