डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
यह दौर वाट्सएप पत्रकारिता का है। प्रिंट, रेडियो, टीवी और इंटरनेट पत्रकारिता शायद पुराने दौर के माध्यम हो गए हैं। इंटरनेट के आने के बाद टेली प्रिंटर वाली न्यूज एजेंसियों का पूरा कारोबार ठप पड़ गया है। न्यूज एजेंसियों ने भी टेली प्रिंटर की जगह इंटरनेट को अपना लिया है। वाट्सएप अब न्यूज गेदरिंग का सबसे सस्ता, आसान और सुलभ टूल बन गया है।
दुनिया में एक अरब लोग वाट्सएप से जुड़े हैं। इनमें से अधिकांश वाट्सएप का उपयोग छोटी-मोटी सूचनाओं के लेन-देन के लिए ही करते हैं। पत्रकारों के लिए वाट्सएप टूल एक आसान और सुविधाजनक उपलब्धता वाला जरिया है। पत्रकारों के ग्रुप इसका उपयोग ब्रेकिंग न्यूज के लिए करते हैं। भारत में लगभग सभी जगहों पर पत्रकारों ने वाट्सएप का उपयोग अपने प्रोफेशन के लिए करना तो पहले ही शुरू कर दिया था। अब मीडिया संस्थान भी इसका उपयोग करने लगे हैं।
आज के दौर में वाट्सएप पर न्यूज चैनलों के स्पेशल बुलेटिन आ रहे हैं। कुछ अखबारों ने तो अपने वाट्सएप एडिशन भी शुरू कर दिए हैं। भोपाल से निकलने वाले प्रदेश टुडे अखबार ने इंटरनेट पर तो अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ही है। साथ ही अब उसने अपने अखबार के वाट्सएप एडिशन भी अलग-अलग ग्रुप को भेजना शुरू किया है। अगर आप भौतिक रूप से अखबार नहीं देख पा रहे हैं या इंटरनेट पर अखबार की वेबसाइट नहीं खोल पा रहे हैं, तब अखबार के वाट्सएप एडिशन से काम चला सकते हैं। यह बात और है कि अभी इस तरह के प्रयोग का व्यवसायिक लाभ प्राप्त करने की कोई योजना नहीं है। हो सकता है आने वाले समय में कोई ऐसा प्रयोग भी हो, जब वाट्सएप बुलेटिन के उपभोक्ताओं से शुल्क लिया जा सके और वे कभी भी अपनी मनचाही खबर पढ़ सकें।
ऐसे ही प्रयोग इंदौर में
एसआर न्यूज के सुनील जोशी ने वाट्सएप वीडियो बुलेटिन के माध्यम से शुरू किए थे। 2013 में इस तरह के बुलेटिन की शुरूआत की गई थी। एक से डेढ़ मिनिट के ये वाट्सएप बुलेटिन स्थानीय समाचारों की हेड लाइन्स के होते थे। कभी-कभी राष्ट्रीय खबरों पर भी विशेष बुलेटिन का प्रसारण किया गया। इंदौर में होने वाले इस प्रयोग के बाद अब कई शहरों से इस तरह के बुलेटिन शुरू हुए हैं। वर्तमान में अधिकांश समचाार पत्रों के इंटरनेट एडिशन में भी वीडियो समाचार होते हैं। कुछ अखबारों ने इन वीडियो समाचारों के वाट्सएप बुलेटिन निकालना शुरू कर दिया है। ऐसे बुलेटिन को आप आसानी से कहीं भी चलते-फिरते अपने मोबाइल पर देख सकते हैं। इन वीडियो बुलेटिन के कारण सूचना के साथ ही वीडियो पहुंचना भी आसान हो गया है। कुछ माध्यमों ने तो ऐसे वाट्सएप बुलेटिन में बड़े चैनलों पर दिखाए जाने वाले पीटूसी की तरह के सेग्मेंट भी जोड़ दिए हैं।
स्थानीय अखबारों के वाट्सएप बुलेटिन का उपयोग आमतौर पर किसी प्रचार अभियान के लिए किया जाता है। अखबार के पेज को तैयार करके उसे वाट्सएप बुलेटिन के रूप में अलग-अलग ग्रुप में प्रेषित कर दी जाती है। छपे हुए अखबार की तरह दिखने वाली यह तस्वीर मोबाइल पर एनलार्ज करके पढ़ी जा सकती है। ये फाइलें आमतौर पर जेपीजी में बनाई जाती है। सीएमवायके के बजाय ये फाइलें आरजीबी रंगों में होती है।
समाचारों की भारी प्रतिस्पर्धा के बावजूद लगभग सभी प्रमुख शहरों में रिपोर्टर्स और कैमरापर्सन्स वाट्सएप पर खबरों और दृश्यों को शेयर कर रहे हैं। मुंबई-दिल्ली जैसे शहरों के साथ ही छोटे शहरों में भी पत्रकार ग्रुप बनाकर काम करते हैं और कम मेहनत में ज्यादा समाचार संग्रहित कर लेते हैं। कई बार तो एक ही खबर समान विजुअल और स्क्रिप्ट के साथ अलग-अलग चैनलों पर दिखाई देती हैं। इसका श्रेय भी वाट्सएप पत्रकारिता के सहकारिता अभियान को जाता है। अर्थात सभी खबरें, सभी के पास। ऐसे में बहुत ही कम खबरें है, जो चैनल अपने लिए एक्सक्लूसिव तैयार करते हैं।
वाट्सएप का उपयोग न्यूज गेदरिंग में और कैसे बेहतर हो सकता है, इसके बारे में अभी भी कई जगहों पर शोध चल रहे हैं। वेबसाइट स्टोरीफुल के ग्लोबल न्यूज एडिटर डेविड क्लिंच और न्यूज एडिटर जो गेलविन इस बारे में लगातार शोध कर रहे हैं कि वाट्सएप का उपयोग और कैसे बेहतर तरीके से किया जाए। अभी समाचार चैनलों में लाइव शो के लिए दर्शकों को बुलाने के लिए भी वाट्सएप ग्रुप का उपयोग किया जा रहा है। वे इस बारे में भी शोध कर रहे है कि वाट्सएप का दुरुपयोग कैसे रोका जाए। कई प्रमुख अखबारों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारिता के विद्यार्थियों, विश्वविद्यालयों के कर्मचारियों आदि के अलग-अलग ग्रुप बना रखे है। पत्रकार इन ग्रुप में भेजी जाने वाली सूचनाओं को लगातार देखते रहते हैं। इस तरह कई ब्रेकिंग न्यूज अखबारों के पास पहुंच जाती है। यह बात और है कि अखबार उन समाचारों को जब तक प्रकाशित करते है, तब तक वे समाचार ब्रेकिंग नहीं बचते।
इंदौर के एक अखबार के संपादक ने अपने संवाददाताओं को यह निर्देश दे रखे थे कि वे जब भी फील्ड में रिपोर्टिंग के लिए जाए, तब वहां की एक सेल्फी वाट्सएप पर संपादक को भेज दें, ताकि यह बात सुनिश्चित हो जाए कि रिपोर्टर ने घटनास्थल पर जाकर ही समाचारों का संकलन किया है। संपादक का मानना है कि जब रिपोर्टर वास्तव में घटनास्थल पर पहुंचते है, तब उन्हें समाचार की वे बारिक बातें भी पता चलती है, जो टेलीफोन पर पता नहीं चलती।
अखबारों और टीवी चैनलों के संपादकों और संचालकों पर कानून की निगाहें होती है, जो कि उनके रजिस्ट्रेशन होते हैं। अखबारों और चैनलों के दफ्तर भी सबको मालूम होते हैं। ऐसे कार्यालय खोलने के लिए स्थानीय निकायों में भी पंजीकरण होता है। गैर जिम्मेदारी से काम करने के बाद इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना आसान होता है। इसके विपरीत वाट्सएप पर गलत और दुर्भावनापूर्वक समाचारों के आदान-प्रदान के मामले सामने आए है और कुछ लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई है। वाट्सएप पत्रकारिता का चलन बढ़ने से पत्रकारिता में गैर जिम्मेदार तत्वों की सक्रियता कानून और व्यवस्था की परेशानी खड़ी कर सकती हैं।
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