पदमपति पद्म।
घरों में झाड़ू- पोछा लगा कर एमपीएड कर रही सुमन ने हौसला नहीं खोया है
सिर पर गोबर खाद की बोरी उठाए पसीने से नहाई हुई से मैंने जब पूछा, " तुम पढ़ती लिखती क्यों नहीं ?
अपना मुंह पोछते हुए उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर मैं ऐसा हड़बड़ा गया कि हाथ से मोबाइल छूट कर जमीन पर जा गिरा। " अंकल जी मैं बीपीएड कर रही हूं धीरेन्द्र महिला पीजी कालेज से।" कितनी फीस लगती है?
दो साल के कोर्स में चार सेमेस्टर के लगभग डेढ़ लाख रुपये। इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कैसे करती हो ? उसके जवाब ने मुझे एक बार फिर चौंका दिया ? गोबर से खाद बना कर बेचती हूं और कई घरों में झाड़ू पोछा लगाती हूं।
बताने की जरूरत नहीं कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग सौ मीटर की दूरी पर स्थित पुश्तैनी मकान कारीडोर की भेंट चढ़ जाने के बाद कुछ समय तक परिवार महमूरगंज की एक सोसाइटी में रहा।
छोटे बेटे ने सुंदरपुर में मकान बना लिया और ढाई वर्ष से हम सभी वहां रह रहे हैं। पत्नी विमला का एक ही शौक है बागवानी का। इसी सिलसिले में घर की परिचारिका मालती के पड़ोस में सुमन पाल का परिवार रहता है। वहीं से जब पहली बार सुमन खाद लेकर आयी तब उससे सारी जानकारी मिली।
इस बच्ची का अपनी मेहनत के बल पर पढाई के लिए खर्च निकालना सचमुच दिल को छू गया। आज सुमन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से एमपीएड कर रही है। आगामी नवंबर में वह शारीरिक शिक्षा में परास्नातक भी हो जाएगी।
पहली मुलाकात में जब उससे माता-पिता की मदद के बिना पढ़ाई का खर्च निकालने की मर्मस्पर्शी कहानी सुनी तो घर मे उसे काम देने के साथ ही एक प्रयास किया कि बीपीएड के अंतिम सेमेस्टर के लिए साढ़े सत्रह हजार की फीस माफ हो जाए। कालेज के अधिष्ठाता भाजपा सरकार में मंत्री रवीन्द्र जायसवाल हमारे परिचित हैं।
साफ सुथरी छवि है। मां लक्ष्मी की उन पर असीम अनुकम्पा है। सरकारी भत्ता नहीं लेते, ऐसा सुना जाता रहा है। उनसे मैने और मेरे घनिष्ठ मित्र अमिताभ भट्टाचार्य ने सुमन की स्थिति के बारे में बताते हुए फीस माफ करने का आग्रह किया। उन्होंने हमें तो हां कहा पर कालेज की प्रधानाचार्य से नहीं।
प्रिंसिपल की ओर से महज दो हजार की छूट मिली । उस दिन के बाद से मैने आज तक रवीन्द्र से बात तक नहीं की। क्या राजनेता इस कदर संवेदनशून्य हो चुके हैं कि एक गड़ेरिये की बच्ची की साहसिक कहानी जान कर भी उनका दिल नहीं पसीजता ?
चार बहनों और एक भाई में तीसरे नंबर की सुमन पाल ओबीसी है। कबड्डी में वाराणसी जिले का वर्षों तक प्रतिनिधित्व कर चुकी सुमन शारीरिक शिक्षक पद के लिए कई प्रदेशों में आवेदन कर चुकी है।
लेकिन क्रीमी लेयर वाले इस कदर हावी हैं कि सुमन जैसियों को अभी तक मायूसी ही हाथ लगती रही है। 24 की उम्र हो चुकी है इसलिए पैरा मिलिटरी, अग्निवीर, और पुलिस में भर्ती की पात्रता वो खो चुकी है। लेकिन हौसला उसने नही खोया है।
घर वाले शादी करना चाहते हैं जो उसे मंजूर नहीं। कहती है- अंकल जी झाड़ूपोछा ही मेरी नियति नहीं है। देर ही सही एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी। उसकी छोटी बहन भी उसी तरह से काम करके बीपीएड कर रही है। नही बता सकता कि उसका हश्र क्या होगा।
नहीं जानता कि सुमन का मुस्तकबिल क्या होगा। लेकिन मां भारती की इस स्वाभिमानी बेटी की जिजीविषा , लगन और मेहनत पर हर किसी को गर्व जरूर होगा। काशी विश्वनाथ तुम्हारी मुराद पूरी करें, यह कामना तो हम सब कर ही सकते हैं।
फेसबुक वॉल से
Comments