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Wed, 21 May 2025

मीडिया की मुश्कें कसने की तैयारी में सरकार

खरी-खरी, मीडिया            Aug 31, 2015


डॉ. मुकेश कुमार ख़तरे की घंटी तो पहले ही बज चुकी थी। अब सरकार ने सायरन भी बजा दिया है। स्पष्ट चेतावनी है कि मीडिया को बदलना होगा, उसे सरकार की इच्छा के हिसाब से ढलना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी बाँह मरोड़ी जाएगी, उसे दंडित भी किया जा सकता है। ख़बरों के मुताबिक सरकार विशेषज्ञों की एक ऐसी समिति (quick response team) बनाने जा रही है जो मीडिया के कवरेज पर तुरंत प्रतिक्रिया कर सके, उसकी कथित गड़बड़ियों को सुधारने के फौरन निर्देश दे सके। कैबिनेट में बाकायदा इस पर चर्चा की गई है और काम भी शुरू कर दिया गया है। यानी सरकार के इरादे पक्के हैं। वह प्रसार भारती को नियंत्रित-संचालित करने से ही संतुष्ट नहीं है, प्रायवेट मीडिया को भी अपने वश में करना चाहती है। मीडिया की स्वतंत्रता की चिंता करने वालों के लिए ये होश उड़ा देने वाली ख़बर होनी चाहिए, क्योंकि जब सरकारें मीडिया को सुधारने या निर्देशित करने की बात करती हैं तो उसका सीधा सा मतलब होता है कि वे उस पर अंकुश लगाना चाहती हैं, उसे सेंसर करना चाहती हैं। मीडिया की कमज़ोरियाँ निश्चय ही बड़ी समस्या बन चुकी हैं और उसे दुरुस्त करने के लिए क़दम उठाने की भी ज़रूरत है, मगर ये काम अगर सरकार पर छोड़ दिया गया तो बड़े ही ख़तरनाक़ नतीजे निकलेंगे। वास्तव में सरकार के लिए मीडिया की खराबियाँ एक बहाना भर हैं। अगर ये बहाना नहीं है तो वह ऐसा बहुत कुछ कर सकती थी जिससे मीडिया की स्थिति में सुधार होता। भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण यानी ट्राई की सिफारिशें ही सूचना प्रसारण मंत्री की टेबल पर अरसे से पड़ी हुई हैं, वह उन्हीं पर निर्णय ले सकती थी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसे उनसे मतलब भी नहीं है। मतलब है मीडिया को नाथने से ताकि वह उसके लिए


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