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62 बुजुर्गों को मेहनत की कमाई से खाना खिलाता है ये कैब ड्राईवर

खास खबर            Oct 15, 2022


दिवाकर श्रीवास्तव।

मैं ओला प्री पेड से ही चलता हूं। कोई कैब चालक नगद भुगतान करने को कहता है, तो मैं नाराज हो जाता हूं। इस बात पर बाद में कई बार अफसोस भी होता है कि कैब ड्राइवरों की अपनी परेशानी होती है, बेकार ही नाराज हो गया।

लेकिन आज पता नहीं कैसे, मुझसे ही कहीं गलती हो गई होगी और नगद पेमेंट का ऑप्शन क्लिक हो गया। और जब अजय शुक्ला ने बताया कि इतना नगद देना है, तो एक किस्म से मैं खुश ही हो गया। पेमेंट करने से पहले मैं उसका फोटो लेना नहीं भूला। मुझे लगता है कि आपको वह मिलें, तो शायद आप भी ऐसा ही करना चाहेंगे।

अजय शुक्ला गुड़गांव में रहते हैं। 31 साल के हैं। करीब पांच साल पहले उनकी शादी हुई है। जैसा उन्होंने बताया, वह गुड़गांव में नौकरी करते हैं। लेकिन सुबह 4 से 8 बजे तक ओला कैब ड्राइव करते हैं। आज छुट्टी थी इसलिए वे देर तक ड्राइव कर रहे थे। इस दौरान होने वाली आमदनी वे सिर्फ उन वृद्ध लोगों की सेवा में लगा देते हैं जो किसी कारण अकेला हो गए हैं। उन्होंने बताया कि ये लोग ऐसे वृद्ध हैं जिनके बेटे कमाने विदेश गए लेकिन थोड़े दिनों बाद अब पैसे नहीं भेजते; कई लोग ऐसे हैं जो किराये के किसी घर में रहते थे लेकिन अब किराया नहीं दे सकते, पर मकान मालिक ने उन्हें छत पर या कहीं रहने की इजाजत दे दी है। इनलोगों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे खाएं-पीएं कैसे; पैसे हैं नहीं; पैसे हैं, तो इतने नहीं कि खाना बनाने वाला रख सकें; इतने अशक्त हैं कि खाना-नाश्ता नहीं बना सकते।

अजय इनलोगों को दोनों वक्त का खाना और एक टाइम का नाश्ता भेजते हैं। नाश्ता उनकी श्रीमती जी तैयार कर देती हैं। अजय का परिवार जहां रहता है, उसके नीचे के फ्लैट वाली आंटी टिफिन तैयार करती हैं। इसका पेमेंट अजय उसी पैसे से करते हैं जो वह ओला कैब ड्राइविंग से कमाते हैं। खाने के डिब्बों का वितरण उनके दो साले साहब करते हैं।

अजय का कहना है कि पहले वह संस्थाओं के साथ मिलकर यह काम करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बाद में लगा कि 'ये बेकार हैं क्योंकि वहां तो हर काम के लिए संस्थाएं किसी-न-किसी को कर्मचारी रख लेती हैं और चंदे इकट्ठा करने लगती हैं।'

मुझे उनकी बातों से लगा कि नि:स्वार्थ सेवा का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। एक परिवार 62 लोगों को रोजाना नि:शुल्क खाना प्रोवाइड कर रहा, इस बात से मैं तो अभिभूत हो गया। उन्होंने जब यह बताया कि पांच साल पहले उनकी शादी हुई और उनकी पत्नी हर कदम पर साथ देती हैं, तो मुझे यकीन हो गया कि उनके इस काम में शायद ही कभी कोई बाधा आएगी।

समाज के प्रति ऐसा करने वाले लोग प्रणम्य हैं। मैंने उनकी तस्वीर ली लेकिन मुझे लगा कि उनके साथ सेल्फी लेने का मुझे अधिकार नहीं इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया।

प्रशांत कुमार की फेसबुक वॉल से

 

 



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