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जनजातियों के समग्र विकास और राष्ट्रीय चेतना का सक्रिय केंद्र बने राष्ट्रपति भवन

खास खबर            Jul 23, 2022


राजनीश जैन।
भारत की 21 फीसदी आदिम आबादी की प्रतिनिधि महिला जब राष्ट्रपति की बग्घी में घुड़सवार अंगरक्षकों के साथ राष्ट्रपति भवन में प्रवेश करेंगी तो यह भारत की लोकतांत्रिक परिपक्वता की एक बेहद अहम सीढ़ी होगी।

सच है कि यह प्रतीकात्मक पद है, तब भी इस देश के सबसे मौलिक अधिकारी समाज के प्रतिनिधि को इस पर विराजने में 75 साल तो लग ही गए।

देश की सांस्कृतिक व प्राकृतिक विविधता के सच्चे वाहक हमारे आदिवासी समुदाय ही हैं। उन्हें अपनी सांस्कृतिक अक्षुण्णता की पूरी गारंटी के साथ देश की मुख्यधारा में सम्मिलित होने के प्रयासों की कड़ी में दौपदी मुर्मु जी का राष्ट्रपति बनना एक महत्वपूर्ण चरण होगा।

आदिवासी समुदायों की राजनैतिक चेतना और भावनाओं के साथ विभाजनकारी मानसिकता के साथ खेलने का काम आजादी के बाद से दशकों तक होता रहा है।

उनकी चिंताओं को उनकी फ्रीक्वेंसी पर समझ कर समाधान करने की ईमानदार कोशिशें कम हुई हैं। अब होती दिख रही हैं तभी हम लेह लद्दाख से लेकर नगालैंड और अरुणाचल तक के नेताओं को उनकी अपनी वेशभूषा में संसद में गरजते हुए देख पा रहे हैं।

उनके भारतीय होने का सच्चा अर्थ और गर्व अब दिल्ली से दलांकता है।

वे अपनी स्थानीय समस्याओं, आवश्यकताओं को तो संसद में उठा ही रहे हैं बल्कि देश की मुख्य समस्याओं पर अपनी राय और समाधान में भी योगदान दे रहे हैं।

हम पहली बार वास्तविक आदिवासी प्रतिनिधियों को दिल्ली के लाल कालीनों पर चलते हुए और पद्म सम्मान देते हुए देख पा रहे हैं। वरना इसके पहले तो लगता था कि किसी मिशनरी स्कूल में पढ़ कर ईसाई बनना और कोट पेंट टाई पहनने की अनिवार्यताओं को पार करने पर ही दिल्ली दरबार उन्हें संसद में बैठने के योग्य समझता था।

वे अपना हक नहीं बल्कि दिल्ली दरबार की बख्शीश अपने क्षेत्र में ले जाते थे और वहां अपनी सांस्कृतिक अस्तित्व की समाप्ति के मिशनरीय अभियान में जोर शोर से जुट जाते थे।

बहरहाल मेरा यह सुझाव है कि निर्वाचित राष्ट्रपति मुर्मु जी आलीशान प्रेसीडेंट हाऊस में पहुंच कर उसके कुछ दरवाजे देश के आदिवासी समुदायों को खोल दें।

इस भव्य इमारत के 340 कक्षों में से कुछ को अतिथि गृह के रूप में खोला जाए जहां देश भर के दुर्गम वन क्षेत्रों के आदिवासी समुदायों के आमजन दो चार दिवस के मेहमान बनें, राष्ट्रपति के अतिथि के रूप में सरकार के खर्च पर दिल्ली दर्शन करें।

दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक मयूरभंज से संबंधित मुर्मू ने भुवनेश्वर के रामादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ओडिशा सरकार में सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ लिपिक के रूप में कार्य किया है।

वे राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए आदिवासी अंचलों में विकास, विज्ञान, सांस्कृतिक सुरक्षा और सकारात्मकता की ध्वजवाहक बनें।

आदिवासी छात्र छात्राओं को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा में सहयोग करने वाली ऐसी भूमिका निभाएं जो समस्त ब्यूरोक्रेसी की पकड़ से ऊपर और कारगर हो।

अपने शेष सभी दायित्वों के निर्वहन के अलावा वे इस भांति भी अपने राष्ट्रपति कार्यकाल को रचनात्मक और उपयोगी बना सकती हैं।

 



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