ममता यादव।
कल दोपहर करीब 3 बजे के आसपास एमपीनगर के बोर्ड आॅफिस चौराहे पर अपने एक साथी के साथ गाड़ी में थी तभी नजर पड़ी एक व्यक्ति पर जो खिलाड़ी की पोशाक पहने और अपने गले में कई मैडल डाले सिग्नल पर खड़े लोगों से अपने एक हाथ में कटोरा लिये कुछ देने की गुजारिश कर रहा था। उसका एक हाथ नहीं था। मन कसैला सा हो गया मगर पत्रकारिय जिज्ञासा भी जागी।
कुछ काम एमपी नगर और कुछ काम न्यू मार्केट के निपटाकर वापस वहीं पहुंच गई पैदल और फिर वही शख्स दिखा। मैंने उससे पूछा क्या मैं आपसे बात कर सकती हूं?
पहले वह थोड़ा अचकचाया मगर जब मैंने कहा कि मैं मीडिया से हूं तो वह बात करने तैयार हो गया।
ये व्यक्ति है नरसिंहपुर निवासी मनमोहन सिंह लोधी, जो कि राष्ट्रीय पैरा एथलीट है। इसके पास कई मैडल हैं। मध्यप्रदेश के बेस्ट खिलाड़ी का खिताब इसके पास है मगर नहीं है तो रोजगार नहीं है इसके पास।
मनमोहन की व्यथा उसके ही शब्दों में यहां क्लिक करके आप सुनें और तय करें कि क्या ये हमारे दोगले सिस्टम के मुंह पर तमाचा नहीं है?
हैरानी की बात है कि 31 अगस्त से भोपाल में भटक रहे इस युवा की खबर कई राष्ट्रीय और स्थानीय वेबसाइ्टस और समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के बाद भी कोई खास असर नहीं हुआ है।
एशियाड खेलों में भारत के कई खिलाड़ियों ने जब झंडे गाड़े और देश के लिए मैडल जीते। ठीक इसी दौरान मध्य प्रदेश में एक पैरालम्पिक खिलाड़ी भीख मांगकर अपना जीवन गुजार रहा है। इस पैरालम्पिक खिलाड़ी ने मध्य प्रदेश सरकार पर वादा खिलाफी का अरोप लगाया है।
पैरालम्पिक एथलीट मनमोहन सिंह लोधी मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव के तहसील के कंदरापुर गांव के रहने वाले हैं। साल 2009 में एक हादसे में मनमोहन का हाथ कट गया था। लेकिन खेल के जुनून के कारण मनमोहन की हिम्मत नहीं टूटी। दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने कई राजकीय और राष्ट्रीय दौड़ में भाग लिया और पदक जीते।
साल 2017 में मनमोहन सिंह लोधी ने अहमदाबाद में आयोजित प्रतियोगिता में 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में सिल्वर मेडल हासिल किया था। वर्ष 2017 में ही मध्य प्रदेश सरकार ने मनमोहन लोधी को राज्य का सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग खिलाड़ी घोषि किया था।
मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने साल 2017 में राष्ट्रीय पदक जीतने वाले राज्य के पैरालम्पिक खिलाड़यों को नौकरी देने का एलान किया था और दिव्यांगो के लिए करीब 6000 पदों पर भर्ती करने की घोषणा की थी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस घोषणा से मनमोहन लोधी काफी खुश हुए थे उन्हें अपनी खेल प्रतिभा के दम पर नौकरी पाने का पूरा भरोसा था सो प्रयास भी शुरू कर दिए। मगर उन्हें नौकरी नसीब नहीं हुई।
जब हर तरफ से निराशा हाथ लगी तो उन्होंने अब यह तरीका चुना है। मनमोहन यह भी कहते हैं कि यह उनका विरोध जताने का तरीका है।
Comments