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मीडिया में भाषा का अति सरलीकरण ठीक नहीं

मीडिया            Oct 03, 2022


मल्हार मीडिया भोपाल।
‘भाषा’ नदी की तरह प्रवाहमान होती है। इसमें बहुत कुछ नया जुड़ता है और कुछ पीछे छूूट जाता है। माध्यम कोई भी हो उसकी भाषा बोधगम्य होनी चाहिए।  

उसमें संप्रेषणीयता होनी चाहिए। सोशल मीडिया में ‘संकेतों’ का चलन बढ़ा है, लेकिन जिस तरह से भाषा का सरलीकरण किया गया है वह ठीक नहीं है। भाषा ही पत्रकारिता की रीढ़ है इसलिए उसकी गरिमा को बनाये रखना जरूरी है।

कुछ इस तरह के विचार आज  माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान  में सुनाई दिए। मौका था ‘मीडिया की भाषा’  पर आयोजित परिसंवाद का।  

 संग्रहालय  द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव श्रंखला में  किए जा रहे आयोजनों की श्रंखला में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित इस परिसंवाद का आयोजन  किया गया था।  

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय स्टेट बैंक के  मुख्य महाप्रबंधक बिनोद कुमार मिश्र परिसंवाद के मुख्य अतिथि होंगे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार  एनके सिंह  ने की। कार्यक्रम का संचालन युवा पत्रकार मल्हार मीडिया की संपादक ममता यादव ने किया।

इस अवसर पर महापौर मालती राय विशेष रूप से उपस्थित रहीं।

 इस अवसर पर  पिछले माह ‘माधवराव सप्रे और उनका युग’ विषय  पर हुए परिसंवाद के दौरान रिपोर्टिंग प्रतिस्पर्धा के विजयी प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।  
परिसंवाद में जागरण विवि में पत्रकारिता विभाग के प्रो.  दिवाकर शुक्ल ‘डिजिटल मीडिया की भाषा’ पर विचार रखे। उन्होंने इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्षों को उभारा।

 उनका कहना था कि यह मीडिया का नया माध्यम है इसलिए इसकी भाषा पर दुनिया भर में शोध हो रहे हैं। इस माध्यम की भाषा पर  भारत में विचार करना  इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां के मीडिया पर लंबे समय तक अंगरेजी का दबदबा रहा है। यह एक तरह का मौखिक संचार है, जो लिखित संचार में तब्दील हो चला है। इसलिए आम बोलचाल की भाषा का चलन बढ़ा है।  

इसमें सरलता है। साथ ही आम जीवन में इसमें संकेतों  का प्रयोग होता है। यह संकेत भाव तक पहुंचने में मदद करते हैं। लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि शुद्धता की तरफ ध्यान नहीं है। इससे कहीं-कहीं भाषा की गरिमा खंडित होती सी प्रतीत होती है। जो ठीक नहीं कहा जा सकता।
 

अगले क्रम में ‘इलेक्ट्रानिक मीडिया टेलीविजन और रेडियो की भाषा’ विषय पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में समान अधिकार रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने उद्बोधन दिया।

उन्होंने कहा कि इस देश में वैदिक युग से ही वाचिक परंपरा रही है। इसलिए लिखने से ज्यादा आम बोलचाल की भाषा का बड़ा महत्व है। खासकर दृश्य-श्रव्य माध्यमों में तो बोलचाल की भाषा का ही महत्व है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दृश्य होते हैं लेकिन रेडियो पर तो भाषा के जरिये ही प्रभाव पैदा करना होता है।

उन्होंने बदलते समय में मीडिया में आई तकनीक और उसके हिसाब से आलेख लेखन में आ रहे बदलावों को उदाहरण से स्पष्ट किया। पत्रकारिता का दीर्घ अनुभव रखने वाले  वरिष्ठ पत्रकार  डा. सुधीर सक्सेना ‘मुद्रित समाचार माध्यमों की भाषा’ पर वक्तव्य दिया।

उन्होंने कहा कि माध्यम कोई भी हो भाषा की सहजता और संप्रेषणीयता जरूरी है। भाषा ही पत्रकारिता की रीढ़ है इसलिये इसमें सावधानी आवश्यक है। शब्दों की शुद्धता आवश्यक है।

 भाषा की गरिमा बहुत जरूरी है।  माध्यमों की भाषा में तात्कालिक परिस्थतियों के हिसाब से शब्द आते हैं। इसलिए एक पत्रकार के पास शब्द भंडार के साथ ही उसमें नए शब्द गढऩे की कला होनी चाहिए। उन्होंने

भाषा में तीखे शब्दों के प्रयोग और धर्म-मजहब के खांचों में बांटने के प्रयासों पर भी दुख जताया।

 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  स्टेट बैंक ऑफ इंडिया  मुख्य महाप्रबंधक बिनोद कुमार मिश्र ने अपने वक्तव्य में  कहा कि पत्रकारिता एक सशक्त माध्यम है। समाचार पत्रों में इन दिनों भाषा की गिरावट देखी जा रही है जो कि ना केवल बोलने वाले बल्कि सुनने वालों के लिए भी नुकसानदायक है।

भाषा का चयन करते समय बहुत ध्यान रखना चाहिए। मीडिया को नकारात्मकता  से बचना चाहिए। उनका कहना था कि भारतीय मीडिया और पाश्चात्य मीडिया में यही अंतर है कि यहां किसी खबर के नकारात्मक पक्ष को  प्रमुखता से उभारा जाता है।  उन्होंने नई पीढ़ी के पत्रकारों को सलाह दी कि समाचारों में समाचार को महत्व दें।

 असत्य और भ्रामक बातों को फैलाने और अपने विचार डालने की कोशिश नहीं करें। न्यूज में व्यूज को जगह न दी जाये।  अपने संक्षिप्त और सारगर्भित अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने मीडिया की भाषाई गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा कि सरलता के नाम पर भाषा के स्तर से समझौता नहीं किया जा सकता। उसकी गरिमा और मर्यादा का तो ध्यान रखना ही होगा।  

उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया में जरूरत से ज्यादा भाषा का सरलीकरण किया  जा रहा है जो हमारे लिए नुकसानदेह है। भाषा में नए शब्द आते रहेंगे और आना चाहिए। लेकिन शब्दों का सम्मान बनाये रखना होगा।

आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्येश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परिसंवाद का उद्देश्य मीडिया की भाषा को अधिकाधिक बोधगम्य, सहज ग्राह्य और मन-मस्तिष्क को स्पर्श करने वाली बने। इस पर विचार मंथन करना है।

उनका कहना था कि साहित्य में तो आलोचना का शास्त्र है लेकिन पत्रकारिता में ऐसा कुछ नहीं है। ऐसे में इस तरह के आयोजन ही सहायक हो सकते हैं। शुरुआत में अतिथियों का स्वागत सूत की माला से किया गया।

कार्यक्रम का संचालन पत्रकार ममता यादव ने किया। अंत में वरिष्ठ पत्रकार पंकज पटेरिया का निधन होने पर  दो  मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पत्रकारिता के छात्र, प्राध्यापक एवं अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित थे।



कार्यक्रम में विगत परिसंवाद  ‘माधवराव सप्रे और उनका युग’  विषय पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।

 इनमें   प्रियंका पाण्डेय को प्रथम,  पुनीत सूर्यवंशी एवं प्रशांत पाराशर को द्वितीय तथा  शिवांक साहू एवं अंजली त्यागी को तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए। पुरस्कार के तहत नगद राशि तथा प्रमाण पत्र प्रदान किये गये।


कार्यक्रम में शहर की महापौर मालती राय को सम्मानित किया गया।

सम्मान के बारे में  संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने कहा  कि संग्रहालय की यहां तक की यात्रा में भोपाल नगर निगम का बड़ा योगदान रहा है। इसलिए यहां का जो भी महापौर होता है वह संग्रहालय के संरक्षक की तरह ही है। इसलिए उन्हें सम्मानित करना हमारा दायित्व है।

 



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