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शीशे के घरों में मीडिया और विदेशी तर्ज पर ट्रेंड करते बेमतलब मुद्दे

खरी-खरी, मीडिया            Sep 06, 2015


ममता यादव राधे मां,इंद्राणी कथा के बाद अब दिग्विजय—अमृता विवाह। मीडिया को बौराने के लिये विषय मिल ही जाते हैं। वैसे मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने एक इंटरव्यू में ये स्वीकार किया है कि इंद्राणी—शीना केस की जांच में सबसे बड़ी रूकावट मीडिया ही बन रहा है। मारिया के अनुसार इस केस की जांच में मीडिया सबसे बड़ा चैलेंज बन रहा है और वह पुलिस के काम में हस्तक्षेप कर रहा है। चैनल आरोपी को खुद इंटेरोगेट कर रहे हैं। वरना इस केस में सबकुछ साफ है। इसी प्रकार शादी किसी की निजी जिंदगी का मामला है। आप उस पर अच्छा—बुरा कहने वाले कौन...? वैसे दिग्विजय सिंह ने जिस हिम्मत के साथ अमृता के साथ रिश्ते को कबूला था ऐसी हिम्मत है कितनों के पास। लड़कियों पर ट्राय सभी मारते रहते हैं और इसमें 50—55 पार वाले कुछ आगे ही होते हैं। कईयों के विवाहेत्तर संबंध होते भी हैं मगर वो इसे स्वीकार नहीं करते। जब इस रिश्ते का खुलासा पहली बार हुआ था तब किसी ने चुटकी लेते हुये इस पर मजाक किया था। मैंने उनसे सिर्फ यही कहा सर शीशे के घरों में तो सब बैठे हैं बाहर निकलने की हिम्मत कितनों में है। सवाल यही है कि इंडियन मीडिया को और सोशल मीडिया पर बैठे लोगों को दूसरों की निजी जिंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों बढ़ रही है। विदेशी मीडिया की तर्ज पर? इंग्लैंड की राजकुमारी डायना की मौत भी उनके जीवन में मीडिया की निजी दखलअंदाजी का परिणाम थी। राधे मां और इंद्राणी केस पर पैनल डिस्कसन कराके चैनल क्या साबित करना चाहते हैं? कई मामलों में इंडियन मीडिया विदेशी मीडिया की नकलें करता प्रतीत ही नहीं होता करता भी है। चाहे टीवी के रियलिटी शो हों या कुछ और। यहां तक कि बड़े अखबारों में भी अच्छे—खासे हिंदी के जानकारों को इ​सलिये नौकरी नहीं मिलती क्योंकि वे ट्रांसलेशन नहीं कर पाते। जाहिर सी बात है विदेशी अखबारों से उठायेंगे तब तो यहां पढ़ायेंगे। उसमें भी हद यह कि शुकराना अदा न करने का रिवाज ही बना​ लिया गया है। अति तो यह हो जाती है कई अंग्रेजी अखबारों की की खबरें हिंदी वाले बाईलाईन ही छाप लेते हैं। टॉप—ट्रेंड के इस जमाने में क्या यही मुद्दे रह गये हैं मीडिया के ट्रेंड को आगे बढ़ाने के लिये...?


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