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नरहरि जी! तो फिर शहर की जनता को यह जानने का भी हक है

खास खबर            Mar 02, 2017


अरविंद तिवारी।
सबसे पहले तो आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं।
कल कलेक्टोरेट में ही एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान आपने जिस तल्खी के साथ अपनी बात कही वह शहर में सबकी जुबां पर है। नरहरि जी, इस शहर की तासीर से आप अच्छी तरह वाकिफ हैं। जब भी किसी गलत आदमी के खिलाफ आपने मोर्चा खोला यह शहर आपके साथ खड़ा नजर आया। मुझे लगता है पहले निगमायुक्त और अभी कलेक्टर के रूप में भी आपका यही अनुभव हो रहा होगा। मंगलवार को जब आप पशुपालकों के नुमाइंदे बनकर आए नेताओं से चर्चा कर रहे थे, तब आपका मकसद शायद यह संदेश देना था कि बस बहुत हुआ, अब और रियायत नहीं।

इस दौर में जब आप डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्रा और निगमायुक्त मनीष सिंह के साथ मिलकर शहर के बीच अवैध रूप से बाड़े संचालित करने वाले पशुपालकों के खिलाफ जबर्दस्त मुहिम छेड़े हुए हैं, शहर की जनता के जेहन में भी कुछ सवाल हैं। करीब डेढ़ साल आप निगमायुक्त रहे और अभी कलेक्टर के रूप में दो साल का कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं। सवाल यह है कि नगर निगम के बाउंसर शुभम कुशवाह की हत्या के पहले शहर को सिर पर उठाने वाले पशुपालकों के खिलाफ ऐसी असरकारक कार्यवाही क्यों नहीं की गई? क्या आपने इस शहर में इससे पहले कभी आवारा पशुओं को सड़कों पर स्वछंद विचरण करते हुए नहीं देखा था?


क्या शुभम की हत्या के बाद ही शहर में आवारा पशुओं का विचरण एकाएक तेज हुआ? जब आप निगमायुक्त थे, तब भी आपको यह पता था कि शहर की जनता के लिए परेशानी का सबब बनने वाले पशुपालक उंगलियों पर गिनने लायक थे। तब की महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा से भी आपका बहुत बेहतर तालमेल था और कलेक्टर विवेक अग्रवाल भी बहुत सख्त मिजाज अफसर थे। इस सब के बावजूद आप क्यों आवारा पशुओं को शहर से बाहर नहीं कर पाए। क्या उस दौर में आवारा पशुओं के कारण शहर की जनता परेशान नहीं थी?

कलेक्टर के रूप में आप दो साल की पारी पूरी कर चुके हैं। शहर के जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों और आम लोगों से आपका सीधा संवाद है। आप रोज दो-चार कार्यक्रमों शिरकत करते हैं, शहर के मुख्य मार्गों से आपका रोज ही आना-जाना होता है। क्या किसी व्यक्ति ने आपको आज तक आवारा पशुओं के कारण भोगी जा रही परेशानी से अवगत नहीं करा पाया? क्या आप शहर की सड़कों पर स्वछंद विचरण करने वाले ये आवारा पशु कभी आपकी नजर में नहीं आए? पुराने डीआईजी संतोष कुमार सिंह और नए हरिनारायणचारी मिश्रा से आपका बहुत अच्छा तालमेल था और है।

निगमायुक्त मनीष सिंह आपकी हर बात मानते हैं। यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि इन दिनों शहर का राजनीतिक नेतृत्व खासकर सत्तारूढ़ भाजपा के जनप्रतिनिधि ऐसे किसी काम में अड़ंगे नहीं डालते हैं, जो कानून के विपरीत हो, जिससे शहर की जनता की परेशानी खत्म हो रही हो। इस सबके बावजूद आवारा पशुओं को शहर से बाहर करने का ख्याल आपके जेहन में नहीं आया। क्या यह समझें कि इस कार्यवाही के लिए प्रशासन, नगर निगम और पुलिस को किसी की हत्या का इंतजार था? आप दूरदृष्टि वाले अफसर माने जाते हैं। क्यों आपने पहले शहर को सिर पर उठाने वाले और गुंडागर्दी करने वाले पशुपालकों पर असरकारक कार्यवाही के बारे में नहीं सोचा? क्या आपको इसमें कोई बाधा नजर आ रही थी? अगर आ रही थी, तो वह क्या थी? ये शहर के बाशिंदे जानना चाहेंगे?

नरहरि जी, शुभम की हत्या का दु:ख हमें भी है। हमें भी यह मालूम है कि किसी की हत्या होना छोटी बात नहीं। क्योंकि हम इसी शहर के बाशिंदे हैं, यहीं पले-पढ़े और बढ़े हुए हैं। आप इस जिले के कलेक्टर हैं यानि मालिक। अभी जो दौर है उसमें यही हकीकत भी है। हम भी इस बात के पक्षधर हैं कि कानून हाथ में लेने वालों के साथ कोई रियायत नहीं होना चाहिए। आप छ: नहीं साठ लोगों को रासुका में निरुद्ध कीजिए, अवैध बाड़े नेस्तनाबूत कर डालिए। जो अफसर या निगम के कर्मचारियों की इन पशुपालकों से मिलीभगत है, उन्हें भी मत छोडि़ए। कानून में ऐसे लोगों के खिलाफ हर तरह की कार्यवाही का प्रावधान है। न्यायपालिका के दरवाजे भी खुले हुए हैं, आप बेखौफ होकर कार्यवाही करिए, शहर आपके साथ खड़ा नजर आएगा, लेकिन ये मत बोलिए कि कानून हाथ में लिया तो हाथ तोड़ देंगे और तबियत से तोड़ेंगे। फांसी की सजा सुनाने का अधिकार तो न्यायाधीश को है, लेकिन फांसी पर लटकाने का अधिकार तो उन्हें भी नहीं दिया गया है। प्रजातंत्र में मर्यादित आचरण सबके लिए जरूरी है, जिसमें आप और हम सब शामिल हैं। हो सकता है आपके उत्तेजित कथन के पीछे आपका मकसद कुछ और संदेश देना रहा हो, लेकिन आशय कुछ और ही प्रतिध्वनित हो रहा है।

एक बात और शहर की जनता आपसे जानना चाहती है। घरों में बाड़े बनाकर आवारा पशु पाल रहे पशुपालकों के खिलाफ पांच दिन से आपका अमला सड़क पर है। आज सुनने को यह मिला कि परदेशीपुरा क्षेत्र में जिन 39 पशुपालकों के बाड़े हैं और जो घरों में पशु पाल रहे हैं, वहां पहले निगम का अमला पहुंचेगा और ये तस्दीक करेगा कि कहां-कहां अब भी पशु पाले जा रहे हैं या अवैध निर्माण है। यह भी देखा जाएगा कि कौनसे पशुपालक फिलहाल वहां पशु पाल रहे हैं या नहीं और जहां वे पशु पाल रहे हैं, वह निर्माण वैध है या अवैध। पिछले पांच दिनों में इस मापदंड का अनुसरण क्यों नहीं किया गया। इस बात की क्या गारंटी की जो अमला वहां तस्दीक के लिए जाएगा वह सही रिपोर्ट देगा, क्योंकि जहां उसे जाना है, वहां की सत्ता किसके इशारे पर चलती है, यह आप से भी छुपा हुआ नहीं है। क्या इसी रिपोर्ट को निगम की अगली कार्यवाही का आधार बनाया जाएगा या फिर आप इसकी तस्दीक अपने अफसरों से करवाएंगे। सवाल यह भी है कि आज जब यह कहा जा रहा है कि किसी को बेघर नहीं करेंगे, तो फिर पहले ऐसा क्यों नहीं किया गया।

नजर को बदलो तो नजारे बदल जाएंगे,
सुबह होते ही सितारे बदल जाएंगे,
कश्तियां बदलने की कौन कहता है,
दिशाओं को बदलो तो किनारे यूं ही बदल जाएंगे।

 



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