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हृदय गति के बारे में डर नहीं जागरूकता जरूरी

खास खबर            Oct 21, 2023


डॉ. रामावतार शर्मा।

कोविड महामारी के बाद असंख्य घरों में रक्तचाप, रक्त शर्करा, रक्त ऑक्सीजन और हृदय गति नापने के इलेक्ट्रोनिक यंत्र आ गए हैं। लोगों की यह जागरूकता कुछ हद तक एक अच्छी बात है पर समय के साथ एक अन्य बात भी चिकित्सकों की नजर में आने लगी है। लोग जागरूक होने की बजाय भयभीत होने लगे हैं और कई तो ओसीडी जैसे मनोरोग से भी ग्रसित होने लगे हैं जिसमें वे दिन में कई बार बीपी और हृदय गति नापते रहते हैं। व्हाट्सएप जैसे सामाजिक मीडिया पर कई तथाकथित स्वयंभू ज्ञानी लोग न जाने कितनी तरह का ज्ञान या यूं कहिए अज्ञान भी परोसते रहते हैं जिनमें हर बात का सामान्यकरण कर दिया जाता है जबकि वास्तविकता में स्वास्थ्य संबंधी अधिकतर पैमाने व्यक्तिगत होते हैं, समय और परिस्थियों के अनुरूप परिवर्तनशील होते हैं। हृदय गति भी ऐसा ही एक पैमाना है जिसको बारे में अनभिज्ञ लोग बड़ी मानसिक पीड़ा से गुजरते हैं और हर समय किसी चिकित्सकीय आपातकाल के भय से आक्रांत रहते हैं।

 हृदय गति एक गत्यात्मक ( डायनेमिक ) क्रिया है जिसमें हृदय एक मिनट में 60 से 100 बार तक धड़क सकता है और यह सीमा सामान्य मानी जाती है। अधिकतर लोग अपनी हृदय गति के 72 प्रति मिनट से जरा सा इधर उधर होते ही बेहद घबरा जाते हैं और मानने लगते हैं कि अब तो मृत्यु किसी भी समय आ सकती है। यह एक व्यक्तिगत त्रासदी वाली मनोस्थिति है जिसे व्हाट्सएप पर तथाकथित जन हितैषी लोग जाने अंजाने और हवा देते रहते हैं।

ध्यान रहे कि हृदय गति अपनी सामान्य सीमा 60 - 100 के बाहर भी हो सकती है तथा फिर भी व्यक्ति को कोई खतरा नहीं होता है। हमें उन परिस्थितियों के बारे में मोटे तौर पर पता होना चाहिए जिनमें हृदय गति 60 से कम और 100 से ज्यादा होने के बावजूद सामान्य हो सकती है। ऐसी जानकारी हमें भय से मुक्त रहने में सहायक होती है।

  सर्वप्रथम तो सामान्य सीमा के बारे में जानिए कि यह काफी हद तक व्यक्तिगत होती है। हमें हमारी अपनी सामान्य हृदय गति की सीमा के बारे में जानना लाभदायक हो सकता है ताकि किसी यकायक बड़े परिवर्तन का पता चल सके। सामान्यतः 60 से नीचे को सुस्त हृदय ( ब्रेडिकार्डिया ) और 100 के ऊपर की हृदय गति को त्वरित हृदय ( टेकीकार्डिया ) कहा जाता है जब आराम की स्थिति में हृदय गति को गिना जाता है। लेकिन यह गति उम्र, जीवनशैली, बीमारी, निद्रा की स्थिति, शारीरिक वजन और मनोस्थिति आदि से प्रभावित होती रहती है। धावक, टेनिस खिलाड़ी आदि में चूंकि हृदय एक ही संकुचन में पर्याप्त रक्त प्रवाह कर देता है तो इन लोगों में हृदय गति 60 या फिर उससे भी कम 45 प्रति मिनट तक भी सामान्य मानी जाती है जबकि कसरत  या दौड़ नहीं लगाने वाले लोगों के हृदय की पंपिंग क्षमता कम होने से कारण उनके हृदय को अधिक बार धड़कना पड़ता है ताकि पूरे शरीर में रक्त पहुंच सके। इसी तरह से तंबाकू सेवन, मधुपान, तनाव, मानसिक अशांति, गर्भावस्था, बीमारी और रक्त स्राव या थक्का आदि सभी परिस्थितियां हृदय गति बढ़ा देती हैं। कई तरह की दवाएं और तथाकथित बुलंदियां छूने की लिप्सा भी हृदय गति को तीव्र बनाए रखती हैं।

  इसके विपरीत धावक, ध्यानी ( मेडिटेशन ) और धर्यवान का हृदय चूंकि अधिक सशक्त होता है तो ऐसे लोगों के हृदय को कम कार्य करना पड़ता है जिसके फलस्वरूप उसकी हृदय गति 45 से 60 के बीच में भी सामान्य मानी जाती है। इस तरह से यदि कोई दवा या ह्रदय संबंधी रोग के द्वारा जनित न हो तो 60 या उससे कुछ कम हृदय गति प्रति मिनट बनाए रखना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हृदय गति को कुछ लोग दिन में तीन चार बार गिनते रहते हैं। यह एक भय का मनोविकार है जिससे तुरंत मुक्त हो जाना चाहिए और हमें हमारे शरीर की क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए।

संतुलित भोजन जो समयानुसार किया जाए, न्यूनतम आवश्यकताओं की जीवनशैली और सक्रिय दिनचर्या बनाते हुए साल में एक दो बार हृदय गति की जानकारी लेना काफी होता है। आनंदित मन और कार्यशील शरीर आपके दीर्घायु होने में बड़े सहायक होते है। आजकल के विभिन्न इलेक्ट्रोनिक यंत्रों द्वारा अत्यधिक जानकारियों का कचरा एक तरह का मानसिक प्रदूषण पैदा करता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति हर पल मृत्यु भय या किसी अनिष्ठ की आशंका से घिरा रहता है। ऐसा होने पर जीवन की गुणवत्ता समाप्त हो सकती है। जीवन में अज्ञान एवम् अत्यधिक ज्ञान दोनों से ही बचना चाहिए। लबालब तो बस आनंद, स्नेह और करुणा ही चाहिए।

 

 



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