राकेश दुबे।
देश के मोबाइल नेटवर्कों पर डेटा दर दो वर्ष पहले जहां यह दुनिया में सबसे महंगी थी , आज 95 प्रतिशत की गिरावट के साथ यह दुनिया में सबसे सस्ती हो गई है। प्रति व्यक्ति मासिक डेटा उपयोग करीब आठ गुना बढ़कर 6.5 जीबी तक जा पहुंचा है।
फिर भी दुनिया के कई देशों में प्रति व्यक्ति मोबाइल डेटा खपत भारत की तुलना में आधी से भी कम है।
डेटा खपत की चिंता किए बगैर उसका इस्तेमाल करने वालों की तादाद में हुई बढ़ोतरी अवश्य उल्लेखनीय है। एक अनुमान है कि सन 2020 तक करीब 55 करोड़ भारतीयों के पास डेटा और वीडियो सक्षम मोबाइल होंगे। वर्ष 2016 के आरंभ में यह तादाद बमुश्किल 20 करोड़ थी।
एक अनुमान है कि अभी हर उपयोगकर्ता अपने फोन पर एक से डेढ़ घंटे भी रोज वीडियो देखता है तो इससे प्रतिदिन 55 करोड़ से 1.1 अरब स्क्रीन घंटे की अवधि तैयार होती है।
यह टीवी के जरिये तैयार होने वाली मौजूदा एक अरब स्क्रीन घंटों से काफी अधिक है। इससे छोटे विज्ञापनदाता भी तयशुदा दर्शकों तक पहुंच सकेंगे। कोई चाहे तो ऐसा विज्ञापन अभियान चला सकता है जो कुछ हजार लोगों को ध्यान में रखता हो।
वह मास मीडिया का इस्तेमाल करने से बच सकता है जो अक्सर काफी महंगा साबित होता है।रोजगार बाजार में क्षमता की समस्या तो रहती ही है। भारत में हर साल लाखों श्रमिकों द्वारा हर वर्ष कई तरह के काम करने से यह और बढ़ जाती है।
इसका सबसे बड़ा प्रभाव है, सेवा नेटवर्क जो उपयोगिता बढ़ाकर लागत कम कर सकता है। भारतीय उद्यमिता इसके सकारात्मक प्रभावों से काफी लाभान्वित हो सकती है। डिजिटल दुनिया में अपने आकार से भारतीय डिजिटल क्रांति ने एक धमक पैदा कर दी है। यह तो है पर इस उद्ध्योग का एक बड़ा हिस्सा लगभग 90 प्रतिशत विदेशी उत्पादों पर निर्भर है।
स्वदेशी निर्माता इस बाज़ार में आयतित यंत्रो और तकनीक पर निर्भर है। इस दिशा में सोचने का समय जा चुका है कुछ करने का समय है।
देश के विभिन्न राज्यों में बन रहे आई टी पार्क इस क्रांति के प्लेटफार्म हैं, परन्तु वहां गति अत्यंत धीमी है। सरकार को एस बारे में एक समयबद्ध योजना तैयार करना होगी। नहीं तो यह उद्योग आत्मनिर्भरता के स्थान पर पिछलग्गू हो जायेगा।
देश में हर वर्ष कालेज पास करने वाले युवाओं की पहली प्राथमिकता आई टी सेक्टर में काम करना है। इस दिशा में उठाया गया कदम इस क्रांति को स्वदेशी तकनीक पर आधरित सकता है, जो विश्व के बाज़ार में हमारी साख को और मजबूत करेगा।
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