डॉ़.प्रकाश हिन्दुस्तानी।
बचपन में स्कूल में लगभग हर निबंध की शुरूआत की जाती थी- ‘‘भारत एक कृषि प्रधान देश हैं।’’ अब अगर निबंध लिखना हो तो लिखा जा सकता है कि भारत एक महोत्सव प्रधान देश है। यहां हर घटना एक महोत्सव होती हैं। बड़े से बड़े आयोजन करने की कोशिश की जाती है। आयोजक व्यक्ति हो या संस्था, राजनैतिक पार्टी हो या धार्मिक संगठन, सभी लोग गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड तोड़ने और बनाने में लगे हैं। इसमें नया नाम जुड़ रहा है श्री श्री रविशंकर का, जो 11 से 13 मार्च तक विश्व संस्कृति महोत्सव करने जा रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस 'सांस्कृतिक ओलिंपिक' महोत्सव को करने की अनुमति दे दी है, लेकिन 5 करोड़ रुपये का जुर्माना भी किया है.
हमारे यहां सबसे बड़ा आयोजन शादी का माना जाता है। धीरे-धीरे जन्मदिन और विवाह की वर्षगांठ भी इसमें शामिल हो गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वेलेंटाइन-डे से लेकर मदर्स-डे तक शुरू हुए। सरकारी महाआयोजनों में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावा सालभर में अनेक इवेंट होते रहते हैं। हम भाषा के नाम पर इवेंट कर देते हैं, योग के नाम पर आयोजन कर देते हैं, सेनाओं के अलग-अलग दिवसों पर आयोजन करते हैं। यहां तक कि पोलियो की दवा पिलाने जैसे काम को भी हम एक महाआयोजन का रूप दे देते हैं। आप्रवासी दिवस, निवेशक महोत्सव, जल महोत्सव, रण महोत्सव आदि तमाम आयोजन करने में हम कभी पीछे नहीं हटते। इन आयोजनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। धार्मिक और आध्यात्मिक संगठन भी ऐसे आयोजनों से दूर नहीं है। बाबा रामदेव की प्रेरणा से अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव की शुरूआत हुई और अब संस्कृति के नाम पर एक आयोजन हो रहा है।
दिल्ली में मयूर विहार के पास यमुना के किनारे 11 से 13 मार्च तक होने वाले विश्व संस्कृति महोत्सव के आयोजन को लेकर राज्यसभा में हंगामा हुआ। सरकार अनेक विवादों में घिरी, लेकिन श्री श्री रविशंकर इस ‘सांस्कृतिक ओलंपिक’ के आयोजन के लिए प्रतिबद्ध है। इस आयोजन में करीब 155 देशों के 35 लाख लोग शामिल होंगे, इनमें 33 हजार कलाकार हैं। 40 तरह के वाद्ययंत्र बजाए जाएंगे। अनेक देशों के प्रमुख और विश्व के प्रमुख धर्मों के गुरू इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले हैं।
कहा जा रहा है कि इतना बड़ा सांस्कृतिक आयोजन पहले कभी नहीं हुआ। इस आयोजन का मंच ही सात एकड़ जमीन पर होगा। पूरे आयोजन के लिए करीब एक हजार एकड़ जमीन को समतल किया गया है। इस आयोजन को गिनीस बुक्स ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड वाले देखने आएंगे और अगर दावे के मुताबिक आवेदन हुआ, तो इस आवेदन का रिकॉर्ड भी दर्ज किया जाएगा।
अरबों रुपए के खर्च से इतने बड़े आयोजन की क्या जरूरत हैं, इस बारे में श्री श्री रविशंकर का कहना है कि यह आयोजन वसुधैव कुटुम्बकम के सूत्र वाक्य के तहत होगा, जिसमें आध्यात्म, संस्कृति और कला का अद्भुत समागम देखने को मिलेगा। यहां आनंद भी होगा और जमा भी, धार्मिकता भी होगी और आध्यात्मिकता भी। यह आयोजन श्री श्री रविशंकर द्वारा स्थापित आर्ट ऑफ लिविंग के 35 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया जा रहा है।http://www.malhaarmedia.com/wp-admin/post.php?post=18531&action=edit
श्री श्री रविशंकर का दावा है कि यह आयोजन दुनियाभर में अरबों लोगों के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का प्रदर्शन होगा। इसमें विश्वभर के प्रमुख नेता शिरकत करेंगे, साथ ही सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावसायिक क्षेत्रों के भी प्रमुख लोग आएंगे। इस आयोजन के दौरान शांति ध्यान का आयोजन भी तीन दिन तक लगातार होगा। आयोजन में शामिल होने वालों में बीस हजार से अधिक अतिथि विदेश के होंगे।

बात जितनी आसान लगती है, उतनी आसान नहीं है। वास्तव में दिल्ली में यमुना के तट पर इस तरह के आयोजन के लिए जमीन को समतल करना और अस्थायी निर्माण बनाना नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को पसंद नहीं आया। इस आयोजन से नाराज लोग नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दरवाजे पर गए और अर्जी दी कि इस तरह के आयोजन से पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा। यमुना पहले ही एक नाले में तब्दील हो गई है, ऐसे में आयोजन से यमुना का खतरा बढ़ जाएगा। उस इलाके में खेती करने वाले लोगों की जमीनों पर तैयार अधपकी फसलों को भी नष्ट कर दिया गया है और वहां पार्किंग की व्यवस्था की जा रही है। खेती की जगह पर जब हजारों वाहन आएंगे-जाएंगे, तब वह जमीन खेती करने लायक नहीं बचेगी। पर्यावरण की रक्षा के लिए ऐसे आयोजनों पर रोक लगानी चाहिए। आयोजन की विशालता को देखते हुए अंदाज लगाया गया कि अगर इतने बड़े आयोजन से होने वाले पर्यावरण के नुकसान पर जुर्माना ठोका जाए, तो वह कम से कम 120 करोड़ रूपए का होना चाहिए। देखते ही देखते दिल्ली सरकार, उत्तरप्रदेश सरकार, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम, जल संसाधन विभाग आदि के साथ ही केन्द्र सरकार भी आरोपों के घेरे में आ गई है।
आयोजन की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए गए। यह सवाल आयोजन में सेना की भागीदारी को लेकर थे। सेना ने यमुना में दो तैरते हुए पुल अस्थायी तौर पर बना दिए। इस पर भी सवाल उठा कि सेना का काम इस तरह के आयोजनों में मदद करना नहीं होना चाहिए। सो ने तर्वâ दिया कि जहां भी भारी भीड़ होती है और लोगों का जीवन खतरे में होने की आशंका होती है, तब सेना मदद के लिए आती ही है। इतने बड़े आयोजन में अगर भगदड़ मच गई, तो लोग यमुना के इस पार से उस पार कैसे जाएंगे। केन्द्र सरकार ने तर्क दिया कि जहां 150 से अधिक देशों के लोग आ रहे हो, वहां की सुरक्षा और निगरानी की जिम्मेदारी सरकार को निभानी ही होगी।
तीन दिन के आयोजन के लिए एक हजार एकड़ में बसाए जा रहे अस्थायी शहर से होने वाले पर्यावरण के नुकसान को लेकर श्री श्री रविशंकर ने स्पष्ट किया कि वहां कोई भी स्थायी निर्माण नहीं किया जा रहा है। उनका संस्थान पहले ही यमुना से 512 टन मलबा साफ कर चुका है। आयोजन की तैयारी में कोई भी पेड़ काटा नहीं गया है। केवल चार पेड़ों की कुछ डालियों की छंटाई की गई है। 35 लाख लोगों के लिए आने-जाने, बैठने और ठहरने की व्यवस्था कोई छोटी बात नहीं है। इसी के साथ लाइट, साउंट और सिक्युरिटी भी एक आम मुद्दा है, लेकिन जब आयोजन के बाद हम यहां से हटेंगे, तब यहां एक विशाल बॉयो डायवर्सिटी पार्क का निर्माण करके जाएंगे।
इस महाआयोजन के लिए दी गई अनुमति पर भी कई अखबारों ने सवालिया निशान लगाए है। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के व्यस्ततम इलाके में इतने ज्यादा लोगों का आना नई समस्या खड़ी कर सकता है। पहले यहां केवल दो-तीन लाख लोगों के ही आने की बात कही गई थी, लेकिन वह संख्या धीरे-धीरे बढ़कर 35 लाख तक पहुंच गई। अगर यह 35 लाख लोग एक दिन नहीं आए और तीन दिन में विभाजित हो गए, तो भी 10 से 15 लाख लोग तो हर दिन ऐसे आयोजन में होंगे ही। फिर इतने बड़े आयोजन में कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की हस्तियां शामिल होंगी, जिनकी सुरक्षा अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगी। भारत के राष्ट्रपति को भी इस कार्यक्रम में शामिल होना था, लेकिन किन्हीं कारणों से वे इसमें शामिल नहीं हो रहे है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कार्यक्रम के आने के बारे में अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। पहले तय कार्यक्रम के अनुसार उन्हें इस कार्यक्रम में शामिल होना था, लेकिन बाद में सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया। सुुरक्षा एजेंसियों ने कहा कि प्रधानमंत्री किसी भी अस्थायी मंच पर कार्यक्रम में शरीक नहीं हो सकते, उनके लिए सीमेट कांक्रीट का पक्का मंच बनाया जाना चाहिए। नर्मदा के तट पर पक्के निर्माण की अनुमति नहीं है। 30 एकड़ से अधिक जमीन पार्विंâग के लिए सुरक्षित रखी गई है। यह लाखों लोगों के वाहन खड़े करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।

आयोजन के विवाद में आने के कई कारण हैं। पहला तो यह कि आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने पहले आयोजन की अनुमति ही नहीं दी थी, लेकिन दुबारा आवेदन करने पर यह अनुमति दे दी गई। आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने पहले दो-तीन लाख लोगों के आने की ही बात कहीं थी, जो बढ़कर 35 लाख हो गई। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पूछा कि आखिर आयोजन में कितने लोग आएंगे। एक और मुद्दा इस बड़े आयोजन के पर्यावरण संबंधी नुकसान को लेकर भी हैं। दिल्ली पुलिस और फायर ब्रिगेड की अनुमति भी शुरू से नहीं ली गई। आयोजन स्थल पर होने वाले निर्माण को लेकर आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन का कहना है कि कोई भी निर्माण पक्का नहीं होगा और जो कुछ भी निर्माण होगा, वह पर्यावरण हितैषी होगा। सात एकड़ का स्टेज 40 फीट ऊंचा बनाए जाने पर भी सवाल किया गया कि आखिर इतना बड़ा मंच बगैर निर्माण सामग्री के कैसे बनाया गया। इसके जवाब में तर्क दिया गया कि बड़े-बड़े पत्थरों के सहारे खंबे खड़े किए गए और फिर वहां मिट्ठी से भराव किया गया। जमीन को समतल करने के लिए रेत और मिट्टी वापरी गई, कोई सीमेंट कांक्रीट नहीं लगाया गया। मजेदार बात यह रही कि कई सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों को यह बात भी पता नहीं थी कि मंच कितना बड़ा बनाया जा रहा है और उस पर कितने लोग आएंगे।
सोशल मीडिया पर विश्व संस्कृति महोत्सव को लेकर दिलचस्प टिप्पणियां देखने को आ रही है। इस पूरे आयोजन के पक्ष में श्री श्री रविशंकर के करीब डेढ़ करोड़ अनुयायी ट्विटर पर बार-बार संदेश दे रहे है। खुद रविशंकर भी इस बारे में ट्वीट कर रहे है, लेकिन विरोध करने वालों का मुंह कौन बंद कर सकता है। जेएनयू के कुछ छात्रों को यह भी सुनहरा अवसर महसूस हुआ, उन्होंने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग का जन्मदिन कोई राष्ट्रीय आयोजन कैसे हो सकता है? ऐसे आयोजन में सेना कैसे मदद कर सकती है और पुलिस तथा अन्य सरकारी एजेंसियां आयोजन को सफल बनाने में क्यों जुटी है। श्री श्री रविशंकर के करोड़ों अनुयायियों के वोट को देखते हुए अधिकांश राजनैतिक पार्टियों ने इस मुद्दे पर चुप रहना ही बेहतर समझा। फिर भी कुछ विघ्नसंतोषी स्थानीय नेता स्थानीय किसानों को साथ लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दरवाजे पर जा पहुंचे। ये किसान यमुना की इस क्षेत्र की जमीन पर तरबूज, खरबूज, ककड़ी, गोभी, पालक जैसी सब्जियां उगाते हैं। बारिश में इनके खेत डूब जाते हैं।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आर्ट ऑफ लिविंग वालों को पार्किंग के लिए जितनी जमीन दी गई थी, उन्होंने उससे कई गुना ज्यादा जमीन पर पार्किंग की व्यवस्था कर दी है।
श्री श्री रविशंकर ने लोगों से अपील की कि वे इस मामले को राजनैतिक तूल ना दें। आर्ट ऑफ लिविंग को दुनियाभर में 37 करोड़ लोग अपना चुके हैं। लाखों लोग इसके माध्यम से अपना जीवन बदल चुके हैं। आर्ट ऑफ लिविंग में नकारात्मकता के लिए कोई जगह नहीं है। आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यकर्ताओं ने यमुना की जो सफाई की है, उसकी सराहना करते हुए यमुना किनारे के ग्रामीण कहते हैं कि पहले यमुना इतनी गंदी थी कि हमारे जानवर भी यमुना के किनारे जाने में कतराते थे, लेकिन अब हमारे जानवर आराम से यमुना पार चले जाते है। हमने यमुना की सफाई करने के लिए बड़ी मात्रा में एंजाइम्स तैयार किए हैं और इसका उपयोग नर्मदा के पानी को साफ करने में किया जा रहा है।
(प्रकाश हिन्दुस्तानी की निजी वेबसाइट www.prakashhindustani.com से )
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