विश्व बैंक द्वारा अपनी सीमित भूमिका स्पष्ट किए जाने के बाद भारत ने सिंधु जल संधि रोकी
मल्हार मीडिया।
क्षेत्रीय तनाव बढ़ने के बीच,विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने शांति के प्रति भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता फिर दोहराते हुए कहा कि लगातार उकसावे के कारण ही भारत सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने को मजबूर हुआ है। श्री मिसरी ने कहा कि इस संधि की प्रस्तावना में ही कहा गया है कि इसे सद्भावना और मैत्रीपूर्ण भावना से लागू किया जा रहा है। यही वजह है कि बार-बार उकसावे के बावजूद भारत ने असाधारण धैर्य और संयम का परिचय देते हुए 65 वर्षों से अधिक समय तक सिंधु जल संधि को कायम रखा।
भारत के इस कदम पर विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने संगठन की स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि "हम कोई न्यायाधीश या निर्णयकर्ता नहीं हैं। संधि को निलंबित करने या जारी रखने में विश्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है।" श्री बंगा ने स्पष्ट किया कि बैंक का कार्य पूरी तरह से प्रक्रिया संचालित है। वह तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति में मदद कर सकता है या दोनों देशों की सहमति होने पर मध्यस्थता न्यायालय गठित कर सकता है। विश्व बैंक के अध्यक्ष ने कहा कि "हम प्रकिया में भुगतान संबंधी कोष का प्रबंधन करते हैं। लेकिन यह संधि दो संप्रभु राष्ट्रों के बीच है, इसका भविष्य तय करना उनके ऊपर ही निर्भर करता है।"
श्री बंगा ने इस बारे में लोगों की आम धारणा पर भी चिंता व्यक्त की।उन्होंने कहा कि यह धारणा है कि विश्व बैंक संधि को सही रूप दे सकता है या लागू रख सकता है पर सही मायने में हम ऐसा नहीं कर सकते। संधि का मसौदा तैयार करते समय हमारी भूमिका परिभाषित की गई थी - अगर दोनों पक्ष कुछ हल करना चाहते हैं तो हम मदद भर कर सकते हैं इससे अधिक हमारी भूमिका नहीं है। "
1960 में हस्ताक्षरित, सिंधु बेसिन की छह नदियों के विभाजन प्रबंधन के लिए विश्व बैंक ने सिंधु जल संधि की मध्यस्थता की थी। पूर्वी नदियां रावी, ब्यास और सतलुज भारत को आवंटित की गईं, जबकि पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम और चेनाब पाकिस्तान को दी गईं जिसमें भारत को जलविद्युत और कृषि जैसे सीमित गैर-उपभोग्य उपयोग की अनुमति मिली। इस संधि के समन्वय और विवाद समाधान हेतु स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) बनाया गया।
सिंधु जल संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले को "रणनीतिक विराम" बताया गया है,इससे निकलना नहीं। बल्कि इसे पुनर्संयोजन कहा गया है । यह वर्षों के कूटनीतिक संवाद के बाद हुआ है जिसमें भारत ने अनुच्छेद XII(3) के तहत संधि की शर्तों पर फिर से बातचीत का प्रस्ताव रखते हुए पाकिस्तान को कई नोटिस भेजे। विदेश मंत्रालय के अनुसार,पाकिस्तान ने बातचीत के इन औपचारिक निमंत्रणों का कोई जवाब नहीं दिया।
1965, 1971 और 1999 के युद्ध और संबंधों में निरंतर गतिरोध के बावजूद, भारत ने कभी भी संधि का अपने पक्ष में लाभ लेने की कोशिश नहीं की। विदेश सचिव ने जोर देकर कहा, "यहां तक कि जब पाकिस्तान ने हम पर युद्ध थोपे, और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त रहा तब भी सिंधु जल संधि के प्रति हमारी प्रतिबद्धता बनी रही। लेकिन समझौते के तहत भारत के वैध अधिकारों, खासकर परियोजना कार्यान्वयन में पाकिस्तान द्वारा बार-बार बाधा डालने से हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा है।" सरकार ने पुनर्मूल्यांकन के लिए कई परिस्थितिजन्य बदलाव " का हवाला दिया है, जिनमें पुरानी अभियांत्रिकी, जनसांख्यिकीय दबाव, स्वच्छ ऊर्जा की उभरती आवश्यकताएं और सुरक्षा के लगातार खतरे शामिल हैं।
संधि के तहत भारत के अधिकार क्षेत्र में आने वाली पश्चिमी नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं को पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बार-बार चुनौती दी जिससे इनमें देरी हुई और विकास प्रभावित हुआ। इस सिलसिले में 22 अप्रैल को पहलगाम में किया गया नृशंस आतंकी हमला निर्णायक साबित हुआ।
भारत ने इसमें पाकिस्तानी भूमि से संचालित आतंकी समूहों को जिम्मेदार ठहराया है। अधिकारियों ने कहा कि इस घटना ने एक बार फिर उजागर कर दिया कि पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को लगातार समर्थन देने से सद्भावना अंत्यंत बिगड़ी है जिस पर संधि आधारित थी।
आतंकपूर्ण माहौल से अपने नागरिकों की सुरक्षा के साथ ही संधि के अंतर्गत संसाधन के न्यायोचित उपयोग के भारत के हित इससे प्रभावित हुए। भारत के मौजूदा दृढ़ रुख से भारत-पाक संबंध अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गया है। भारत का वर्तमान रूख अब राष्ट्रीय संप्रभुता के सम्मान के अडिग भाव को दिखाता है जिसकी काफी लंबे समय से आवश्यकता थी। साथ ही यह पाकिस्तान की दशकों की शत्रुतापूर्ण बैमनस्यता,अवरोध और उसके द्वारा चलाए जा रहे सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ संकल्प भरे रवैये को भी रेखांकित करता है।
हालांकि इस मुद्दे पर पाकिस्तान धमकी भरे स्वर में भारत को जवाब दे रहा है,पर भारत की ओर से स्पष्ट किया गया है कि उसके दरवाजे बातचीत के लिए हमेशा खुले हैं,पर शर्त केवल यह है कि यह सार्थक और जिम्मेदाराना हो साथ ही आज की जमीनी वास्तविकता के अनुरूप हो।
सोर्स पीआईबी
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