डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
हर मैच जीतने के लिए ही खेलना चाहिए, लेकिन कई बार खेल का बहिष्कार करना जीत से भी बड़ा होता है। ओलम्पिक खेलों में यह दर्जनों बार हो चुका है। ऐसा ही होता अगर 14 सितम्बर 2025 को दुबई में भारत पाकिस्तान से नहीं खेलता। इससे आसमान नहीं टूट पड़ता, लेकिन खेलने से टूट पड़ा है। जीत के बाद भी हमारे खिलाड़ियों ने पाकिस्तान के खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया, लेकिन पाकिस्तानी खिलाडियों के पिछवाड़े बल्ला नहीं मारा। हमारी टीम के जांबाज़ों की दशा उन बेचारी नगरवधुओं जैसी हो गई है जो ग्राहक को चुम्मा नहीं देती, लेकिन सर्वस्व न्यौछावर कर देती है।
- किसने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते?
- किसने कहा था कि मेरी नसों में खून नहीं, सिंदूर बहता है?
- किसने कहा था कि भारत आतंकवाद और उनके समर्थकों के खिलाफ दृढ़ और निर्णायक कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है?
- किसने कहा था कि आतंकियों को ऐसी सजा मिलेगी जो उनकी बात कल्पना से परे होगी?
- किसने कहा था कि भारत का मनोबल कभी नहीं टूटेगा?
- किसने कहा था कि आतंकवाद एक बड़ा खतरा है... हम हमलावरों और उनके समर्थकों को बख्शेंगे नहीं?
फिर किसके कहने पर ऑपरेशन सिंदूर किया गया? किसके कहने पर उसे विराम दिया गया? वो कौन है जिसने ऑपरेशन महादेव लॉन्च किया था?
वो कौन है जो रूस और यूक्रेन का युद्ध रुकवा सकता है? वो कौन है जो कह दे तो पूरा देश एक साथ खड़ा हो जाये लेकिन वो कौन है जो एक क्रिकेट मैच नहीं रुकवा सकता?
सुनील गावस्कर ने सच कहा है कि बीसीसीआई खेल मंत्रालय का अधीन नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री कहते तो मैच रुक जाता।
नहीं रुका इससे बीसीसीआई को कुछ सौ करोड़ का फायदा हुआ होगा, लेकिन रुक जाता तो इसका फायदा और भी बड़ा होता। इस मैच से पाकिस्तान को भी सौ-पचास करोड़ का फायदा हुआ होगा, इसका उपयोग वह आतंकियों के लिए वियाग्रा खरीदने में करेगा। यही उसकी फितरत है।
बीसीसीआई के फायदे की किसको पड़ी है? आईसीसी के मुनाफे से किसकी बांछें खिल जाती है?
अनुराग ठाकुर कहते हैं कि भारत द्विपक्षीय मैच नहीं खेलता... लेकिन मल्टीनेशनल में मजबूरी है। क्या सचमुच?
भारत के बॉयकॉट से स्पॉन्सरशिप और एड रेट्स गिर जाते, टिकट के अनबिके रहने से नुकसान बढ़ता; लेकिन यह भारत की 'टेरर के खिलाफ जीरो टॉलरेंस' इमेज को मजबूत करता।
उन विरोधी सांसदों के हौसले और विश्वास को बढ़ाता जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद डिप्लोमैटिक विजिट पर दुनियाभर में गए थे।
बीजेपी के प्रवक्ता अगल बगल झांककर ऊलजलूल जवाब देने से बच जाते, उन्हें खिसियाना नहीं पड़ता।
संजय राऊत यह नहीं कह पाते कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना उन बहनों का अपमान है जिनका सिंदूर मिटा दिया गया। यह हमारे सैनिकों का अपमान है।
अब खिसियाने का कोई अर्थ नहीं है।
जब खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते', तो 'खून और क्रिकेट' कैसे बह सकते हैं? यह शहीदों का अपमान है। यह भारतवासियों की भावनाओं से खिलवाड़ और शहीदों के खून की बेइज्जती है।
क्या यह डायलॉग केवल अमिताभ बच्चन के लिए फिल्म के कहने के लिए ही था कि NO का मतलब है नहीं !
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