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हिन्दी की त्रासदी:मुखौटा हिन्दी का और परोस रहे अंग्रेजी!

मीडिया            Sep 11, 2015


श्रीप्रकाश दीक्षित स्वर्गीय इन्दिरा गांधी 1966 की शुरुआत में पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं। तब के रस्मों-रिवाज के मुताबिक पद संभालने के बाद उन्हें देश की जनता के नाम संदेश देना था। उस समय दूरदर्शन तो था नहीं, आकाशवाणी का एकछत्र राज था। सो इंदिराजी ने एक रात आठ बजे के आसपास राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने संदेश के लिए अंगरेजी को चुना, जिसके तुरंत बाद उसका हिन्दी अनुवाद उदघोषक की आवाज में प्रसारित किया गया। बस फिर क्या था..! हिन्दी के अखबारों ने इस उपेक्षा के लिए उन पर आलोचनाओं के कोड़े बरसाना शुरू कर दिए। हिन्दी प्रदेशों और दिल्ली के दो-तीन अखबारों ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए संपादकीय और विशेष लेखों से पन्ने रंग दिए। hindi-002 शपथ लेने के कुछ ही दिनों बाद इन्दिरा गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया। अगले दिन इसका अखबारों  कवरेज हुआ। इसके कुछ रोचक प्रसंग झलकियाँ शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किए गए थे। बालक होते हुए भी प्रेस ट्रस्ट के हवाले से अंगरेजी अखबार मे छपे एक प्रसंग ने मुझे तब भी आहत किया था । उसमें सगर्व लिखा था कि ज़्यादातर सवाल अंगरेजी में थे हिन्दी में एक भी सवाल नहीं पूछा गया..? मेरे बालमन में तब यह सवाल कौंधा था कि प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहे उन अखबारों के संवाददाताओं ने हिन्दी मे सवाल क्यों नहीं पूछे जिनके संपादकों ने अंगरेजी में संदेश देने के लिए इन्दिरा गांधी को आड़े हाथों लिया था...? दरअसल यह उन हिन्दी वालों के मुखौटों के पीछे का असली चेहरा सामने ले आया जो दुकानदारी तो हिन्दी की करते हैं और ऐसे आयोजनों पर हावी रहते हैं लेकिन अंगरेजी के संसार में रचे बसे हैं। वकालत हिन्दी की और बच्चों की पढ़ाई अंगरेजी में..! यही चेहरा इन दिनों मध्यप्रदेश के अखबारों का है, मुखौटा हिन्दी का और पाठकों को परोस रहे अंगरेजी..?


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