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भारत को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा क्यों बन जाता है मीडिया?

खरी-खरी, मीडिया            Sep 05, 2015


yashvant-singh यशवंत सिंह भारतीय मीडिया किस तरह अपने ही देश को बदनाम करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा जाने-अनजाने बन जा रहा है, इसे जानना-समझना हो तो आपको बागपत के साकरोद गांव का मामला समझ लेना चाहिए। इस गांव के बारे में इंग्लैंड समेत कई देशों में खबर प्रचारित प्रसारित कर दी गई कि यहां की खाप पंचायत ने दो बहनों के साथ रेप कर उन्हें निर्वस्त्र कर घुमाए जाने का आदेश दिया है। इसका कारण यह बताया गया कि लड़कियों का भाई ऊंची जाति की शादीशुदा औरत के साथ भाग गया था, इसलिए बदले में लड़कियों को दंडित करने हेतु दोनों बहनों से रेप करने का फरमान सुनाया गया। यह मसला देखते ही देखते इंग्लैंड की पार्लियामेंट में भी गूंज गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए आनलाइन पीटिशन दायर कर सिग्नेचर कैंपेन शुरू कर दिया जिस पर करीब बीसियों हजार लोगों ने दस्तखत कर भी दिए। ब्रिटिश संसद ने तो बाकायदा प्रस्ताव पारित कर खाप पंचायत के आदेश की निंदा की और बहनों को उचित सुरक्षा देने की भारत सरकार से मांग की। इतने बड़े लेवल पर हो हल्ला होने के कारण दबाव में आई भारतीय मीडिया ने भी जोर—शोर से इस मसले को छापना उठाना शुरू कर दिया। दिल्ली से बस सौ किमी दूर स्थित बागपत के साकरोद गांव में मीडिया वालों ने जाना उचित नहीं समझा। पर विदेशी ताकतों के हल्ला करने से उनके प्रभाव में आते हुए दो बहनों के साथ अन्याय की खबर बढ़ा—चढ़ा कर प्रकाशित करना दिखाना शुरू कर दिया। विवेकहीन भारतीय मीडिया की इस हरकत को लेकर बागपत से लेकर मेरठ तक के लोगों में भारी गु्स्सा है। कुछ ने तो इसी गुस्से में साकरोद की सच्चाई और मीडिया की भूमिका को लेकर फेसबुक पेज तक शुरू कर दिया है। टाइम्स आफ इंडिया ने पहल करते हुए अपने रिपोर्टरों इशिता भाटिया और मदन राणा को मौके पर भेजा. इन पत्रकारों ने ग्राउंड रिपोर्टिंग की। इनने जांच पड़ताल के बाद अपनी बाइलाइन रिपोर्ट में बताया कि ऐसी कोई खाप पंचायत यहां हुई ही नहीं। गांव का कोई भी आदमी खाप पंचायत होने की बात नहीं स्वीकार कर रहा और रेप जैसे फरमान के बारे में इनकार कर रहा है। सबका कहना है कि यह सब मनगढ़ंत बातें हैं. इस घटना को स्थानीय लोगों ने पूरी तरह नकार दिया है। टीओआई में छपी खबर को पढ़ने के लिए इस लिंक http://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/Baghpat-village-in-denial-says-khap-never-passed-rape-order/articleshow/48749748.cmsपर क्लिक करें। [caption id="attachment_10644" align="alignnone" width="300"](देर आए, दुरुस्त आए... गलत प्रचारित खबर की सच्चाई अब सामने ला रहा भारतीय मीडिया.. एक अखबार के मेरठ-बागपत संस्करण में प्रकाशित खबर...) (देर आए, दुरुस्त आए... गलत प्रचारित खबर की सच्चाई अब सामने ला रहा भारतीय मीडिया.. एक अखबार के मेरठ-बागपत संस्करण में प्रकाशित खबर...)[/caption] इस बारे में बागपत के पत्रकार सचिन त्यागी बताते हैं: ''बागपत के साकरोद गांव का जो मामला सामने आ रहा है उसने यहाँ के सभी बुद्धिजीवियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। दो बच्चों की नादानी ने आज इस गांव की मर्यादा को खतरे में डाल दिया है। मामले की हकीकत चाहे कुछ भी रही हो लेकिन एक बात जरूर सामने आई है। गांव में न तो पंचायत की गयी ओर न कोई फरमान जारी किया गया। मीडिया भी सारी हकीकत जानने के बाद सच्चाई का साथ नहीं दे रहा। गांव में जाकर जिसने भी सच्चई देखी, सब मामला समझ जाते हैं। मैं अकेला इस मामले पर अपनी राय दूँ तो कहा जायेगा कि किसी एक परिवार का साथ दे रहा हूं, लेकिन आप ही फैसला लें। एक परिवार लड़के वाले का है जो हर प्रकार से सम्पन्न है। घर में दो लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं और एक की तैयारी चल रही है। दूसरी ओर लड़की का परिवार है जिसके पास न तो कोई जमीन का टुकड़ा है और न ही कोई अपना रोजगार। दूसरों के यहां मजदूरी कर परिवार चलता है। अब आप ही बतायें कौन किस पर भारी है। लड़की की शादी हो चुकी है। वह अपनी ससुराल में है। गरीब परिवार की लड़की को अगर इस तरह बदनाम किया जाएगा तो क्या होता है, यह आप सब जानते हैं। मैं आज ये सब इसलिए आप से साझा कर रहा हूं कि आप भी इस मामले को लेकर किसी प्रकार के भरम में ना रहें। साकरौद गांव में शांति है और लड़की का परिवार हर सुबह आज भी मजदूरी पर निकल जाता है। '' मेरठ से जुड़े उद्यमी जे. विशाल कहते हैं: ''It's a laudable attempt by TOI to have sent a female journalist to Sakrond to get the first person account from the villagers. Its shameful on the part of Amnesty International to launch an slanderous anti-India false Campaign when no such incident took place. We should condemn Amnesty International and the western approach to interfere in our sovereignty. Hats off to TOI and the reporter. Kudos.'' यह पहली बार नहीं है जब दुष्प्रचार के लपेटे में आकर मीडिया वाले दुष्प्रचार को और ज्यादा प्रचारित प्रसारित कर देते हैं। कम से कम पत्रकारीय तकाजा यह कहता है कि ऐसे मामलों में फौरन जमीनी तथ्य पता लगाना चाहिए और ग्राउंड रियल्टी को रिपोर्ट करना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में भी इसी तरह का एक घटनाक्रम हुआ। प्रचारित कर दिया गया कि 16 अप्रैल को धर्मशाला में कॉलेज की एक छात्रा के साथ दुष्कर्म हुआ है। इसके बाद पुलिस ने पांच दिन बिना एफआईआर मामले की जांच की, क्योंकि मामले के संबंध में न तो कोई शिकायतकर्ता था और न ही दुष्कर्म की बात फैलाने वाला कोई था। लेकिन सोशल मीडिया में यह मामला इतना फैल गया कि पुलिस को 20 अप्रैल को इस संबंध में मामला दर्ज करना पड़ा। मामला दर्ज होने के साथ ही 21 अप्रैल को पुलिस के हाथ दुष्कर्म की अफवाह फैलाने वाली महिला लगी। साथ ही 21 अप्रैल शाम तक यह बात साफ हो गई कि धर्मशाला में कोई भी दुष्कर्म नहीं हुआ है, बल्कि यह मात्र एक अफवाह थी। अब जाकर पता चला है कि धर्मशाला कॉलेज में हुए कथित सामूहिक दुष्कर्म मामले का संदेश कानपुर से निकला था। पुलिस अधिकारियों की जांच में यह खुलासा हुआ है। सोशल मीडिया में देश-विदेश में हड़कंप मचाने वाले कथित दुष्कर्म मामले का पहला संदेश कानपुर के एक युवक ने सोशल मीडिया में फैलाया था। इसके बाद इस संदेश ने सबको हिलाकर रख दिया था। हैरत की बात तो यह है कि मामले को शांत हुए महीनों का समय बीत चुका है, उच्च न्यायालय ने भी इसकी एफआइआर निरस्त कर दी है । फिर भी हाल ही में मामले के संदेश में सोशल मीडिया नया मैसेज फैला है। सहायक पुलिस अधीक्षक शालिनी अग्निहोत्री ने बताया कि उनकी निजी जांच में पता चला है कि मामले के संबंध में सोशल मीडिया पर फैला मेसेज कानपुर से निकला था। इस संदेश को फैलाने वाले का कहना है कि उसे भी किसी से यह संदेश प्राप्त हुआ है। सोशल मीडिया में धर्मशाला दुष्कर्म का मामला इतना अधिक सक्रिय हो चुका था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को मामले को जानकारी हो चुकी थी। इसके साथ ही इंटरनेट के गूगल में भी जब भी धर्मशाला नाम डाला जाता था तो सबसे पहले कथित दुष्कर्म की कहानी व उसके विरोध में हुए आंदोलन की फोटो आती थी। तो सबक ये है कि अगर कोई भी सूचना आप तक या हम तक किसी माध्यम से पहुंचती है तो उस पर तुरंत विश्वास कर आवेशित हो जाने की बजाय उस सूचना के तथ्यों की पड़ताल में जुटना चाहिए। आज के दौर में जब मोबाइल के जरिए हर शख्स तक सूचनाओं, संदेशों, खबरों, जानकारियों, अफवाहों की सीधी और तुरंत पहुंच है, हम सभी को बेहद जिम्मेदार व धैर्यवान बनकर सूचनाओं के जंजाल की पड़ताल कर लेनी चाहिए। विशेषकर मीडिया हाउसेज से तो यह अपेक्षा की ही जाती है कि कौवा कान ले गया कहावत की तर्ज पर विदेश से आई देश के किसी हिस्से की खबर पर आंख मूंदकर भरोसा करने की जगह खुद उस जगह जाकर पड़ताल करा लेना चाहिए नहीं तो दुनिया में भारत की पहले से ही बिगड़ी सामाजिक छवि को और ज्यादा धक्का लगेगा। साकरोद मामले में अब जाकर भारतीय मीडिया ने अपनी गलती को ठीक करना शुरू किया है और विदेशी दुष्प्रचार के सुर में सुर न मिलाते हुए मौके से जानकारी लेकर खाप पंचायत न होने की खबरों का प्रकाशन शुरू किया है। लेखक भड़ास4मीडिया के संस्थापक एवं संपादक हैं।


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