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सरकार जिसकी भी हो बेरोजगारी से दो-दो हाथ जरूरी

खास खबर, राष्ट्रीय            Apr 13, 2019


राकेश दुबे।
मोदी सरकार की वापसी हो या कोई और सरकार बने, आने वाली नई सरकार का सीधा मुकाबला जिस समस्या से होगा वो देश की बेरोजगारी है।

वैसे मोदी सरकार बेरोजगारी समेत कई बुनियादी मुद्दों पर किये गये वायदे पूरे करने में सफलता के उस पैमाने को नहीं छू सकी है जो उससे अपेक्षित था।

मोदी सरकार ने देश में मेक इन इण्डिया, डिजिटल इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया आदि को लेकर पूरी ताकत झोंकी, परन्तु रोजगार की स्थिति संतोषजनक नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या २०१६ की तुलना में थोड़ी बढ़ी थी वर्ष 2018 में भी यह क्रम जारी रहा, जो निरंतर है।

एनएसएसओ की ताज़ा रिपोर्ट यह दर्शाती है कि मोदी शासनकाल में बेरोजगारी तुलनात्मक कहीं अधिक बढ़ी है। नोटबंदी के बाद हालात तेजी से बिगड़े हैं।

महिला कामगार सबसे ज्यादा बेरोजगारी की शिकार हुई हैं। आंकड़े कहते हैं 45 सालों में सबसे ज्यादा बेरोजगारी के आंकड़े 2017-18 के हैं।

वर्ष 2017 में मैन्यूफैक्चरिंग, कन्स्ट्रक्शन तथा ट्रेड समेत 8 प्रमुख सेक्टरों में सिर्फ 2 लाख 31 हजार नौकरियां ही मिली हैं।

जबकि 2015 में यही आंकड़ा 1 लाख 55 हजार पर ही आकर सिमट गया था।

हालांकि 2014 में 4 लाख 21 हजार लोगों को इन क्षेत्रों में नौकरी मिली थी। 2014 के घोषणापत्र में रोजगार भाजपा का मुख्य एजेण्डा था। इस बार रोजगार को लेकर सरकार कमजोर दिखाई दी है।

सरकार को रोजगार बढ़ाने की जगह लाखों खाली पदों को ही भरना था। आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि देश में 14 लाख डॉक्टरों की कमी है, 40 केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 6 हजार से अधिक पद खाली हैं।

देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण माने जाने वाले आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी में भी हजारों की संख्या में पद रिक्त हैं और इंजीनियरिंग कॉलेज 27 फीसदी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं जबकि 112 लाख स्कूली शिक्षकों की भी भर्ती जरूरी है।

अब सवाल है कि कोई भी सरकार महत्वपूर्ण रिक्तियों को बिना भरे रोजगार देने को लेकर चिंता मुक्त कैसे हो सकती है।

इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए विपक्ष से लेकर बेरोजगार युवा तक सरकार पर लगातार हमले करते रहे हैं और करेंगे।

चुनावी समर में भले ही ऐसे मुद्दे फलक से गायब हों पर हकीकत यह है कि आज भी इस मुद्दे पर पक्ष- प्रतिपक्ष कमजोर है।

65 प्रतिशत युवाओं वाले देश में शिक्षा और स्किल के स्तर पर रोजगार की उपलब्धता स्वयं में एक बड़ी चुनौती है।

मुद्रा बैंकिंग के माध्यम से 12 करोड़ से अधिक लोन धारकों को रोजगार की श्रेणी में सरकार गिनती है जो पूरी तरह गले नहीं उतरती है।

वर्ष 2027 तक भारत सर्वाधिक श्रम बल वाला देश होगा। अर्थव्यवस्था की गति बरकरार रखने के लिए सोजगार के मोर्चे पर भी खरा उतरना होगा।

भारत सरकार के अनुमान के अनुसार साल 2022 तक 24 सेक्टरों में 11 करोड़ अतिरिक्त मानव संसाधन की जरूरत होगी। ऐसे में पेशेवर और कुशल का होना उतना ही आवश्यक है।

सर्वे कहते हैं कि शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की स्थिति काफी खराब दशा में चली गई है। 18 से 29 वर्ष के शिक्षित युवा में बेरोजगारी दर 10.2 प्रतिशत जबकि अशिक्षितों में 2.2 प्रतिशत है।

स्नातक क्षेत्र में बेरोजगारी का दर 18.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है। उससे उपर भी हालत ठीक नहीं है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। ऐसे में स्वरोजगार एक विकल्प है।

रोबोटिक टेक्नोलॉजी से नौकरी छिनने का डर फिलहाल बरकरार है इसमें संयम बरतने की आवश्यकता है।

ऑटोमेशन के चलते इंसानों की जगह मशीनें लेती जा रही हैं इससे भी नौकरी आफत में है। छंटनी के कारण भी लोग दर-दर भटकने के लिए मजबूर है।

जो बेरोजगार बाहर घूम रहे हैं उनके लिए रोजगार सेक्टर में नये उप-सेक्टर सृजित किये जायें। यह सब आने वाली सरकार को करना होगा।

 


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