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जनहित पार्टी कांग्रेस का समर्थन नहीं करेगी लेकिन भाजपा का विरोध कर पाएगी?

खरी-खरी            Sep 11, 2023


कीर्ति राणा।

यह घोषणा ही अपने आप में किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि भाजपा को मजबूत करने के लिए पर्दे के पीछे रह कर काम करने वाले संघ निष्ठ कार्यकर्ता अलग पार्टी बनाने, चुनाव लड़ने का निर्णय भी ले सकते हैं।

चूंकि घोषणा कर दी है तो मानना ही पड़ेगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारकों ने अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरु कर दी है।

भाजपा सरकार को चुनाव लड़ने से लेकर चुनाव जीतने तक की सलाह देने वाले इन पूर्व प्रचारकों की यह पार्टी कांग्रेस का तो समर्थन करेगी नहीं पर खुल कर भाजपा का विरोध भी कर पाएगी इसमें भी संदेह है।

ऐन चुनावों से पहले ऐसे कौतुक का मर्म समझने वाले घाघ राजनीतिज्ञों का मानना है कि संघ के पूर्व प्रचारकों की यह जनहित पार्टी अपरोक्ष रूप से उन क्षेत्रों में अपने प्रत्याशी उतार सकती है जहां भाजपा के मुकाबले कांग्रेस मजबूत है।

जाहिर ये प्रत्याशी उन मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं जो भाजपा से खिन्न होने के बाद भी कांग्रेस को वोट देने से परहेज करते होंगे।

 ऐसे क्षेत्रों में न चाहते हुए भी संघ के पूर्व प्रचारकों की यह पार्टी भाजपा की मददगार हो जाएगी।

कभी ऐसा ही सपना भाजपा-संघ के थिंक टैंक माने जाने वाले गोविंदाचार्य ने भी देखा था। आज भाजपा को, संघ को यह पता लगाने की फिक्र नहीं है कि गोविंदाचार्य कहां हैं।

भोपाल के मिसरोद स्थित एक निजी स्कूल में हुई कार्यकर्ताओं की बैठक के बाद संघ के पूर्व प्रचारक अभय जैन ने कहा जनहित पार्टी गठन पश्चात पहली स्थापना बैठक हुई है। सभी लोगों ने अपना शपथ पत्र देकर पार्टी के गठन का प्रस्ताव कर दिया है।

हम चाहेंगे कि राजनीतिक दलों को चलाने का ढर्रा चमक-दमक, खर्चीला और चुनाव जीतने का जो सिस्टम है वो मूल मुद्दों पर हो।

शासन की मूल नीतियां, गवर्नेंस के साथ ही चुनाव लड़ने के तौर तरीकों में सुधार आए। उसके लिए हमारा नया दल बन रहा है।

ऐसे सुधारों की पहल नानाजी (चंडिकादास अमृतराव) देशमुख ने खुद अपने से की थी। 1977 में जब जनता पार्टी जब जनता पार्टी की सरकार बनी, और मोरारजी देसाई उन्हें अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल कर रहे थे तो उन्होंने यह कहकर कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें, मन्त्री-पद ठुकरा दिया था।

नानाजी देशमुख के इस तरह के तमाम सुधारों से पार्टियों को पवित्र करने की पहल की थी किंतु भाजपा सहित अन्य दलों ने उनके सुझावों को भी नजरअंदाज कर दिया।

 



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