थोथी व्यवस्था के नाम पर थोपी गई पाबंदी मीडिया से घबराहट की निशानी है

मीडिया            Jul 10, 2019


संदीप सिंह सहर।
दुनिया को दिखाने और सुनाने वालों देख लो ध्यान से सुन लो ये हद है तुम्हारी हां हां हद…ये ही सरहद भी…गोया जैसे उसके पार दुनिया किसी और की हो… तुम जा नहीं सकते उस पार… हां वो चाहे तो जरूर तुमसे मिलने आ सकते हैं, लेकिन जिनसे तुम मिलना चाहते हो,,, बात करना चाहते हो… तो दूर से ही आवाज़ देनी होगी, वो सुन ले तो ठीक नहीं तो तुम उसके पास जा नहीं सकते… क्यों की तुम्हे वहां जाने की इजाजत नहीं है।

ये फ़रमान है साहेब का… क्योंकि यही हद है तुम्हारी… उन्हीं के इशारे से खींची गई हैं तुम्हारी ये हदें, लंबरदार खड़े हैं हर तीन कदम पर, इन्हे पार करने की तुम जुर्रत ना करना, भूल के भी कभी हिम्मत मत करना, अपनी हद में रहना और नहीं समझे हो तो फरमान को एक बार फिर पढ़ लेना।

ये सरहद का मंज़र नहीं बल्कि मध्यप्रदेश विधानसभा का हाले बायां है, ये हुक्मे हालात हैं नई व्यवस्था का है जो पत्रकारों का दायरा तंग कर विधानसभा की सालों पुरानी परमपरा को भी ख़त्म कर चुका है।

ये हद है …. विधानसभा के अंदर पत्रकार किसी विधायक के पास नहीं जा सकता ना किसी मंत्री के पास जाकर सवाल कर सकता, ना नेता प्रतिपक्ष से मिल सकता है ना उनके कैबिन तक जा सकता है, पत्रकार को दिया हुआ पास और उसमे लिखी बातें सब बेमानी हो गईं.. अगर नई व्यवस्था करनी थी और अगर ये पहले ही तय हो गया था तो फिर कार्ड पर पहले से ही नई व्यवस्था के नए नियम का उल्लेख कर देते तो कम से पास कि गरिमा तो रह जाती।

क्यों अचानक ही फैसला लेना पड़ा …आखिर क्यों बांध दिया पत्रकारों को सीमित दायरे में…. आखिर किससे डर रही है सरकार? और क्यों ?

विधानसभा में पत्रकारों को विधायकों से मिलने से क्यों रोका जा रहा है, किस बात का डर है यह पाबंदियां सरकार की घबराहट और कमजोरी दोनों को दिखा रही हैं। यह सख्त फैसला नहीं है, मीडिया पर पाबंदी घबराहट की निशानी है, जो कि थोथी व्यवस्था के नाम पर थोपी जा रही है। यह ना विधानसभा की परंपरा के लिए ना जनता और ना ही पत्रकारिता के लिए अच्छा है। ये हद है….

संसद में रिपोर्टिंग के दौरान का वाकया अच्छे से याद है ऐसी ही पाबंदी 2014 के बाद संसद में मीडिया पर लगाने की कोशिश की गई थी, उस दौरान जब साक्षी महाराज जैसे नए नए सांसदों के विवादित बयान के बाद बैकफुट पर आईं सरकार रातों-रात पत्रकारों के लिए नई व्यवस्था ले आई।

शेड के नीचे पत्रकारों की जहां बैंच पड़ी रहती थी उसे घेर के ऐसीनुमा कमरे की शक्ल से दी गई और कहा गया कि अब आप लोगों को बाहर घूम घूम के बाइट नहीं लेनी है।

नई व्यवस्था के बहाने पत्रकारों को गेट से पहले किसी भी नेता की बाइट लेने से रोका लगा दी गई, मीडिया की एकजुटता ने बिना शोर शराबे के ट्राईपोर्ट पर कैमरे लगाकर उसे ज़मीन की तरफ़ विरोध स्वरूप झुका दिया गया।

और सभी पत्रकार शांति से अपनी अपनी जगह बैठ गए, ये मंज़र देख कर कई नेता हैरान हो रहे थे, कई परेशान भी थे कि आज क्या बात है कि उनकी गाड़ी रुकते ही सर-सर, मैडम-मैडम कर टूट पड़ने वाले पत्रकार और कैमरामैन सब शांत हैं।

आज कोई क्यों नहीं आ रहे हैं….जिन सांसदो को इस फैसले के बारे में पहले ही मालूम था उनको उस रोज झुके हुए कैमरों को देखकर अपनी नज़रे झुकाते हुए देखा था।

राजसभा जाने वाले कई नेता जिनकी नज़र कैमरे पर नहीं पड़ी थी उन्हें माहौल कुछ अजीब लगा तो वो 12 नंबर गेट से अंदर घुसते घुसते वापस लौट आये, ओर वहा मौजूद पत्रकारों से पूछा आज क्या हो गया इतनी शांति क्यों है? कोई मुद्दा नही क्या?

पत्रकारों ने भी मुस्कुरा के झुके हुए कैमरों की तरफ इशारा कर दिया, सांसद जी भी पुराने पत्रकार थे सो तुरंत भाप लिये, अंदर गए तो अपनी पार्टी के सीनियर नेताओं को बताया, सभी विपक्षी पार्टी ने इस फैसले का विरोध किया और विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेता मिलने आए और जल्द बहाली की बात की ओर इस मामले को पुरज़ोर तरीके से उठाया भी,

झुके हुए कैमरे का असर इतना हुआ कि सरकार को झुकना पड़ा और अपना फैसला वापस लेना पड़ा। पाबंदी हटते ही लगा था कि कितनी बड़ी आज़ादी मिली है, अब हम फिर से गाड़ी से उतर कर सदन में जाते हुए नेता को सर सर सर कह रोक कर अपने मुद्दे अपनी ख़बर पर बाइट ले लेंगे… कोई नई बाइट लेकर नया मुद्दा बना देंगे…

पांच साल बाद हदें फिर बताई जा रही है, फिर तंग दायरे में घुटन सी महसूस हो रही है… फिर वही नई व्यवस्था के नाम पर बंदिश लगाई जा रही हैं, वहां संसद में कैमरे पर बाइट करने से रोका गया था लेकिन यहां तो हद है… बिना कैमरे के भी पत्रकारों जाने से रोका जा रहा है, हैरानी इस बात की है कि विधानसभा में पत्रकारों पर पाबंदी उसी कांग्रेस की सरकार लगा रही है जिसने संसद में पाबंदी लगने पर पत्रकारों का साथ दिया था।

जाओ जा के कोई उनसे कह दे
नाकाबिले बर्दाश्त है तेरी ये हदें….!!

लेखक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार हैं।

 



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