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मीडिया के सरकारी बंगलों को क्यों बख्श दिया हुजूर...?

खरी-खरी, मीडिया            Nov 14, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल में मंत्रियों और बड़े अफसरों के सरकारी बंगलों मे शाही सुविधाओं और रख-रखाव पर बेजा खर्च पर दैनिक भास्कर ने आज बड़ी खोजपरख रिपोर्ट प्रकाशित की है। अखबार के सिटी फ्रंट पेज [क्या रुतबे वाला अंगरेजी शीर्षक है.!] पर सात कालम मे छपी खबर के मुताबिक मंत्री-अफसरों के 900 बड़े बंगलों मे रख0-रखाव पर चार साल मे जहां 50 करोड़ रुपये खर्च किए गए वहीं शेष 11 हजार मकानो पर 80 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए । इन बड़े बंगलों में नए मंत्री या अफसर के आने पर हर बार तोड़फोड़ कर नए सिरे से सजाने सवारने पर लाखों स्वाहा कर दिये जाते हैं। चौंकाने वाली जानकारी यह निकल कर आई है कि 50 करोड़ का आंकड़ा सही नहीं है क्योंकि बहुत से मंत्री और अफसर इन बंगलों की साज-सज्जा पर अपने विभाग से भी रकम खर्च कराते रहते हैं.! दूसरे प्रेसपूल अर्थात पत्रकारों के कोटे के बड़े बंगलों के रख-रखाव पर हुये खर्च को इस खबर से गायब ही कर दिया गया है..? अगर इन रकमों का भी खुलासा किया जाए तो कुल रकम 75 करोड़ तक पहुँच जाएगी। कोटे के बंगलों की संख्या 200 के आसपास है जबकि कोटा 150 बंगलों का था। मीडिया पर विशेष अनुग्रह रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने दरियादिली दिखाते हुये प्रेसपूल का कोटा 230 बंगलों का कर दिया है। हम और आप इसका महज अनुमान ही लगा सकते हैं कि भ्रष्टाचार के लिए बदनाम विभागों में शामिल पीडब्लूडी के मंत्रियों और अफसरों की मीडिया के बंगलों के रख-रखाव पर कितनी नजरे इनायत रहीं होंगी ..! मुझे अपने सेवाकाल के समय की एक चर्चित खबर याद आ रही है जिसके मुताबिक तब के एक नामी गिरामी पत्रकार ने बाथरूम में बाथटब के लिए मोटी रकम खर्च करवाई थी..? दुख तो यह है कि जो हकीकत में पत्रकार हैं उनमे से ज़्यादातर के पास सरकारी बंगले हैं ही नहीं। जिनके पास हैं, उनके यहाँ रख-रखाव पर विभाग का ध्यान कम जाता है। अलबत्ता पत्रकार का रौब गालिब करने वाले झांकीबाज़ और कथित पत्रकारों के बंगले आपको जरूर चमाचम मिलेंगे।


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