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संघर्षशील पत्रकारिता के 14 साल और 'मल्हार मीडिया'

मीडिया            Sep 15, 2015


ममता यादव 15 सितंबर 2002 को कदम रखा पत्रकारिता के क्षेत्र में सागर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद भोपाल को कर्मभूमि बनाने की ओर पहला कदम। बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई छोटा बच्चा उस रास्ते पर चला जाये जिस पर उसे पता न हो लेकिन ये भी भरोसा हो कहीं न कहीं तो पहुंचेगा ही। 14 साल.....! पीछे मुड़कर देखती हूं तो अनगिनत कड़वे,खट्टे—मीठे अनुभव ज्यादा असफलतायें कम सफलतायें। एक बड़ी सफलता मल्हार मीडिया। लोगों की नजर में ये शायद बड़ी न हो पर मेरे लिये बड़ी है। मेरा मान,स्वाभिमान,कर्म, सबकुछ। कठिनतम संघर्ष और एक लड़की होने के नाते मुश्किल से मुश्किल रास्ते। रास्ते बहुत आसान आज भी नहीं हैं मगर कठिन उतने भी नहीं। आज भी याद है मेरे साथ इंटर्नशिप में 8 लड़के आये थे और मैं अकेली लड़की सब वापस चले गये। किसी ने अपने पारिवारिक काम सम्हाले किसी ने दूसरे क्षेत्र चुन लिये। भोपाल मेरे जीवन के अनुभवों की पाठशाला है। दो साल अन्य शहरों इंदौर और रायपुर में अच्छी नौकरी होने के बाद भी भोपाल से मोह नहीं छूटा। लगभग आधे से ज्यादा समय मेरा नौकरियां ढूढ़ने और बेरोजगारी में बीता है। कई नौकरियां छोड़ीं कई कारण रहे। कभी लगता इस शहर ने मुझे सिर्फ कठिनाईयां दी हैं फिर भी क्यों इसे छोड़ने का मन नहीं करता। कई बार मन किया वापस चली जाउं मगर पारिवारिक परिस्थितियां और संयोग ऐसे बनते गये कि नहीं जा पाई। कभी भोपाल में वो दिन भी देखा कि इसी शहर में रात को 10 बजे आॅटो में सामान लेकर अपनी एक दोस्त का घर ढूढ़ रही थी। उसके घर जैसे—तैसे पहुंची तो उसके भाई ने मना कर दिया रहने से। उसने अपनी कुछ दूसरी दोस्तों से बात की 4—5 लड़कियां रहती थीं दूसरे दिन उन्होंने भी मना कर दिया। आखिर अपने सहपाठी देवेंद्र को फोन लगाया। देवेंद्र सागर भास्कर में कार्यरत है उसने, जहां रहता था वहां एक कमरा दिलवाया। आज किराये का सही लेकिन एक फ्लेट है। बड़ा मकान हमेशा इसलिये रखती हूं कि कभी कोई बाहर की लड़की आये तो उसे परेशानी न हो मैं अपने यहां जगह दे सकूं। बाहर का जो भी होता है उसकी हरसंभव मदद करने की कोशिश करती हूं। इंटर्नशिप के बाद पहली नौकरी के लिये जब स्वदेश में गई थी तो मुझसे कहा गया था कि अगर आपका कोई जान—पहचान वाला भोपाल में हो तो हम आपको नौकरी दे सकते हैं। नवभारत जहां पर इंटर्नशिप की थी वहां भी यही बोला गया कि आप अकेली रहती हैं। आज मेरे पास हजारों लोगों की पहचान है। भोपाल आकर मुझे शिद्दत से अहसास कराया गया कि अकेली लड़की घर से बाहर नहीं रह सकती घर में रहते सागर में इस बात का अहसास नहीं हुआ क्योंकि सागर पिछड़ा होते हुये भी इस मामले में समृद्ध् था कि लड़कियां तब भी दूसरे शहरों में पढ़ाई नौकरी आदि करने जाती थी। सागर में घर जहां पर है वहां पर यूनिवर्सिटी सरकारी कॉलेज और दफ्तर हैं तो कई लड़कियां आकर रहती थीं। यह बात कभी दिमाग में नहीं आई। लेकिन जब राजधानी में यह सवाल पूछा जाता तो मैं हैरान होती थी कि क्यों अकेली लड़की बाहर जॉब के लिये नहीं रह सकती? एक बात जो सबसे ज्यादा तकलीफ देती थी वो ये कि लोगों की सोच होती थी कि घर में आर्थिक परेशानी होगी इसलिये काम करने आई है। बहरहाल कई जगह नौकरियां की। एक संस्थान में बदतमीजी की गई तो उनके मुंह पर कागज मारकर चली आई उसका खामियाजा मुझे किस तरह भुगतना पड़ा इसका अंदाजा कोई लड़की ही लगा सकती है। मेरा नाम किसी के साथ जोड़कर बदनाम किया गया। यह तक कहा गया कि मैं शादी करके उसके साथ रहती हूं। क्या ये भी कोई आधार होता है किसी को नौकरी पर रखने या उसे हटाने का...? हालत यह कर दी गई कि जहां भी नौकरी के लिये जाती आज कहा जाता कल से आ जाईये दूसरे दिन इन्कार कर दिया जाता। एक नामी अखबार में तो 2005 में कई वरिष्ठ पत्रकारों की पूरी लॉबी मेरे खिलाफ हो गई मालिकों से ये कहकर मना करवा दिया गया कि इनके पीछे इंटेलीजेंस लगी है जहां भी जाती हैं तो पता चल जाता है। (जागरण)। आज सोचती हूं तो हंसी आती है पत्रकार तो जहां जाता है सबको पता चल ही जाता है। आज यह सब इसलिये लिख पा रही हूं क्योंकि मैं उस मजबूत स्थिति में खुद को पाती हूं कि जहां से यह सब बयान कर सकूं। बहरहाल इस संघर्ष, इस कठिन दौर में विजय द्वार,डेमोक्रेटिक वल्ड नईदुनियां रायपुर,आयुष्मान पत्रिका हॉं वेब जर्नलिस्म की शुरूआत खबरनेशन से हुई जैसी कई जगहों में काम किया और यही वो दो—चार जगहें थीं जहां से कैरियर को मजबूत सहारा मिला। इस बीच एक के बाद एक परिवार के चार सदस्यों का इस दुनियां से कुच कर जाना, मेरा एक्सीडेंट और एक साल तक बिस्तर पर रहना। तब अंदाजा हुआ मुझे उनकी तकलीफ का जिनके हाथ—पैर कट जाते हैं। मैं मोहताज थी अपने बिस्तर तक से उठने के लिये। ऐसे में मेरी एक रूममेट सहारा बनी। 24 घंटे तीन महीने तक मेरे पैर का आॅपरेशन होने और उसके ठीक होने तक।उस आॅपरेशन में बायें पैर का अंगूठा काटना पड़ा बहरहाल इस 14 साल के सफर में एक आखिरी रिस्क था मल्हार मीडिया शुरू करना। मुझे नहीं पता था कहां जा रही हूं। आज स्वाभिमान और इज्जत के साथ खड़ी हूं आप सबके सामने। मेरा लक्ष्य स्पष्ट है। आज मल्हार मीडिया को मैं अपनी सफलता इसलिये मानती हूं क्योंकि बिना किसी सहारे के अपने दम पर इसे लगातार खड़ा करने की कोशिश कर रही हूं। मेरे इस प्रयास को बल मिल रहा है कुछ वरिष्ठों,कनिष्ठों और हमउम्र साथियों के नि:स्वार्थ सहयोग के कारण। यही मेरी पूंजी भी है। इस 14 साल के सफर में जिन—जिन ने भी मेरा साथ दिया उनके लिये मेरे पास बस दो शब्द हैं या! मेरा हौसला बढ़ाने के लिये,मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिये। एक बहुत बड़ा शुक्रिया उनका भी जिन्होंने मेरे रास्ते मुश्किल किये अगर ऐसा न होता तो शायद आज मल्हार मीडिया नहीं होता। मेरे 14 साला संघर्ष का परिणाम है मल्हार मीडिया और मेरी पूंजी है मेरे अच्छे साथी। उम्मीद है मल्हार मीडिया का ये सफर आप सबके साथ अनवरत,निडरता,निष्पक्षता और स्वच्छ—स्वस्थ् विचारों के साथ चलता रहेगा। आभार,शुक्रिया!



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