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गैंगरेप मौका मुआयना:रेलवे ट्रेक के नीचे नाला,बबूल के कांटे

खास खबर, वामा            Nov 03, 2017


ममता यादव।
समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करूं। एक पत्रकार होने के नाते मन बार-बार ये कह रहा था कि उस घटनास्थल पर एक बार जाना चाहिए। क्राईम रिपोर्टिंग कभी की नहीं पर, एक लड़की होने के नाते वहां पहुंचते—पहुंचते मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं थीं। किसी डर से नहीं बल्कि उस कल्पना से जो उस 18—19 साल की लड़की के साथ हुआ था। गैंगरेप! यूं किसी भी महिला या लड़की के लिए रेप या गैंगरेप शब्द दहलाने वाला ही है।

 

पर जब वहां पहुंची पूछते-पूछते तो जगह देखकर हैरान रह गई। साथ में पत्रकार आलोक सिंघई भी थे। कुछ और एक-दो रिपोर्टर थे। पुलिस थी जीआरपी भी। पता नहीं किस हिम्मत के सहारे उन कटीली झाड़ियों और उंची-नीची जगह पर पहुंची गिरते सम्हलते। आज पहली बार लगा कि स्पोर्ट्स शूज न पहनना गलती थी। उस पीली मिट्टी में थोड़ी सी उंचाई पर भी पैर फिसल रहे थे नीचे उतरने पर। करीब 15 फिट नीचे नाला बह रहा है जो कि रेलवे ट्रैक के नीचे बना हुआ है। करीब 100 से 150 मीटर का यह नाला रेलवे ट्रैक के नीचे से निकला हुआ है। दोनों तरफ वही बबूल के झाड़ और कटीली झाड़ियां और उंची—नीची जगह।

 

बहरहाल ट्रैक के सामने ही एमपी नगर का रहवासी कम व्यवसायिक एरिया है, जहां आवाजाही सामान्य ही थी। उस सड़क पर देखकर ये लगता नहीं कि इसके सामने ही बमुश्किल 10 कदम की दूरी पर ये हुआ है। जिस रास्ते से घुसे देखा तो पाया कि आमतौर पर कोचिंग से निकलने वाले वो बच्चे जो आसपास के शहरों से अपडाउन करते हैं वे इसी ट्रेक के बगल से पैदल स्टेशन पहुंचते हैं। बमुश्किल 100—125 मीटर की दूरी पर स्टेशन दिखता है। तो शार्टकट के चक्कर में यहीं से जाते हैं।

दायें तरफ नाला और थोड़ी सी जगह नीचे उतरने के लिये झाड़ियों के बीच में से। पुल में झांका जहां नाला बह रहा था। करीब 10 फिट चौड़ा नाला पारकर पुल के नीचे जाना आसान नहीं है। उसमें भी पानी बहता हुआ और तमाम चीजें। बगल में झाड़ियों से घिरी हुुई एक जगह। दो—तीन पत्रकार उनमें मैं भी कह रहे थे कि ये घटना इधर बायें तरफ की झाड़ियों में हुई है। लेकिन एक अंग्रेजी युवा पत्रकार नीचे उतरे और उन्होंने जो अंदाजा लगाया वह पुलिस के अनुसार भी सही निकला। उस लड़की को कंटीली झाड़ियों के बीच से जबरन खींचकर नीचे लाया गया फिर नाला पारकर उसे पुल के अंदर खींचा गया।

पहले दो ने उस लड़की की जिंदगी में बबूल के कांटे बोये और उसी पुल के नाले से खींचते हुये उसे दूसरी तरफ ले गये जहां अन्य दो ने यह दोहराया। उस लड़की के साथ क्या हुआ इसे मैं नहीं दोहराउंगी लेकिन मौका—मुआयना और कुछ चीजें देखने—सुनने के बाद एक ही बात दिमाग में आ रही है जानवर हम इंसानों से बेहतर हैं। मगर इंसान को जानवर बनने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है, गांजा—चरस जैसे नशे करने के बाद कुछ भी नहीं। रस्सी से बंधी बेहोश लड़की नग्नावस्था में ठंड में गंदे नाले के पानी में गीली पड़ी रही। रेपिस्ट गांजा पीते रहे चाय लाकर पी और फिर उस लड़की को कपड़े लाकर दिये। होश में आई तो फिर मुंह काला किया और उसे छोड़ दिया।

बहरहाल 31 अक्टूबर की शाम में 6 बजे से 9 बजे के बीच यह घटना हुई। 24 घंटे वो इस थाने से उस थाने दौड़ती रही। 72 घंटे बाद साक्ष्य मिलेंगे भी तो क्या भगवान जाने। सबसे पहले वह जीआरपी में ही गई क्योंकि वहां उसके पिता के पहचान के लोग थे मगर उन्होंने भी पिता से फोन पर बात करा दी। उस लड़की ने फोन पर पिता को सब बताया मां विदिशा से आ गई। माता—पिता दोनों पुलिस में और एक थाने से दूसरे थाने इतनी शारीरिक तकलीफ झेलती वह लड़की 24 घंटे तक घूमती रही। मगर पुलिस ने इतनी भी संवदेनशीलता नहीं दिखाई कि जीरो पर कायमी कर ले। लानत है इस सिस्टम पर। जहां उस लड़की से यह कह दिया गया कि तुम झूठी कहानियां सुना रही हो। और कुछ नहीं तो उस लड़की हालत पर ही तरस खा लेते टीआई साहब।

सवाल ये कि वह लड़की अपराधियों से ये कहकर भागी कि मेरे पापा पुलिस में हैं तुम्हें छोड़ेंगे नहीं और यहां पुलिस ने ही असंवेदनशीलता की हदें पार कर दीं। वह भी एक पुलिस दंपति की ही बच्ची के लिए।

जब उपर से फोन आये तब कहीं जाकर कायमी हुई। आज 3 थानों के अधिकारी सस्पेंड किये गये हैं। सस्पेंड क्यों सर बर्खास्त करिए, किसलिए पाले गये हैं ये?

मुझे नहीं समझ आया कि मैं क्या लिखूं मगर ये तस्वीरें जो घटना स्थल की हैं, बयान करती हैं कि उस लड़की को कितनी चोटें खरोंचे आई होंगी। पुल के नीचे बहते उस नाले में इस कोने से उस कोने तक दरिंदगी का तांडव चलता रहा, राजधानी के सबसे भीड़भाड़ वाले इलाके के करीब और किसी को भनक भी नहीं लगी। लूट के इरादे से शुरू की गई वारदात अकेली लड़की पाकर दरिंदगी और हैवानियत में बदल गई।

उन दरिंदों को ज्यादा से ज्यादा उमरकैद होगी। या फिर सुप्रीम तक जाते—जाते हो सकता है छूट भी जायें मगर उस मासूम लड़की की जिंदगी में बबूल के कांटे बो दिये गये जो अभी जिंदगी की तरफ चलना शुरू कर ही रही थी। ये तीन दिन उसके और उसके परिवार के लिये क्या यातना देकर गये हैं इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।

नोट:इस घटनास्थल का वर्णन इसलिए किया गया है कि लड़कियां ही नहीं ऐसे रास्तों से आने—जाने वाला हर शख्स अलर्ट रहे। कोशिश करें कि रास्ता थोड़ा लंबा भले हो जाये पर असुरक्षित न हो।

 


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