श्रीकांत सक्सेना।
हर स्थान की अपनी तरंगें (vibes) होती हैं।
मसलन पूजागृह की तरंगें,रसोईघर की तरंगें, बेडरूम की तरंगें या फिर शौचालय की तरंगें।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली में बहुत सी जगहें मशहूर हैं।
जैसे संसद भवन, इंडिया गेट,बुद्धा गार्डन, कुतुब मीनार,जंतर-मंतर या फिर रामलीला मैदान आदि-आदि।
हर जगह की वाइब्स का लोगों के ऊपर कोई न कोई ख़ास असर होता है।
जैसे संसद में घुसने के बाद ही ज़ेहन-ओ-दिल पर एक तरह की शैतानियत सी तारी हो जाती है।
इंडिया गेट और बुद्धा गार्डन में बूढ़े दिलों में भी आशिक़ी की कोंपलें फूटने लगती हैं।
जंतर-मंतर पहुंचते ही हर ज़्यादती ख़ामोशी के साथ बर्दाश्त करने वाला शख़्स भी ज़ोर-शोर से नारे लगाने लगता है।
इस क़दर ज़ोर से कि आप समझ सकेंगे कि इस जगह को जंतर-मंतर क्यों कहा जाता है।
वहीं रामलीला मैदान का तो कहना ही क्या।
दिल्ली के रामलीला मैदान से उठने वाली तरंगों का गुण है कि वे लोगों को भांड या नौटंकी बना देती हैं।
पुरुष स्त्रैण हो जाते हैं और महिलाएं सिंहनाद करने लगती है, नौटंकी स्थल जो ठहरा।
गए ज़माने में सीता से लेकर शूर्पणखा तक और कैकेई से लेकर मंदोदरी तक सभी भूमिकाएं पुरुष ही निभाते थे।
आज भी अक्सर यहाँ आकर पुरुष स्त्रियों के वस्त्र पहनकर,स्त्रियों जैसे हाव-भाव का प्रदर्शन करते हुए दिखाई देने लगते हैं।
स्त्रैण होना यूँ तो बेहतर इंसान हो जाना भी माना जाता है।
मनोविश्लेषकों ने इस विषय पर असंख्य ग्रंथों की रचना की है।
जिनमें विशेषकर इसी विषय का गहन अध्य्यन किया गया है कि स्त्रियों के अधोवस्त्रों की गंध का पुरुषों के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है।
अधिकांश अध्येता तो यह मानते हैं कि स्त्रियों के वस्त्रों की गंध पुरुषों को लगभग मदमस्त कर देती है।
रामलीला मैदान के आसपास घूमते हुए कितने ही पुरुष,शूर्पणखा के उन संवादों को दोहराते हुए मिल जाएंगे जो उसने आसक्त होकर राम-लक्ष्मण से बोले थे।
कुछ साल पहले म्हारे हरियाणे का एक बाबा जब हिमालय के तीन चक्कर लगाकर लौटा तो उसने इसी रामलीला मैदान में धूनी रमाने का फ़ैसला कर लिया।
अब रामलीला मैदान की वाइब्स का असर था या कोई और बात थी, बाबा यहां आकर योगभ्रष्ट होकर,स्त्रियों के अधोवस्त्र पहनकर,मदमत्त होकर इधर उधर दौड़ने लगा।
बाद में मालूम हुआ कि उसे दोबारा बाबा के असली कैरेक्टर में आने के लिए लंबे समय तक अपना इलाज कराना पड़ा।
रामलीला मैदान की वज़ह से बाबा की बाबागिरी ही जाती रही।
इसके बाद लोगों ने उसे लाला कहना शुरू कर दिया।
सो अगली बार जब भी आप दिल्ली जाएं और ऐसी जगहों पर भी जाना हो तो वाइब्स वाला फैक्टर इग्नोर मत कीजिए।_श्रीका़त
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