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भारत में पत्रकार कितने सुरक्षित? क्या कहते हैं मीडिया दिग्गज?

मीडिया            Jul 14, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क देश में पत्रकारिता करना सुरक्षित नहीं रह गया है। आंकड़े बताते हैं कि हाल के दिनों में पत्रकारों पर हमलों आदि की घटनाएं बढ़ी हैं और इनमें से कई पत्रकारों की मौत भी हो गई है। मध्‍य प्रदेश के व्‍यावसायिक परीक्षा मंडल (व्‍यापम) घोटाले की रिपोर्टिंग कर रहे ‘आज तक’ के पत्रकार अक्षय सिंह की इसी महीने रहस्‍यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इससे कुछ हफ्ता पूर्व ही खनन माफिया के खिलाफ अभियान चलाने वाले मध्‍य प्रदेश के पत्रकार संदीप कोठारी की जलाकर हत्‍या कर दी गई थी। इसके अलावा पिछले हफ्ते ही झारखंड में एक और पत्रकार की गोली मारकर हत्‍या कर दी गई। क्‍या पाकिस्‍तान से भी बदतर हो रहा है देश ? कमेटी फॉर प्रोटेक्‍शन फॉर जर्नलिस्‍ट (CPJ) के अनुसार, वर्ष 1992 से अब तक भारत में 61 पत्रकार मारे जा चुके हैं। इनमें वे मीडिया कर्मी और रिपोर्टर भी शामिल हैं जो विभिन्‍न खतरनाक असाएनमेंट (dangerous assignments) के दौरान मारे गए। वहीं आईपीआई की डेथ वाच ‘Death Watch’ द्वारा लिस्‍ट के अनुसार 1997 से 2014 के बीच यह संख्‍या 49 है। जबकि पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान में सबसे ज्‍यादा मीडियाकर्मी मारी गए हैं। CPJ के अनुसार इनमें पाकिस्‍तान का रिकार्ड सबसे ज्‍यादा खराब है। एक और एजेंसी ‘Reporters without Borders’के अनुसार, World Press Freedom Index में पत्रकारों पर हमले के मामले में 180 देशों में भारत को 136वें नंबर पर रखा गया है। पाकिस्‍तान की रैंक 159, चीन का 176 और बांग्‍लादेश का 146 वां है। इसके अलावा अफगानिस्‍तान को 122 और नेपाल को 105वें नंबर पर रखा गया है। एक न्‍यूजपेपर और न्‍यूजएजेंसी के संपादक रहे और वर्तमान में बेंगलुरु में पत्रकारिता के शिक्षक जॉन थॉमस ने कहा, ‘किसी भी सभ्‍य समाज में इस तरह की घटनाओं को जगह नहीं दी जा सकती है। प्रजातंत्र में सभी को अपनी अभिव्‍यक्ति का अधिकार होता है, वहां इस तरह का बल प्रयोग स्‍वीकार नहीं किया जा सकता है।’ हालांकि व्याुपम मामले में अक्षय की मौत को मीडिया ने काफी कवरेज दिया, लेकिन देश में पत्रकारों की मौत के मामले में और भी आवाज उठाई जानी चाहिए। abhigyan-prakash एनडीटीवी इंडिया के सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार अभिज्ञान प्रकाश साफ तौर पर कहते हैं कि पत्रकार को सुरक्षा नहीं चाहिए पर वे असुरक्षित महसूस न करें, ये व्यवस्था होनी चाहिए। वे हाल के मामलों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस तरह आज राज्य सरकारें पुलिस से अपनी पर्सनल आर्मी के तौर पर पत्रकारों के खिलाफ काम करवा रही है, वे कतई स्वीकार नहीं है। अभिज्ञान जोर देते हुए कहते हैं कि पत्रकारों को सुरक्षा नहीं चाहिए, पर रिपोर्टिंग करते समय हम खुद को असुरक्षित महसूस न करें, ये भी जरूरी है। द न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस (The New Indian Express) के एडिटोरियल डायरेक्‍टर (Editorial Director) और वरिष्‍ठ पत्रकार प्रभु चावला का मानना है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सरकार और मीडिया संगठनों, दोनों की सामूहिक जिम्‍मेदारी बनती है। उन्‍होंने कहा, ‘पत्रकारों को सुरक्षा की जरूरत है और यह सरकार व संगठन दोनों को देनी चाहिए।’ om-thanvi जनसत्‍ता के संपादक ओम थानवी किसी भी माध्‍यम से सहायता मिलने को लेकर संशंकित हैं। उन्‍होंने कहा, ‘प्रेस गिल्‍ड सिर्फ सरकार से सुरक्षा की मांग कर सकती है। ये संगठन सुरक्षा नहीं उपलब्‍ध करा सकते हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो पत्रकारों को सरकार कभी सुरक्षा मुहैया नहीं कराएगी, क्‍योंकि वे तो उनके खिलाफ लिखते हैं।’ अक्षय सिंह की मौत की निंदा करते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार सबा नकवी ने ट्वीट किया, ‘आरटीआई कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के लिए भारत काफी सुरक्षित देश है।’ sagarika-ghose द टाइम्‍स ऑफ इंडिया (The Times of India) की सलाहकार संपादक (Consulting Editor) सागरिका घोष ने कहा, ‘प्रेस क्‍लब और पत्रकारों के निकायों के साथ-साथ मिलकर आगे आना चाहिए और पत्रकारों की मौत के मामलों में संज्ञान लेना चाहिए। उत्‍तर प्रदेश में अभी एक पत्रकार को जलाकर मार दिया गया था अब मध्‍य प्रदेश में अक्षय सिंह की मौत हो गई है। अक्षय सिंह की मौत किन परिस्थितियों में हुई, यह भी एक रहस्‍य बना हुआ है। क्‍या बदलने की है जरूरत इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन संस्‍थानों के लिए पत्रकार काम करते हैं, उनके अलावा उन्‍हें कुछ सरकारी प्राधिकरणों की मान्‍यता मिलती है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), इंडियन न्‍यूजपेपर सोसायटी (INS) को विभिन्‍न प्रकाशनों और उनमें कार्यरत कर्मचारियों को धमकी मिलने के मामले में हस्‍तक्षेप का अधिकार मिलना चाहिए। यह काफी अफसोसजनक है कि हमारे देश में पत्रकार बिरादरी काफी परेशान हो चुकी है। यह काफी प्रशंसनीय है कि PCI ने केंद्र सरकार से पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने के लिए एक कानून बनाने की मांग की है और इस तरह के अपराध को संज्ञेय अपराध घोषित करने की मांग की है। इसके अलावा यह भी मांग की गई है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के मामलों को विशेष कोर्ट में सुना जाए और एक तय समय में इन मामलों का निपटारा किया जाए। ऐसे में इस तरह का सिस्‍टम तैयार करने की जरूरत है जिसमें पत्रकार सच कहने से घबराएं नहीं और खुद को सुरक्षित महसूस करें। ‘Reporters without Borders’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि प्रेस संस्‍थानों के प्रति भारतीय सरकारी संगठनों की उदासीनता काफी खतरनाक है। ऐेस में सच आसानी से बाहर निकलकर नहीं आ सकता है। साभार समाचार4मीडिया


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