शपथ लेने के कुछ ही दिनों बाद इन्दिरा गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया। अगले दिन इसका अखबारों कवरेज हुआ। इसके कुछ रोचक प्रसंग झलकियाँ शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किए गए थे। बालक होते हुए भी प्रेस ट्रस्ट के हवाले से अंगरेजी अखबार मे छपे एक प्रसंग ने मुझे तब भी आहत किया था । उसमें सगर्व लिखा था कि ज़्यादातर सवाल अंगरेजी में थे हिन्दी में एक भी सवाल नहीं पूछा गया..?
मेरे बालमन में तब यह सवाल कौंधा था कि प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहे उन अखबारों के संवाददाताओं ने हिन्दी मे सवाल क्यों नहीं पूछे जिनके संपादकों ने अंगरेजी में संदेश देने के लिए इन्दिरा गांधी को आड़े हाथों लिया था...?
दरअसल यह उन हिन्दी वालों के मुखौटों के पीछे का असली चेहरा सामने ले आया जो दुकानदारी तो हिन्दी की करते हैं और ऐसे आयोजनों पर हावी रहते हैं लेकिन अंगरेजी के संसार में रचे बसे हैं। वकालत हिन्दी की और बच्चों की पढ़ाई अंगरेजी में..! यही चेहरा इन दिनों मध्यप्रदेश के अखबारों का है, मुखौटा हिन्दी का और पाठकों को परोस रहे अंगरेजी..?
Comments