के एन गोविंदाचार्य।
आज गंगा सप्तमी की देशवासियों को हार्दिक बधाइयां । अक्षय तृतीया के दिन गंगा मैया का धरती पर अवतरण हुआ था । कैलाश मानसरोवर से निकलकर गंगा मैया गोमुख होते हुए सप्तमी के दिन गंगोत्री पहुंची ।
भागीरथ के साथ चलते-चलते वे गंगा दशहरा के दिन हरिद्वार में पहुंची । अब उनकी मैदानी यात्रा थी । उसी पर भागीरथ के साथ चलकर जनवरी मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर पहुंची । ऐसी कई संतों की मान्यता है । कैलाश मानसरोवर से गंगा जी धरती पर अवतरित हुई है ।
अब बात यमुना जी की हो, अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री से यात्रा प्रारंभ हुई । पर्वतीय क्षेत्र में उनकी यात्रा का मार्ग कठिन था । यमुना जी की उत्तराखंड यात्रा यमुनोत्री से पहाड़ी मार्ग से उतरती जाती है ।
यमुना जी की प्रयागराज तक की यात्रा हमलोगों ने की थी। एक विचित्र दृश्य देखा कि यमुना जी तो जाती, प्रांत, भाषा, संप्रदाय का भेद नहीं करती हैं ।
वह तो नदिया न पिए कभी अपना जल इस उक्ति से जीती चलती है पर अपना विकासनगर पर पहुंचकर, यह समझ कर धक्का लगा कि नदियों की प्रवाह रेखा प्रदेशों की सीमाएं निर्धारित करने में उपयोग किया गया है ।
यमुना जी सोचेंगी कि उन्होंने विकासनगर को पहले उत्तर प्रदेश में पूर्व किनारे की सीमा में माना और पौंटा साहिब के पश्चिम किनारे पर स्थित होने के कारण हरियाणा में जल दिया गया।
जोड़ने चली नदियों को ही प्रदेशों की विभाजक रेखा बना दिया गया ।
देहरादून उत्तराखंड में, सहारनपुर उत्तर प्रदेश में और यमुनानगर हरियाणा में है ।
सामान्य जन के लिए देहरादून, सहारनपुर सामाजिक संबंधों में पलता है । क्या राजनीति प्रशासन तंत्र का विभाजनकारी होना नियति है ?
खैर- यमुना जी यमुनानगर जिले से गुजरती हैं तो वहां उनकी यात्रा में भारी मात्रा में हस्तक्षेप शुरू होता है । प्रवाहरत वहाँ रोक लिया जाता है।
ऊर्जा प्रकल्प, अन्य ज़िलों, प्रदेशों के लिए सिंचाई, पेयजल की आवश्यकता पूर्ति लक्ष्य बन जाता है । यमुना जी को वाटर बॉडी बना दिया जाता है ।
अब आगे यमुना जी के मुख्य प्रभाव में कितना पानी रहे और कितना पानी सिंचाई, पेयजल आदि के लिए बाहर ले जाया जाए यह प्रश्न अब यमुना जी के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाता है ।
प्रवाह से नदी का अपना इकोसिस्टम का संबंध है । स्थिति और गति दोनों ही बातें नदियों के लिए महत्वपूर्ण है। जो बहे वह नदी, जो रुके वह तालाब, सरोवर या और कुछ और । इसलिए नदियां गतिमान रहे इसके लिए उनकी एवं इस सिस्टम को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं ।
स्थिति और गति के बिना नदी की अविरलता, निर्मलता की बात बेमानी हो जाती है । इकोसिस्टम अर्थहीन हो जाता है। वहाँ-वहाँ के हिस्सा पेड़, पौधों, जंगल, पशु,पक्षी, कीट, पतंग, खेती आदि सभी नदी समिति बीमार हो जाती हैं।
इसीलिए नदी की जिंदगी के लिए आवश्यक न्यूनतम पर्यावरणीयप्रभाह कहा जाता है। कुछ वैज्ञानिक मुख्य प्रभाव में हर मौसम का 70% कुछ अन्य 60 या 50 या 30 तक भी उतरते है। कुछ तो प्रकृति की सहनशक्ति की परीक्षा लेते हैं ।
नदी एक इकोसिस्टम है ।
जल के उस प्रवाह में कई तरह के जल जीव पलते हैं । बांधों, बैराज आदि प्रभावी होने से कई-कई स्थानों पर नदियां बिना पानी की हो जाती हैं ।
पैदल ही पार करने की स्थिति बनी है । जल कम होने से किनारे वृक्ष, झाड़ियां जो मिट्टी को बांधे हुए हैं वह टीले से हो जाते हैं । फलतः नदी में बालू, गाद आदि का असंतुलन हो जाता है । नदी कई जगह तालाब की शक्ल लेती है । नदी की अपनी खुद को स्वच्छ करने की क्षमता पर आघात होता है ।
प्राकृतिक प्रवाह इकोसिस्टम को नष्ट-भ्रष्ट करने का मानव को कोई अधिकार नहीं फिर भी वह व्यवधान उपस्थित करें तो प्रकृति दुरुस्ती का अपना रास्ता ढूंढ लेती है।
हथिनी कुण्ड सरीखे प्रयोगों से बाज आने की जरूरत है । उसके लिए जरूरी है कि मानव नदियों को केवल मनुष्यों के भोग के लिए वाटर बॉडी ना समझे । वह समझे और महसूस करे कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह की अपनी एक अस्मिता है ।
यह उसका अनउलंघ्नीय अधिकार है । मनुष्य को चाहिए कि वह कैफ़ियत से नदी एवं जल का उपयोग करें, न कि छेड़छाड़ यमुना जी हथिनी कुंड में रोका जाना न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव न रहने से आगे कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, सोनीपत के क्षेत्र में औद्योगिक प्रबंधन एवं सीवेज का निस्तारण ना होकर यमुना जी मेगा गटर के रूप में दिल्ली में दिखती हैं।
Comments