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इंडियन एक्सप्रेस और टेलीग्राफ का फर्क,सिर्फ एक खबर पर प्रभाष जी ने कहा था कि चिकोटी नहीं काटते

मीडिया            Jan 01, 2019


संजय कुमार सिंह।
जनसत्ता का नारा था, "सबकी खबर ले, सबको खबर दे"। खबर लेने के मामले में हम किसी को नहीं छोड़ते। जनसत्ता के बारे में लोग चाहे जो कहें मैं जानता हूं कि किसी खबर के लिए मैंने किसी से नहीं पूछा। ना कभी कुछ कहा गया ना पूछा गया।

सिर्फ एक खबर पर प्रभाष जी ने कहा था कि चिकोटी नहीं काटते। खबर है तो बढ़िया से छापो। कल सुरेन्द्र किशोर की एक पोस्ट पर मैंने लिखा था, एक्सप्रेस की ओर से बोफर्स अभियान तो अरुण शौरी और गुरुमूर्ति ने ही चलाया था। और आज इंडियन एक्सप्रेस ने मौका दे दिया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो दिन पहले पोर्टब्लेयर में थे। वहां उन्होंने सेल्यूलर जेल में हिन्दुत्व विचारक वीर सावरकर को जिस सेल में रखा गया था वहां बैठकर उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि दी। एक फोटो उन्होंने इंस्टाग्राम पर शेयर किया जिसे टेलीग्राफ ने निम्न विवरण के साथ पहले पन्ने पर छापा है।

जल्दी बताइए, क्या आप उनका दिमाग पढ़ सकते हैं?

अगर आपके विचार खुद प्रधानमंत्री की तरह ही देशभक्तिपूर्ण हैं तो आप सही हैं। नरेन्द्र मोदी ने इतवार की सुबह इस विवरण के साथ पोर्टब्लेयर से यह तस्वीर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट में पोस्ट की है : "खुबसूरत पोर्ट ब्लेयर में में एक सुबह .... सूर्योदय जल्दी हुआ और परंपरागत परिधान।"

इसके बाद पता चला कि उनके दिमाग में क्या चल रहा था : "हमारी आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर देने वाले स्वतंत्रता संघर्ष के महान वीरों के बारे में सोच रहा हूं।"

सेल्यूलर जेल में मोदी ने हिन्दुत्व विचारक वीर सावरकर को जिस सेल में रखा गया था वहां बैठकर उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि दी। 1913 में सावरकर ने एक अपील में लिखा था : "

इसलिए अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा, जो कि विकास की सबसे पहली शर्त है।"

दूसरी फोटो पीटीआई की है जिसे इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें वीर सावरकर के नाम से मशहूर वीडी या विनायक दामोदर सावरकर के बारे में यह नहीं बताया गया है कि वे स्वतंत्रता आंदोलन से पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए थे। यह कथित इतिहास बदलने की फूहड़ कोशिशों में साथ देना नहीं तो और क्या है?

 


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