डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
दीवालियेपन की कगार पर खड़ी मध्यप्रदेश सरकार नशाबंदी का कदम उठाती नाटक करती नजर आ रही है। नर्मदा किनारे के शराब के ठेके रद्द करना और राजमार्गों के पास से शराब की दुकानें हटाना इसकी शुरूआत है। मध्यप्रदेश सरकार की आय का एक प्रमुख स्त्रोत है आबकारी से होने वाली आय। पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश सरकार वैसे ही आर्थिक दीवालियेपन की कगार पर है। जनकल्याण के कामों पर खर्च करने के लिए उसके पास धन नहीं है। कर्ज पर कर्ज, ओवरड्राफ्ट पर ओवरड्राफ्ट, टैक्स वृद्धि पर टैक्स वृद्धि और फिर भी सरकार की घोषणाओं पर अमल का पैसा नहीं।
ऐसे में शराबबंदी का रास्ता चुनना मध्यप्रदेश के लिए मुश्किल नजर आ रहा है। शराब व्यावसायियों की लॉबी भी मध्यप्रदेश की राजनीति में प्रमुख रोल निभा रही है, लेकिन अगर बीजेपी और आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व को यह लगेगा कि शराबबंदी से मध्यप्रदेश में चुनाव जीता जा सकता है, तो यह सरकार इस बारे में फैसला लेने में हिचकेगी नहीं। हो सकता है कि गुजरात, बिहार, नागालैंड और मणिपुर के अलावा मध्यप्रदेश वह राज्य बन जाए, जहां शराबबंदी हो।
शराब के कारण होने वाले नुकसान को गिनाने बैठे, तो ऐसे सैकड़ों मुद्दे हैं, जिनसे साबित किया जा सकता है कि शराबबंदी जरूरी है, लेकिन ऐसे देश में जहां आप गौमांस खाने से लोगों को नहीं रोक सकते, जहां आप जलीकट्टू से हिंसक खेल के खिलाफ कदम उठा नहीं सकते, वहां लोगों को शराब पीने से रोकना आसान काम नहीं है। जिन राज्यों में शराबबंदी है, वहां भी तो शराब बिक रही है। अवैध भी बिक रही है और वैध भी। झोपड़पट्टियों में भी और पंचतारा होटलों में है। डॉक्टरों से पर्चियां ले लेकर लोग अधिकृत दुकान पर शराब खरीदते हैं। यह बात और है कि उन्हें दस रूपए की शराब के सौ रूपए देने पड़ते हैं। शराब का अवैध कारोबार करने वालों की ऐसे में बन आती है और उन्हें पकड़ने वाले आबकारी दस्ते और पुलिसकर्मियों की अवैध शराब बेचते हुए पकड़ना और छोड़ना एक बड़ी आर्थिक गतिविधि बन गई है।
अगर कोई व्यक्ति अपने घर या क्लब में बैठकर शांति से शराब पीये और उसके बाद कोई भी ऐसी गतिविधि न करेंं, जिससे समाज के किसी भी वर्ग को कष्ट न हो, तो इसमें किसी को भी आपत्ति क्यों होनी चाहिए? लेकिन ऐसा होता नहीं। शराब पीकर लोग अंधाधुंध गाड़ी चलाते हैं और दुर्घटनाएं जानलेवा हो जाती हैं। मारपीट और अन्य अपराधों की समीक्षा की जाए, तो पाएंगे कि 80 प्रतिशत से ज्यादा अपराध शराब के नशे में किए जाते हैं। इसीलिए शराबबंदी के पक्ष में आवाज उठती है।
बिहार में शराबबंदी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। वहां अब भी शराबबंदी है और शराबबंदी भी ऐसी कि अगर किसी के पास शराब की बोतल का खाली पौवा मिल जाए, तब भी पुलिस को 10-20 हजार खिलाना ही पड़ता है। बिहार से होकर गुजरने वाली ट्रेनों में आबकारी और पुलिस के जवान यात्रियों की तलाशी लेते हैं और मोटी-मोटी धनराशि वसूल करते हैं। बिहार का आलम तो यह है कि अगर आप शराब पीये हुए पाए जाते हैं, भले ही आपने कोई अपराध नहीं किया हो, तब भी पुलिस आपको पकड़कर ले जाती है। रातभर में आपकी शराब उतर जाती है और आपकी जेब का सारा वजन गायब हो जाता है। मामला कोर्ट में पहुंचता है, उसके पहले ही सेटिंग के नाम पर बड़ी राशि खर्च हो जाती है।
जाहिर है इस शराबबंदी से केवल एक ही वर्ग को बहुत फायदा हुआ है और वह है बिहार की लोकप्रिय पुलिस। शराबबंदी के बाद बिहार में पुलिस अधिकारियों के नियुक्ति के दाम बढ़ गए है। कुछ खास इलाकों में पोस्टिंग के लिए जितनी राशि पहले दी जाती थी, अब वहां उससे कहीं गुना ज्यादा राशि दी जा रही है। यह राशि घूम-फिरकर वहां के प्रमुख नेताओं के पास पहुंच जाती है। जब उन नेताओं को शराब पीनी होती है, तब वह विदेश भ्रमण पर चले जाते है।
भारत में चार राज्यों में पूरी तरह शराबबंदी लागू है। इसके अलावा अन्य राज्यों में अपनी-अपनी तरह से शराब पीने के नियम कानून बने हुए हैं। महाराष्ट्र को ही लें। महाराष्ट्र देश का प्रमुख वाइन उत्पादक राज्य है (वाइन, लिकर और बियर का अंतर कई लोगों को मालूम नहीं है)। महाराष्ट्र में वाइन पीने पर कोई रोक नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र में वाइन पी सकता है। बियर पीने के लिए महाराष्ट्र में 21 वर्ष की उम्र होना जरूरी है और लीकर यानि व्हिस्की, रम, वोदका आदि के लिए न्यूनतम 25 वर्ष की आयु होना जरूरी है। महाराष्ट्र में शराब पीने के लिए परमिट भी जरूरी है। जिन लोगों के पास परमिट होगा, वे ही शराब पी सकते हैं। वहां अपने आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस की तरह लोग अपनी जेब में शराब पीने का परमिट लेकर घूमते हैं। यह परमिट आसानी से बन तो जाता है, लेकिन इसके लिए कुछ सौ रुपए खर्च करने होते हैं। हर साल यह परमिट बनाया जाता है और सरकार को इस परमिट के बहाने हर साल अरबों रुपए की कमाई होती है। अब यह बात समझ से परे है कि वाइन, लिकर और बियर सभी में अल्कोहल पाया जाता है। सभी पीने से नशा होता है। कहीं कम, कहीं ज्यादा। लेकिन नियम सबके लिए अलग-अलग।
महाराष्ट्र में शराब का परमिट बनाने को लेकर भी एक दिलचस्प किस्सा एक मित्र ने सुनाया। उन्होंने कहा कि मेरे पास शराब पीने का परमिट नहीं है और मैं बिना परमिट के ही पीता हूं। पुलिस पकड़ ले, तो पकड़ ले। पूछने पर उन्होंने यह बताया कि जेब में शराब पीने का परमिट लेकर चलना बड़ा ही गरिमाहीन काम लगता है और इससे भी गरिमाहीन लगता है शराब का परमिट बनाने के लिए आवेदन देना। होता यह है कि एक छपे-छपाई फॉर्म में अनुमति चाहने वाले की जानकारी पूछी जाती है और वह कुछ इस तरह होती है, जैसे- शराबी का नाम, शराबी के बाप का नाम, शराबी का पता, शराबी कब से शराब पी रहा है, क्या शराबी डॉक्टर की सलाह पर शराब पीता है आदि-आदि। मित्र का कहना है कि लाइसेंस लेने के पहले ही महाराष्ट्र सरकार दर्जनों बार हमें शराबी घोषित कर देती है और इतना ही नहीं ऐसा फॉर्म भरने के बाद जब दस्तखत करने की बात आती है, तब वहां लिखा होता है - शराबी के हस्ताक्षर। तो इसका मतलब यही हुआ ना कि परमिट चाहने वाला शराबी व्यक्ति है।
मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचलों में रहने वाले आदिवासियों को अपने उपभोग के लिए शराब बनाकर पीने की पूरी छूट है। वे महुआ आदि से अपने उपभोग के लिए शराब बना सकते हैं। जैसे लोग अपने घरों में दाल-सब्जी बनाते है, वैसे वे अपने जरूरत की शराब बना सकते हैं। यह अधिकार गैर आदिवासियों को उपलब्ध नहीं है। वरना दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां लोग अपनी जरूरत की शराब खुद ही बना लेतें है और स्टोर करके भी रख लेते हैं।
भारत के पड़ोसी भूटान और नेपाल में शराब को लेकर इतनी बंदिशें नहीं हैं। वहां ऐसे नियम भी नहीं हैं कि शराब की दुकान अस्पताल, स्कूल अथवा पूजाघर से 100 मीटर दूर होनी चाहिए। वहां शराब की दुकान अलग से खोलने की परंपरा भी नहीं है। हिमालय की तलहटी में बसे ये पड़ोसी देश बेहद ठंडे है और यहां शराब को लेकर समाज में किसी तरह का दिखावा नहीं है। राशन की दुकानों में भी आसानी से शराब मिल जाती है, जैसे हमारे यहां कोल्ड्रिंक या दूध के पाउच मिलते हैं। उन दुकानों का संचालन करने वाली बहुत सी महिलाएं खुद भी शराब पीती हैं। वहां शराब बेचने को लेकर समय का बंधन भी नहीं है। यहां तक कि मंदिर के बाहर भी पूजा के सामान की दुकान में भी शराब उपलब्ध होती है। किसी कॉफी हाउस में बैठकर आप चाहे तो कॉफी भी पी सकते हैं और शराब भी। शराब पीने वालों को यहां उस तरह हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता, जैसा हमारे यहां देखा जाता है। हमारे यहां बड़ी संख्या में महिलाएं शराब पीती हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से नहीं। शराब पीने वाली महिलाएं भी किसी पुरूष की सांसों में आने वाली शराब की गंध पर ऐसे नाक-भौं सिकोड़ती हैं, मानो वे किसी तबेले में घुस गई हों। अफ्रीकी देश बोलिविया में भी शराब को लेकर कुछ ऐसे ही नियम-कानून हैं। वहां केवल विवाहित महिलाएं ही किसी बार या रेस्टोरेंट में वाइन ऑर्डर कर सकती हैं। वह भी केवल एक गिलास। जिनकी शादी नहीं हुई, वे वाइन नहीं पी सकतीं।
अफ्रीकी देश नाइजीरिया भी मुस्लिम बहुल राष्ट्र है। दक्षिण अफ्रीका के बाद वह एक मात्र देश है, जहां बियर की भारी खपत होती है। वहां की सरकार ने अपने देश के बियर उद्योग को बचाने के लिए बियर के इम्पोर्ट पर ही रोक लगा रखी है। इसका मतलब यह कि आप चाहे जितनी बियर पीये, लेकिन वह देशी होनी चाहिए।
स्वीडन में भी बियर किराने की दुकानों और कॉफी हाउस में मिलती है, लेकिन उसमें अल्कोहल की मात्रा 3.5 प्रतिशत से अधिक नहीं होती। वहां नियम है कि किराना स्टोर शाम को सात बजे के बाद बियर नहीं बेच सकते। अगर लोगों को ज्यादा अल्कोहल वाली बियर पीने की इच्छा हो, तो उन्हें वह केवल सरकारी दुकानों पर ही मिल सकती है। ऑस्ट्रेलिया में शराब को लेकर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नियम लागू है। वहां आप किसी भी बार में चार या उससे ज्यादा पैग ऑर्डर नहीं कर सकते। सुबह तीन बजे के बाद भी कई बार खुले रहते है, लेकिन तब ग्राहक को दो से ज्यादा पैग नहीं दिए जा सकते। स्विटरलैंड में तो तरह-तरह के नशे उपलब्ध है, ऐसे नशे भी जो आपको दूसरे दुनिया में ले जाते है। कनाडा में शराब और बियर तरह-तरह के फ्लेवर में मिलती है। थाईलैंड जैसे देश में शराब पर कोई रोक नहीं है। दोपहर को 2 से 5 बजे तक वहां शराब नहीं बेची जाती।
अमेरिका में शराब को लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह के कानून है। शराब पीकर गाड़ी चलाने पर भारी जुर्माना है। मसाचुसेट्स में होटल या बार में हैप्पी अवर अवैध किए गए है। उटा में बियर में चार प्रतिशत से ज्यादा अल्कोहल नहीं मिलाई जा सकती। यह भी कानून है कि केवल भोजन के ऑर्डर के साथ ही बियर का ऑर्डर दिया जा सकता है। यह ऑर्डर डबल नहीं किया जा सकता। कई जगह यह भी कानून है कि किसी भी बार में कॉकटेल बनाने के लिए उसके ग्राहक का सामने होना जरूरी है। इसका मतलब यह है कि किसी भी ग्राहक की पीठ के पीछे कॉकटेल नहीं बनाया जा सकता। अमेरिका में लोग दिनभर शराब या बियर पीने के शौकीन है, लेकिन कुछ राज्यों में रविवार की सुबह 9 बजे के बाद भी बियर नहीं बेची जा सकती। कुछ राज्यों में यह भी नियम है कि आप कॉफी के कप या गिलास में स्ट्रा से शराब नहीं पी सकते।
फ्रांस में शराब पीकर वाहन चलाने वाली मौतों की संख्या हजारों में है। 2012 में वहां की सरकार ने एक नया कानून बनाया है, जिसके अनुसार हर व्यक्ति को अपनी कार में एक दफा उपयोग में आने वाला ब्रेथ एनेलाइजर रखना जरूरी है। पुलिस का मानना है कि इस ब्रेथ एनेलाइजर को देखकर ही लोगों को यह बात याद आ जाती है कि अगर वे शराब पीये हुए होंगे, तो पुलिस उनका चालान बनाएगी और उन्हें भारी कीमत अदा करनी पड़ेगी। अल सल्वाडोर में शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून है। अगर वहां कोई शराब पीकर गाड़ी चलाता पाया गया और कोर्ट में वह बात सिद्ध हो गई, तो उसे गोली मारकर मृत्युदंड दिया जाता है। इससे थोड़ा ही कम सख्त कानून बुल्गारिया में है, जहां शराब पीकर गाड़ी चलाना गंभीर अपराध है और अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार ऐसा अपराध पाया गया, तो उसके लिए फांसी की सजा मुकर्रर है।
भारत में शराब को लेकर कानून तो बहुत सारे हैं। शराब पीकर गाड़ी चलाने को उतना ही खतरनाक दिया गया है, जितना की शराब पीकर बंदूक चलाना। क्योंकि ड्राइविंग सीट पर बैठे व्यक्ति के पास भी वहीं सब होता है, जिसमें जरा सी चूक किसी की जान ले सकती है। इस सबके बावजूद भारत में कार में बैठकर शराब पीने वालों का प्रतिशत बहुत ज्यादा है। लोग बार की जगह कार चुनना पसंद करते हैं। बोलचाल की भाषा में इसे कार-ओ-बार कहते हैं। यह कार-ओ-बार हर साल हजारों लोगों की जान ले लेता है।
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