डॉक्टर रामावतार शर्मा।
आजकल भारत में डेंगी बुखार का जबरदस्त प्रकोप फैला हुआ है। तकरीबन हर व्यक्ति जानता है कि डेंगी मादा एडिस मच्छर के काटने से हो सकता है यदि उस मच्छर में इसके वायरस मौजूद हों।
मुख्य लक्षण तेज बुखार, बदन दर्द आदि होते हैं। डेंगी के 5 प्रतिशत रोगी गंभीर रूप से बीमार होते हैं और डॉक्टर और जन सामान्य में इस बारे में व्यापक जानकारी अत्यावशक है क्योंकि यह बुखार हर साल आता रहेगा
और इसके विरुद्ध पूरी इम्यूनिटी कभी विकसित नहीं हो पाएगी।
होता तो बल्कि उल्टा है कि दूसरी बार होने वाला डेंगी पहले से ज्यादा खतरनाक होता है। इस वायरस के चार स्ट्रेन तो हम जानते हैं पर कुछ और भी हो सकते हैं।
पहले तो यह जानना बहुत जरूरी है कि मोटे तौर पर होता क्या है। यह वायरस हमारे शरीर में 3-7 दिन तक सक्रिय रह सकता है। यह खासतौर पर खून का थक्का बनाने वाली प्लेटलेट्स को नष्ट करता है।
वायरस खून की सूक्ष्म रक्तवाहिनियों में अति सूक्ष्म छिद्र कर देता है जहां से सबसे छोटी होने के कारण प्लेटलेट्स बाहर निकल कर मर जाती हैं। उनके बाद श्वेत रक्त कोशिकाएं नष्ट होती हैं।
यह प्रक्रिया कोई 5-6 दिन जारी रहती है जिसके बाद पहले श्वेत रक्त कणिकाएं और फिर प्लेटलेट्स बढ़ने लगती हैं।
यहां पर एक और बड़ी घटना होती है जो होती तो है अधिक हानिकारक पर उस तरफ कोई ध्यान नहीं देता परंतु इस घटने वाली प्रक्रिया की जानकारी ही जीवन की रक्षा कर सकती है।
डेंगी बुखार के दौरान रक्त कोशिकाओं के अलावा खून से पानी भी बाहर निकलने लगता है जिससे शरीर में भारी मात्रा में आंतरिक निर्जलीकरण ( डिहाइड्रेशन ) हो जाता है जिसके कारण रोगी संक्षोभ ( शॉक) में चला जाता है,
रक्तचाप गिर जाता है, नब्ज क्षीण पड़ जाती है, शरीर ठंडा हो जाता है। पेट में दर्द, उल्टियां, जी मचलाना, अत्यधिक कमजोरी आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। ऐसे रोगी को सघन चिकित्सा की आवश्यकता होती है वरना मृत्यु की संभावना बन जाती है।
चूंकि प्लेटलेट्स की गिनती रिपोर्ट्स में सामने रहती है तो सभी का ध्यान उधर ही लगा रहता है प्लेटलेट्स संख्या के साथ साथ शरीर में हो रहे निर्जलीकरण की तरफ भी ध्यान होना चाहिए।
मृत्यु का प्रमुख कारण निर्जलीकरण है। प्लेटलेट्स तो दूसरे व्यक्ति से लेकर चढ़ाई जा सकती हैं।
डेंगी में किसी भी हालत में दर्द की दवाइयां जैसे एस्पिरिन, आइबुप्रोफेन, मेफेनेमिक एसिड, डाइक्लोफेनेक आदि नहीं लेनी चाहिए।
पैरासिटामोल भी सिर्फ तेज बुखार में ही लेनी चाहिए क्योंकि अत्यधिक पसीना निकाल कर यह भी डिहाइड्रेशन में वृद्धि करती है एवम् इम्मून प्रतिक्रिया को भी बाधित करती है।
एंटीबायोटिक जैसे कि एजिथ्रोमाइसिन लेना भी हानिकारक होता है क्योंकि एंटीबायोटिक वायरस पर प्रभावहीन होती है पर भारत के लोग इस पर बिना किसी आधार के विश्वास करते हैं जो की एक नासमझी ही है।
बुखार को नियंत्रित करने के लिए नल के पानी या फिर गुनगुने पानी की पट्टियां दोनों हाथों की कोहनी के सामनेवाले भाग और गर्दन पर करनी चाहिएं।
माथे पर बर्फ या ठंडे पानी की पट्टी कोई ज्यादा उपयोगी नहीं होती है। चूंकि डेंगी की कोई दवा नहीं है तो पूर्ण आराम अत्यंत महत्वपूर्ण है। बिस्तर में आराम का मतलब बिस्तर में आराम।
इस बारे में कोई रियायत नहीं होनी चाहिए। एक और बात जो ध्यान में रखनी है वह है कि डेंगी में रोगी अक्सर बुखार उतरने के दो या तीन दिन बाद रक्तचाप में गिरावट से गंभीर बीमार हो सकता है
इसलिए बुखार ठीक होने के बाद भी दो दिन तक बिस्तर में आराम और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण है। इस रोग में बुखार ठीक होने का मतलब सुरक्षित होना नहीं है।
आराम, तरल पदार्थों का सेवन और प्लेटलेट्स की गणना अति महत्वपूर्ण कदम हैं जिन्हें हर समय ध्यान में रखना चाहिए। पपीते के पत्ते, कीवी का सेवन आदि सब अर्थहीन बातें हैं और इन पर अंध विश्वास कई मौतों में सहायक भी हो सकता है।
……….
संपर्क सूत्र: F 170, वैशाली नगर, जयपुर राजस्थान
मोबाइल : 9549554123
ईमेल : [email protected]
Comments