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पत्रकार रवीश के नाम का यह कार्ड वायरल किसने किया ?

मीडिया            May 30, 2016


वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार के नाम से यह कार्ड सोशल मीडिया पर तैर रहा है। इसे मध्यप्रदेश के पूर्व मंख्यमंत्री दिग्विजिय सिंह ने भी शेयर किया है। लेकिन उनके ब्लॉग कस्बा में लिखे इस आलेख से यही पता चलता है कि यह रवीश का अपना क्रियेशन नहीं है। इस पर क्या है रवीश कुमार की प्रतिक्रिया:— 27 मई से सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों से ये तस्वीर मुझ तक पहुँच रही है । बहुत देर तक सोचता रहा कि ये कब कहा है। इतने दिनों से लिख रहा हूँ क्या पता किसी संदर्भ में लिख ही दिया हो । बहुत याद करने के बाद ख़ुद से पूछा कि क्या मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर ऐसा कहा है ? मुझे नहीं लगता कि मैंने ऐसा कुछ कहा है । तस्वीर तो मेरी है पर मैंने ये पोस्टकार्ड नहीं बनाया है । पता नहीं किसने बनाया है और बाँट रहा है ।इसे देखते ही मुझे नियमित रूप से गरियाने वाले और गरियाने लगे हैं और नियमित रूप से तारीफ़ करने वाले ख़ुश हो गए हैं कि किसी ने तो कहने की हिम्मत दिखाई ।जबकि दोनों ग़लत है । न चाहते हुए भी कितने लोग मेरी ज़िंदगी में प्रवेश कर जाते हैं । किसी की बेपनाह मोहब्बत से संदेश का यह कार्ड पैदा हुआ है या कोई मेरा समर्थक होने का नाटक कर मुझे गाली खिलवाना चाहता है । कितना पता करें । इस प्रक्रिया रोक तो नहीं सकता लेकिन इसी तरह चलता रहा तो एक दिन स्कूलों की दीवारों और रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग कक्ष में मेरे नाम से बहुत कुछ लिखा मिलेगा । सदा सत्य बोलो । अपने शिक्षकों का आदर करो । एक नई पीढ़ी इस यक़ीन के साथ तैयार हो जाएगी कि शिक्षकों के आदर की बात वेदों, पुराणों और संविधानों से पहले प्राइम टाइम के एंकर ( ज़ीरो रेटिंग वाले) रवीश कुमार ने कही है । जबकि मेरा बस चले तो मैं इस तरह के वाक्यों को प्रचलित करना चाहूँगा । नेताओं के फ़र्ज़ी भाषण ग़ौर से सुनो । नेताओं के भाषण पर भरोसा करो और गड्ढे में रहो । इससे गिरने का ख़तरा नहीं रहेगा । कभी सवाल मत करो हमेशा ताली बजाओ । ख़ुद पर नहीं नेता जो कहें उसी पर भरोसा कहो । इतिहास मत पढो, जो नेता कहें उसी को इतिहास समझ लो । नेता अगर किसी समुदाय से लड़ने के लिए कहें तो लड़ लो और मिटने का शौक़ पूरा कर लो । अजीब हाल है । कोई कुछ भी चला देता है और हर कोई इस जाल में फँस जा रहा है । मैंने डार्विन से भी ख़तरनाक एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है । हम लाख विद्वान होने का प्रयास कर लें लेकिन ख़ुद को मूर्खता का शिकार होने से नहीं बचा सकते । “मूर्खता आदम की आदिम और आधुनिक प्रवृत्ति है ” – रवीश कुमार । इस सिद्धांत के प्रतिपादन में मैंने सोशल मीडिया के अलग अलग मंचों पर दस वर्ष बिताये हैं, वो भी भारत की सोशल मीडिया में । कस्बा से साभार।


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