शैलेष तिवारी।
सनातन धर्म जो हर युग में समयानुकूल व्याख्या से श्रृंगारित होता रहा।
सुखद परिणाम ये रहा कि धर्म युग धर्म भली भांति निभाता रहा। जहां धर्म ग्रंथों की भाषा टीका (व्याख्या) की परंपरा नहीं रही।
वह रूढ़ियों में जकड़ कर कसमसा रहे हैं, दुखद परिणाम भी रहा कि जहां सुधार होने की संभावना रही उसको हमने लगभग मृतप्राय कर दिया।
ये चर्चा एक बार और कर चुका हूं जब बीते साल गाडरवारा मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध धर्म स्थल डमरू घाटी गया था।
इस बार गुना मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध धर्म स्थल हनुमान टेकरी सरकार जाने का सौभाग्य मिला। वहां एक नजारा देखा जो श्रद्धा को झंकझोर गया।
दृश्य है टेकरी सरकार की सीढ़ियां उतरकर, पश्चिम दिशा में स्थित उस स्थान का।
जहां सुरक्षा के दृष्टिकोण से रेलिंग लगाई गई है। उस रेलिंग पर न जाने किस दुखियारे मन ने सूत का धागा उपलब्ध नहीं होने से।
प्रसाद की पॉलिथीन से टुकड़ा फाड़कर, अपनी विवेकहीनता का परिचय देते हुए बांध दिया होगा।
भेड़चाल के शौकीन धर्मावलंबियों ने उसे परम्परा बना दिया।
आज पूरी रेलिंग पॉलिथीन के टुकड़ों से बंध गई है और तो और हद ये कर दी कि वहां रखे ऊंचाई वाले सीढ़ी नुमा स्टूल के पाए भी पॉलिथीन के टुकड़ों वाले मन्नतों के धागे बंधने का ठिकाना बन गए।
सवाल का जेहन में कौंधना लाजिमी था कि इस तरह के पर्यावरण विरोधी कृत्य से टेकरी सरकार क्या प्रसन्न होते होंगे?
वैसे भी पर्यावरण रक्षार्थ हमारा नैतिक धर्म तो यह बनता है कि पॉलिथीन के प्रयोग में कमी लाए।
लेकिन नैमित्तिक धर्म की पूर्ति के नाम पर हम उस प्रकृति के शत्रु साबित होते जा रहे हैं।
जिस प्रकृति में परमात्मा के साक्षात दर्शन का उल्लेख दर्शन शास्त्रों सहित पुराणों में किया गया है।
प्रश्न न केवल विचारणीय है बल्कि समाधान के रूप में पालन करना अनुकरणीय भी है आगे जिसकी जैसी बुद्धि माँ शारदा सहाय करें।
लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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