कभी शिकारी थे,अब वन संरक्षण में मददगार बने पारधी

खास खबर            May 24, 2018


केशव दुबे।
आम लोगों में पारधी समुदाय के लोगों की छवि शिकारियों, अपराधियों की ही रही है। लेकिन अब इस समुदाय के लोग न सिर्फ शिक्षा की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं, बल्कि वन अपराधों को रोकने तथा वन संरक्षण के काम में वन विभाग के मददगार भी बन रहे हैं। इस समुदाय के लोगों में वन्य जीवों और वनों की गहरी समझ होती है, जिसका फायदा अब वन अधिकारियों को भी मिलने लगा है।

घुमंतु जातियों में शुमार पारधी समुदाय के लोग अतीत में वन्यजीवों के शिकार और अपराधों से जुड़े रहे हैं, संभवत: इसीलिए आमजन में इनकी छवि ठीक नहीं रही है। इस समुदाय के लोगों के विकास और उन्हें शिक्षित तथा आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।

लेकिन इस सबसे अलग वन विभाग ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले पारधियों के विकास और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए अपना अभियान शुरू किया है। इस काम में विभाग को डब्लूडब्लूएफ से भी सहयोग मिला है।

वन विभाग ने वर्ष 2007-08 में पहले पन्ना टाइगर रिजर्व और फिर रायसेन-विदिशा के सीमावर्ती क्षेत्रों में पारधियों के बच्चों के लिए स्कूल खोले, जिनमें अब कई बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। इसके अलावा वन विभाग समय-समय पर पारधियों के लिए वर्कशॉप का आयोजन भी करता रहा है, ताकि उनकी समस्याओं को पहचानकर निदान के लिए प्रयास किए जा सकें।

ऐसी ही एक कार्यशाला राजधानी भोपाल में 26 फरवरी को भी आयोजित की गई थी। वन विभाग को अपनी इस कवायद का फायदा यह हुआ है कि उन्हें वन संरक्षण के काम में अब उन पारधियों का सहयोग मिलने लगा है, जो परंपरागत रूप से जंगलों और जंगली जीवों के जानकार होते हैं।

यूं मिल रही मदद: पारधी समुदाय के लोग किस तरह वन विभाग की मदद कर सकते हैं, यह आम लोगों के लिए कौतुहल का विषय हो सकता है, लेकिन वन विभाग के लिए यह वास्तविकता है।

पन्ना की एक पारधी बस्ती के पुष्पेंद्र पारधी वन विभाग के स्कूल के छात्र रहे हैं। पुष्पेंद्र ने इसी साल 12वीं बोर्ड की परीक्षा 82 प्रतिशत अंकों से पास की है। पुष्पेंद्र फिलहाल वन संरक्षण के लिए काम कर रही संस्था लास्ट विल्डरनेस फाउंडेशन (एलडब्लूएफ) से जुड़े हैं और कोलकाता में टियासा अध्या के मार्गदर्शन में काम कर रहे हैं। यहां वे वन्यजीवों के कई शिकारियों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर चुके हैं।

बाड़ी के पास सिंगोरी अभ्यारण्य में तीन व्यक्तियों को निशाना बना चुके तेंदुए को पकड़ना वन विभाग के लिए समस्या बन गया था। इसी बीच भोपाल से कुछ पारधियों को लाया गया। इन पारधियों ने बताया कि तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा कहां पर लगाया जाना चाहिए। उसी जगह पर पिंजरा लगाया गया और अगले दिन उत्पाती तेंदुआ पकड़ा गया।

उज्जैन जिले में फसलों को नष्ट कर रही नीलगायों को पकड़ने के लिए जबलपुर-कटनी से कुछ पारधियों को बुलाया गया। हालांकि नीलगायों को पकड़ने में तो उतनी सफलता नहीं मिली, लेकिन इस अभियान से खेतों के आसपास उनकी सक्रियता कम हो गई और वे वनक्षेत्रों की तरफ चली गईं।

छवि बदलने की कवायद: पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय के संपर्क अधिकारी रजनीश के.सिंह का कहना है कि विभाग की सोच है कि परिस्थितियां व्यक्ति को अपराधी बनाती हैं। यदि परिस्थितियों में परिवर्तन कर दिया जाए, तो अपराध अपने आप कम हो जाएंगे। इसी सोच पर चलते हुए वन विभाग पारधियों के विकास के लिए काम कर रहा है।

उनका कहना है कि विभाग ने यह महसूस किया है कि यदि इस समुदाय के लोगों की छवि को बदल दिया जाए, तो उन्हें रोजगार प्राप्त करने में समस्या नहीं आएगी। इसीलिए विभाग वन संरक्षण के अपने काम में पारधियों का अधिक से अधिक सहयोग ले रहा है। इससे पारधियों के बारे में समाज की सोच को तो बदला ही जा सकेगा, पारधियों को समाज की मुख्यधारा में लाने में भी मदद मिलेगी।

 


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