मल्हार मीडिया डेस्क।
संसद में असंसदीय शब्दों की सूची को लेकर वाद-विवाद शुरू हो गया है। लेकिन जो निर्विवाद है वह यह है कि असंसदीय शब्दों की सूची का संकलन करने की संकल्पना अविभाजित मध्य प्रदेश में हुई थी।
दिलचस्प बात यह है कि मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहते हुए स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद शुक्ला ने भारत में पहली बार असंसदीय अभिव्यक्तियां नाम से एक ग्रंथ प्रकाशित किया। स्वर्गीय शुक्ला का जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 10 फरवरी 1930 को हुआ था और उन्हें अविभाजित मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता के रूप में जाना जाता था।
वे 1985 से 1990 तक मध्य प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष रहे। राज्य के गठन के बाद छत्तीसगढ़ विधान सभा के पहले अध्यक्ष बने।
पहली बार प्रकाशित ग्रंथ में ना सिर्फ संसद वरन देश के सभी विधान मंडलों में सन 1958 से लेकर 1985 तक अपने-अपने सदन में हुई संसदीय वाक्यों की संदर्भ सहित सूची शामिल की गई थी। विधान मंडलों में सवाल की जाने वाली भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर कर दिया था।
तब राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने इस पुस्तक को देख कर कहा गया कि यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसके आधार पर संसद में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा को लेकर आगे शोध किया जा सकता है।
पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने भी उनकी सोच की सराहना की थी। यही नहीं, स्वर्गीय शुक्ला की देश भर के विधान सभा सचिवालयों को संसद से जोड़ने की कल्पना को राष्ट्रीय स्तर पर लागु करने को कहा था।
पिछले साल मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय ने बरसों बाद इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित किया था। अब लोकसभा सचिवालय ने ऐसी ही अभिव्यक्तियों के संकलन को प्रकाशित किया है जिस पर विवाद उठ खड़ा हुआ है।
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