बांदा से आशीष सागर।
वो बनाते है शौचालय, हम उजाड़ छोड़ देते हैं,
दोष किसका है जो संकल्प तोड़ देते हैं?
तस्वीर चित्रकूट जिले मानिकपुर के पाठा इलाके में रानीपुर वन्य जीव अभ्यारण्य के अन्दर बसे करीब तीन दर्जन से अधिक गाँव में निर्मल भारत का यही सूरते हाल है। अब बीहड़ इतना लम्बा है कि इस सरकारी खुड्डी में शौच जाने की आवश्यकता क्या है? तब यूपी सरकार को शौचालय पर रुपया भी खर्च नही करना चाहिए। उधर केंद्र सरकार के सपनों पे पलीता भी क्यों लगे ? समस्या ये है कि नागरिक अपने कम्फर्ट जोन से निकलना नहीं चाहता।
कल्यानपुर,लक्ष्मणपुर,नागर,तेढुआ,गिदुरहा,बारह माफ़ी कोलान से लेकर हनुमान धारा के ऊपर बसे रुक्माखुर्द,ददरी और इधर थाना फतेहगंज के कोल्हुआ जंगल में बसे गाँव,उनमें बने सरकारी स्कूल जो शायद ही कभी खुलते हो में इस्तमाल होने वाले सरकारी मलखाने की जर्जर स्थिति देखकर लगता है देश तभी बदेलगा जब आवाम की सोच बदलेगी।
अध्यापक नियमित प्राथमिक स्कूल खोले तो बच्चे शौचालय का प्रयोग करे, गाँव वाले,महिला और हम खुद की सुरक्षा का ध्यान करे तो ये खण्डहर हो चुके दुपल्ला शौचालय अपने हाल में लौट आये। अब सरकार का दोष इतना है कि वो अपने योजना में रुपया खपाने के बाद स्थानीय रहवासियों की मनोदशा नहीं बदल पाती। बाकि देश की ग्रामीण आबादी को अभी बदलने में ठीक वैसा ही वक्त लगेगा जितना भारत में बुलट ट्रेन दौड़ने के बाद देश में साधारण ट्रेन के जनरल डिब्बे का गन्दा न होना।
खुले में शौच जाना अपराध नहीं, ख़राब है मल को खुला छोड़ देना जिसके लिए ये आड़ बनाई जाती है...वैसे इन शौचालय में कम पानी वाले क्षेत्र को ध्यान में रखकर ड्राई शौचालय निर्मित होने लगे तो पानी का बचाव भी किया जा सकता है। खैर ये प्रश्न बाद की बात है मूल मुद्दा तो ये कि देश कब बदलेगा और कब सरकार का काम धरातल में बोलेगा...उसकी ज़िम्मेदारी किसकी है ? शौचालय को लेकर होने वाले घोटाले भी कमतर नही है...
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