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युवा आबादी का डिवीडेंड चैक़ और नए खेल का इंतजार

खरी-खरी            Oct 01, 2022


श्रीकांत सक्सेना।

हिंदुस्तान के पास युवा आबादी एक डिवीडेंड चैक़ है।

सरकार के पास विकल्प है कि वह इस चैक को भुना ले।

जानकार बता रहे हैं कि इस चैक की वैधता बहुत जल्दी ख़त्म हो जाएगी।

सरकार इस चैक को भुनाने में कोई रुचि नहीं दिखा रहीं।

यह चैक है कार्यक्षम युवाओं की बहुत बड़ी संख्या।

जनसांख्यिकी के जानकार बताते हैं कि अर्थव्यवस्था का पहिया घूमते रखने के लिए हर साल कम से कम दो करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा करना ज़रूरी है।

कृषि और उद्योग समेत अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करना तो दूर,यहाँ रोज़गार के अवसर तेज़ी से सिकुड़े हैं।

कोविड के आक्रमण ने ही लगभग दस करोड़ रोज़गार खा लिए।

विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने चुनाव घोषणापत्रों में हर साल दो करोड़ रोज़गार पैदा करने का वायदा किया था।

(अर्थशास्त्रियों ने पहले ही बता दिया था कि पहिया घूमते रहने के लिए कम से कम दो करोड़ रोज़गार,हर साल पैदा किए जाना अनिवार्य है। राजनीतिक दलों ने यह आँकड़ा वहीं से उड़ाया ।)

नये रोज़गार पैदा करना तो दूर,उल्टे दस करोड़ रोज़गार गँवाने के बाद अब सरकार के पास इन युवाओं को उलझाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं।

कभी नाले से गैस,कभी पकौड़े का ठेला और युवा इस पर भी राज़ी हो जाएँ तो रोज़गार से ज़्यादा ज़रूरी राष्ट्र रक्षा,राष्ट्र पर बलिदान हो जाना रोज़गार माँगने से ज़्यादा बेहतर विकल्प है।

लंबे समय तक रोज़गार की तलाश में लगी लाइनों में खड़े-खड़े जब ये नौजवान थककर या ऊबकर सरकारी वायदों का शवपरीक्षण करने में न जुट जाएं।

इसके लिए नये-नये शगूफ़े छोड़कर मामले को टालते रहना,सरकार का अभीष्ट है।

बहरहाल ताक़त और संभावनाओं से भरे इस हाथी को क़ाबू में रखने के लिए सरकार इसके पिछवाड़े में समय-समय पर कई तरह के इंजेक्शन लगाती रहती है।

धर्म या राष्ट्र की स्ट्रांग ड्रग्स भी पिला रही है।

हाथी धीरे-धीरे हर नशे को हराने लगा है, या ये नशा अब उसपर बहुत हल्का ही असर छोड़ पाता है।

यह हाथी बार-बार इस नशे से बाहर निकलने की कोशिश करता है और अक्सर अपनी खून भरी आँखों से सरकार को देखना शुरु कर देता है।

तो सरकार सहम जाती है, तो सरकार को अपनी जगह कोई और पुतला खड़ा करने की फ़िराक़ में है।

यह पुतला है आबादी का डर।

हालाँकि भारत के बहुत से राज्यों में ख़ासकर दक्षिण और पश्चिम के राज्यों जैसे तमिलनाडु,कर्नाटक,तेलंगाना व महाराष्ट्र आदि में आबादी की वृद्धि दर डेढ़ फ़ीसदी से भी नीचे गिर चुकी है।

यानि आबादी के स्थायित्व के लिए ज़रूरी वृद्धि दर से भी नीचे।

और तो और यूपी-बिहार-मध्यप्रदेश-राजस्थान जैसे उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में में भी यह वृद्धि दर घटकर दो फ़ीसदी के आसपास रह गई है।

यानि आबादी के स्तर को जस का तस रखने लायक़ ही।

कुल मिलाकर सालाना वृद्धिदर के लिहाज़ से हिंदुस्तान की आबादी निरंतर सिकुड़ रही है। इसके बावजूद सरकार अब उनींदे हाथी को भ्रमित करने के लिए हर मुसीबत और असफलता के लिए आबादी को ज़िम्मेदार बताना चाहती है।

(हालाँकि सरकार के आँकड़े ही इसे झुठला रहे हैं।)

सरकार का मानना है आबादी को तमाम नाकामयाबियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर न केवल आत्महीनता से ग्रस्त नौजवानों को थोड़े दिनों के लिए बहकाया जा सकेगा।

बल्कि लगे हाथ ख़ाली बैठे बीस-बीस बच्चे पैदा करने वाले काल्पनिक दुश्मनों को भी इस मुसीबत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकेगा।

सुना है सरकार ने इसके लिए व्यापक तैयारियाँ की हैं।

लेकिन सुशांत राजपूत जैसा कोई शगूफा तो दूर उल्टे अंकिता भंडारी गले पड़ गई।

हमेशा की तरह इसमें भी श्रेष्ठ चाल चरित्र और चेहरे बेनकाब हो रहे हैं।

meme बनाना अब प्रतिपक्ष को भी आ गया है,  रोजाना एक से बढ़कर एक मीम बन रहे हैं। अलसाया हाथी भी नींद से जाग रहा है।

बहरहाल हाथी को क़ाबू में रखना ज़रूरी है,सो हो सकता है आने वाले दिनों में देश 'बेतहाशा' बढ़ती आबादी के पीछे तेज़ी से दौड़ा दिया जाए या जनसंख्या नियंत्रण जैसा कोई क़ानून।

जो हो सो हो, या यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसा कुछ हो।

एक बात पक्की है हमारा देश एक मुकम्मल 'शो मैन' के हाथों में है।

वास्तविक हिंदुस्तान कैसी ही ज़िंदगी जी रहा हो, पर्दे पर हमें हर चीज़ रंगीन ही नज़र आएगी।

हम सब भी इस नये खेल के इंतज़ार में हैं।

देखना ये है कि युवा शक्ति नाम का ये हाथी असली हाथी सिद्ध होता है या फिर सर्कस का हाथी बनकर रह जाता है। शुभमस्तु!

 

 



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