मल्हार मीडिया ब्यूरो।
अरावली रेंज को लेकर उपजे विवाद का सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लिया है. सोमवार को चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच इस पूरे विवाद की सुनवाई करेगी. बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस ए जी मसीह भी रहेंगे. अरावली दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है जो करीब 700 किमी लंबी है.
यह दिल्ली-एनसीआर को थार रेगिस्तान की धूल और मरुस्थलीकरण से बचाने वाली एक ‘प्राकृतिक ढाल’ है. हाल ही में सरकार की ‘100 मीटर ऊंचाई’ वाली नई परिभाषा पर भारी विवाद खड़ा हुआ था. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस नियम से अरावली का 90% हिस्सा खत्म हो सकता है. केंद्र सरकार ने हालांकि नए माइनिंग पट्टों पर रोक लगा दी है. लेकिन अब मामला देश की सबसे बड़ी अदालत के पास है. सोमवार की सुनवाई अरावली के अस्तित्व के लिए बहुत ही निर्णायक साबित हो सकती है.
अरावली को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने क्या कड़े निर्देश दिए हैं?
पर्यावरण मंत्रालय ने बुधवार को राज्यों को कड़े निर्देश जारी किए थे. अब अरावली में किसी भी नए खनन पट्टे (Mining Lease) पर रोक होगी. यह प्रतिबंध दिल्ली से गुजरात तक पूरे भूभाग पर लागू होगा. आईसीएफआरई (ICFRE) को अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान करने को कहा गया है. इन क्षेत्रों में भी खनन को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाएगा. केंद्र सरकार ने अरावली की अखंडता बचाने का वादा किया है. पुरानी खदानों को भी कोर्ट के आदेशों का पालन करना होगा. सरकार का लक्ष्य अनियमित माइनिंग को पूरी तरह रोकना है. मरुस्थलीकरण रोकने के लिए अरावली का बचना बहुत जरूरी है.
भारत सरकार ने मार्च 2023 में ‘अरावली ग्रीन वॉल’ पहल शुरू की थी. इसका लक्ष्य गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में 5 किमी चौड़ा ग्रीन बेल्ट बफर बनाना है. यह प्रोजेक्ट 6.45 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करेगा ताकि मरुस्थलीकरण को रोका जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की एक नई परिभाषा को स्वीकार किया है. इसके तहत केवल 100 मीटर से ऊंचे पहाड़ों को ही अरावली माना जाएगा. पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस पर गहरी निराशा जताई है. ‘सतत संपदा’ के निदेशक हरजीत सिंह ने इसे अरावली का ‘स्लो डिलीशन’ कहा है. उनके अनुसार यह उत्तर भारत की जीवन रेखा को मिटाने जैसा है. इस परिभाषा से लेपर्ड कॉरिडोर और विलेज कॉमन्स को खतरा होगा. केवल ऊंची चोटियों को बचाना पर्याप्त नहीं है. छोटी पहाड़ियां भी इकोसिस्टम का हिस्सा होती हैं. विमलेंदु झा ने चेतावनी दी कि इससे 90% अरावली गायब हो सकती है. यह फैसला पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा जोखिम बन गया है.
दिल्ली की जहरीली हवा और अरावली का कनेक्शन
दिल्ली पहले से ही जहरीली हवा से जूझ रही है. अरावली दिल्ली के लिए धूल और प्रदूषण के खिलाफ आखिरी कवच है. भारती चतुर्वेदी ने कहा कि अरावली के बिना दिल्ली रहने लायक नहीं बचेगी. कोई भी प्लांटेशन अरावली की जगह नहीं ले सकता. अरावली हवा से जहरीले उत्सर्जन को सोखने का काम करती है. पहाड़ खत्म हुए तो प्रदूषण का स्तर जानलेवा हो जाएगा. बच्चों और बुजुर्गों की सेहत पर इसका सबसे बुरा असर पड़ेगा.
संसद में भी अरावली का मुद्दा जोर-शोर से गूंजा. सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार ने अरावली के ‘डेथ वारंट’ पर साइन किए हैं. उन्होंने फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट में संशोधनों को वापस लेने की मांग की. प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रदूषण को एक बड़ा सार्वजनिक मुद्दा बताया. उन्होंने कहा कि पर्यावरण के मुद्दे राजनीतिक नहीं होते. कांग्रेस ने संसद में इस पर बहस की मांग भी उठाई है. विपक्ष का आरोप है कि सरकार नियमों को ‘बुलडोज’ कर रही है. जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसी नीतियां खतरनाक साबित होंगी.
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