मल्हार मीडिया भोपाल।
दुनिया के सारे देशों में भारत की निर्वाचन प्रणाली निष्पक्षता के लिए जानी जाती है। भारत एक ऐसा देश है जहां सबसे सस्ते में चुनाव होते हैं।
ईवीएम पर भले ही राजनीतिक दल सवाल उठाते हों, लेकिन जनता में इसकी स्वीकार्यता है। कई बार इसके प्रमाण मिले हैं। यहां के राजनेता जनता के मत का सम्मान करते हैं।
हमारी चुनाव प्रणाली की कुछ ऐसी खूबियां जिनकी वजह से विदेशों में हमारे चुनावी प्रक्रिया की छवि बड़ी सकारात्मक है।
यह कहना भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ओपी रावत का। वे आज माधवराव सप्रे संग्रहालय में आजादी के अमृत महोत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रमों की श्रंखला की दूसरी कड़ी के रूप में ‘विश्व परिदृश्य में भारतीय निर्वाचन प्रणाली’ पर व्याख्यान दे रहे थे।
दो चरणों में हुए इस कार्यक्रम के दूसरे चरण में उपस्थित श्रोताओं के सवालों और जिज्ञासाओं का समाधान भी मुख्य वक्ता ने किया।
एकदम सधे, सारगर्भित व्याख्यान में रावत ने देश में चुनावों के इतिहास, उसकी चुनौतियां कमियां और वर्तमान स्थितियों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि भारत की निर्वाचन प्रक्रिया दूसरे देशों में सराही जाती है, इसकी वजह इसकी निष्पक्षता चुनाव कराने वाले कर्मचारियों की लगन और मेहनत तथा भारतीय जनता की वोट डालने की अभिलाषा।
उन्होंने बताया कि वोटिंग के ईवीएम आने के बाद जिस तरह से कम समय में परिणाम आते हैं उसकी सराहना अमेरिका के एक बड़े राजनेता ने भी की है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब यह साबित होता है कि यहां के चुनावों पर दूसरे देशों ने विश् वास जताया है।
इसकी एक वजह हमारे देश के राजनेताओं द्वारा जनादेश को पूरे सम्मान के साथ स्वीकार लेना भी है। हमने कई देशों में देखा है जहां चुनाव परिणाम आने के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा होती है।
वहां के राजनेता ‘जनादेश’ मानने से इंकार कर देते हैं या मुश्किलों से स्वीकारते हैं। लेकिन भारत ही एक ऐसा देश है जहां राजनीतिक दल ‘जनादेश’ का सम्मान करते हुए तत्काल सत्ता सौंप देते हैं।
‘ईवीएम’ पर जनता का भरोसा
चुनावों के बाद ईवीएम पर उठने वाले आरोपों पर रावत ने कहा कि हर चुनाव के बाद ईवीएम पर आरोप लगते हैं, लेकिन यह देखने में आया है कि जब भी जहां भी ईवीएम पर सवाल उठे हैं, वहां एक तरह से जनता ने उन राजनीतिक दलों को नकारा है।
ईवीएम से पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव होते हैं। हमारे देश की इन मशीनों पर दूसरे देशों को भी विश्वास है।
यही वजह है कि आज 17 देशों में हम मशीनें भिजवा रहे हैं। आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्येश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत संग्रहालय द्वारा साल भर आयोजन किए जाने का निर्णय लिया है।
पहली कड़ी के रूप में 14 अप्रैल को भारतीय संविधान पर व्याख्यान हुआ था। यह दूसरी कड़ी है।
इसके पीछे मंशा है कि ऐसे विषयों से युवा, विद्यार्थी, शोधार्थी तथा अन्य प्रबुद्धजन जुड़ें। इसके पूर्व संग्रहालय समिति के अध्यक्ष शिवकुमार अवस्थी ने संग्रहालय की परंपरा के अनुसार चरखा, अंगवस्त्र और संग्रहालय सार्ध शताब्दी समारोह का प्रतीक चिन्ह भेंट कर मुख्य वक्ता का स्वागत किया।
आभार प्रदर्शन और प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन संग्रहालय के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में राजनीति विज्ञान,पत्रकारिता के विद्यार्थी,प्राध्यापकों के अलावा प्रशासनिक अधिकारी व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
हारे दल के राजनेता ने भी की सराहना
व्याख्यान में रावत ने अपने कार्यकाल के दौरा न हुए कई अनुभवों को सुनाया। उन्होंने बताया कि एक राज्य के रास चुनावों में विवाद की स्थिति बन गई थी। लेकिन चुनाव आयोग ने पूरे मामले की पारदर्शिता के साथ जांच कराई।
स्थानीय अधिकारियों ने जांच में कुछ हीले-हवाले जरूर किए। सारे मीडिया की नजर उस पर थी। लेकिन हमने दिल्ली से अधिकारियों को राजनीतिक दलों की संतुष्टि के अनुसार कार्य करने के निर्देश दिए। नतीजतन निर्णय माना गया।
उसके बाद हारे हुए दल के शीर्ष नेता ने फोन कर आयोग की कार्यवाही की सराहना की थी। यह राजनीतिक परिपक्वता का प्रमाण है।
कुछ कमियां भी हैं
श्री रावत ने साफगोई से माना कि कुछ खामियां भी हैं। निर्वाचन आयोग के पास सीमित अमला और सीमित समय तक के ही अधिकार हैं। अधिसूचना जारी होने के बाद से परिणाम आने तक ही आयोग की भूमिका होती है। चुनाव स्थानीय कर्मचारियों के भरोसे किया जाता है। हालांकि कर्मचारी तमाम मुश्किलों और बाधाओं के अपना कार्य अंजाम देते हैं, लेकिन वे कई बार स्थानीय लोगों के दबाव में आ जाते हैं, जिससे चुनाव प्रभावित होते हैं।
कर्मचारी-अधिकारी इतने दबाब में आ जाते हैं कि वे गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं या मृत्यु हो जाने जैसी दुखद स्थितियां आ जाती हैं।
हालांकि कर्मचारियों की सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा के प्रयास आयोग द्वारा किए गए हैं। लेकिन फिर भी गुंजाइश है।
सवाल—जवाब
दूसरे सत्र में उन्होंने सवालों के जवाब भी दिए। इसमें एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि आजादी के कुछ सालों तक ‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’ की अवधारणा रही। लेकिन बाद के कुछ सालों में स्थितियां बदलती गई।
80 के दशक में चुनाव आयोग ने कोशिश की थी लेकिन तब बात नहीं बन पाई। यदि कुछ संशोधन और सुधार हो तो यह फिर से लागू हो सकता है।इससे चुनावी खर्च और फेंक न्यूज मामले में प्रयास जरूरी हैं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि स्थानीय निकायों में ईवीएम का प्रयोग हो सकता है। लेकिन स्थानीय स्तर पर विरोध होता है। यह राज्य निर्वाचन आयोग का मामला है।
Comments