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महाराष्ट्र सरकार का नया फरमान:नेताओं, मंत्रियों की आलोचना की तो लगेगा राजद्रोह

मीडिया            Sep 04, 2015


मल्हार मीडिया ब्यूरो अब महाराष्ट्र में सरकार, इसके नेताओं, मंत्रियों की आलोचना राज द्रोह मानी जाएगी। खबर है कि महाराष्ट्र सरकार के ताजा आदेश (सर्कुलर) के मुताबिक, सरकार, उसके किसी मंत्री, मुख्यमंत्री और जन प्रतिनिधि के खिलाफ कुछ लिखना अथवा कार्टून भी बनाना राजद्रोह के दायरे में आएगा। यह महाराष्ट्र के रास्ते देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला या कहें आपातकाल की आहट तो नहीं! महाराष्ट्र में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ टिप्पणी करने वाले पर देशद्रोह का केस दर्ज होगा। शुक्रवार को राज्य सरकार ने इस बारे में सर्कुलर जारी कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के निर्देश का हवाला देते हुए ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए सर्कुलर जारी किया है। सर्कुलर के मुताबिक कोई भी व्यक्ति लिखकर, बोलकर, संकेतों के जरिए, चित्रों या किसी भी दूसरे तरीके से सरकार के प्रतिनिधि या जन प्रतिनिधि के खिलाफ नफरत, अपमान, अलगाव, दुश्मनी, असंतोष, विद्रोह या हिंसा का भाव पैदा करता है या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए के तहत कार्रवाई हो सकती है। महाराष्ट्र सरकार के इस नए आदेश में मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के अलावा जिला परिषद अध्यक्षों और पार्षदों को भी जन-प्रतिनिधि माना गया है। यानी इन सभी के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी देशद्रोह के दायरे में आएगी। सरकार के सर्कुलर में आईपीसी की जिस धारा 124ए का जिक्र किया गया है, वो देशद्रोह के मामले में लागू होती है। इंडियन पीनल कोड के आर्टिकल 124 A के मुताबिक अगर कोई अपने भाषण या लेख या दूसरे किसी भी तरीके से सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश करता है तो उसे तीन साल तक की कैद हो सकती है। कुछ विषेश मामलों में ये सजा उम्रकैद तक हो सकती है। अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2015 में आईटी एक्ट की धारा 66ए के बेजा इस्तेमाल पर उसे तो निरस्त कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने यह साफ किया था कि इसका मतलब ये नहीं है कि किसी को कुछ भी कहने या लिखने की आजादी है। संविधान भले ही हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी देता है लेकिन संविधान ने उसकी सीमाएं भी तय कर रखी है। उन सीमाओं से बाहर जाकर कही या लिखी गई बातों के लिए कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। कोर्ट के इस फैसले से सोशल मीडिया पर लिखने-बोलने वालों ने राहत की सांस ली थी लेकिन तब भी ये साफ था कि कुछ भी लिखने की छूट नहीं है। लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार कोर्ट के दिशा-निर्देश के जरिए बोलने वालों की आजादी पर लगाम लगाना चाहता है।


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