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26 साल बाद भाजपा ने फतेह की दिल्ली, आप को मिलीं 22 सीटें

राष्ट्रीय            Feb 08, 2025


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

इस विधानसभा चुनाव में बीते 10 साल से दिल्ली की सत्ता पर आसीन आम आदमी पार्टी (आप) का किला ढह गया है। 2020 के चुनाव में जहां पार्टी के 62 विधायक थे, अब उनकी संख्या घटकर 22 रह गई। वहीं आठ सीटों पर विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा को दिल्ली की जनता का खूब आशीर्वाद मिला। वहीं मिल्कीपुर उपचुनाव में भी भाजपा ने जीत हासिल कर फैजाबाद लोकसभा सीट पर हार का बदला ले लिया है।

राष्ट्रीय राजधानी में 26 साल बाद भाजपा ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। आम आदमी पार्टी (आप) का चौथी बार सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हुआ है। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया समेत कई दिग्गज चुनाव हार गए हैं। सीएम आतिशी भी बमुश्किल अपनी सीट बचा पाईं। कुछ बेहतर की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस की फिर दुर्गति हुई है और पार्टी का लगातार तीसरे चुनाव में खाता तक नहीं खुल पाया है। इसके साथ ही अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करिश्मा देखने को मिला। मिल्कीपुर उप चुनाव में सिपहसलारों की मदद से भाजपा को भारी मतों से जिताकर योगी ने कुशल संगठनकर्ता होना साबित किया है।

लगातार तीन बार सरकार बना चुकी आम आदमी पार्टी यहां जीत का चौंका लगाने के इरादे से चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन भाजपा ने चौंकाते हुए उसे सत्ता में आने से रोक दिया। दिल्ली की 70 सीटों पर 5 फरवरी को मतदान हुआ था। 14 में से 12 एग्जिट पोल्स में भाजपा की सरकार बनाने का अनुमान जताया गया था, जो सही साबित हुआ। भाजपा ने 48 सीटें जीतीं, जो पिछली बार उसकी जीती हुईं सीटों से 40 ज्यादा है। वहीं, आम आदमी पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ और वह 22 पर थम गई। जिस पार्टी के लिए नतीजे नहीं बदले, वो है कांग्रेस। दिल्ली के लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में वह खाता नहीं खोल पाई।

भाजपा ने मुखरता के साथ चुनाव लड़ा। शीशमहल, यमुना का पानी, शराब घोटाला और आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं को जेल जैसे मुद्दों पर पार्टी ने आम आदमी पार्टी को जमकर घेरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'आप' को 'आपदा' करार दिया। भाजपा ने मुफ्त की योजनाओं को भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया। यानी भाजपा ने आम आदमी पार्टी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जब नतीजे सामने आए तो भाजपा को 45.56% वोट मिले, जो 2020 के 38.7% वोट से ज्यादा थे। सबसे ज्यादा चर्चा प्रवेश साहिब सिंह वर्मा की रही, जिन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हरा दिया। उनके खिलाफ कांग्रेस से संदीप दीक्षित भी मैदान में थे।

शराब घोटाला मामले में खुद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व कमजोर हो गया। साथ ही शीशमहल और यमुना के पानी में जहर जैसे मुद्दों पर पार्टी घिर गई। पार्टी कुछ नेताओं के बगावती तेवरों को भी नहीं रोक सकी। नतीजा यह रहा कि केजरीवाल अपनी सीट नहीं बचा पाए। मनीष सिसोदिया इस बार पटपड़गंज की जगह जंगपुरा से मैदान में थे, लेकिन वे भी हार गए। सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन, राखी बिड़लान पहली बार चुनाव लड़ रहे अवध ओझा को भी हार का सामना करना पड़ा। बड़े नेताओं में सिर्फ निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी और मंत्री गोपाल राय अपनी सीट बचा सके।

इस चुनाव में ऐसा प्रतीत हुआ कि कांग्रेस अपनी जीत के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी को हरवाने के लिए मैदान में थी। उसने अहम सीटों पर सोच-समझकर उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस तो खाता नहीं खोल सकी, लेकिन 10 से ज्यादा सीटों पर उसने आम आदमी पार्टी को जीतने से रोक दिया। अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव मिलकर लड़ा होता तो भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती थीं। कांग्रेस के लिए भी नई दिल्ली सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न था, जहां से पूर्व सांसद संदीप दीक्षित मैदान में थे। उन्हें 4568 वोट मिले।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'शराब घोटाले ने दिल्ली को बदनाम किया। कोरोनाकाल में 'आप-दा' वाले शीशमहल बना रहे थे। उन्होंने घोटाले छिपाने के लिए साजिशें रचीं। हम पहले विधानसभा सत्र में सीएजी की रिपोर्ट सदन में रखेंगे। भ्रष्टाचार की जांच होगी। लूटने वालों को लौटाना होगा। ये मोदी की गारंटी है। दिल्ली के जनादेश से ये भी साफ है कि राजनीति में शॉर्टकट, झूठ-फरेब के लिए कोई जगह नहीं है। जनता ने शॉर्टकट वाली राजनीति का शॉर्ट सर्किट कर दिया।'

'हम जनता के फैसले को विनम्रता से स्वीकार करते हैं। मैं भाजपा को इस जीत के लिए बधाई देता हूं। मुझे उम्मीद है कि वे उन उम्मीदों पर खरे उतरेंगे, जिसके साथ लोगों ने उन्हें बहुमत दिया है। लोगों ने हमें जो 10 साल दिए, उसमें हमने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी आदि के क्षेत्र में काम किया। अब लोगों ने जो फैसला हमें दिया है, उसके साथ हम न केवल रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएंगे, बल्कि जनता की सेवा करते रहेंगे। मैं आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बहुत शानदार चुनाव लड़ने की बधाई देता हूं।'

राहुल गांधी ने कहा कि 'हम दिल्ली के जनादेश को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं। राज्य के सभी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उनके समर्पण और सभी मतदाताओं को उनके समर्थन के लिए हार्दिक धन्यवाद। हालांकि, कांग्रेस को दिल्ली में तीसरी बार चुनावी हार का सामना करना पड़ा और पार्टी 70 सदस्यीय विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत सकी। पार्टी ने प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में भी करारी हार झेली। इसके अलावा, कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली में कोई सीट नहीं जीती, जिसे उसने आप के साथ गठबंधन में लड़ा था।'

भाजपा से प्रवेश वर्मा, दुष्यंत गौतम और विजेंदर गुप्ता जैसे नामों की चर्चा है, जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। हालांकि, भाजपा की अन्य राज्यों के लिए रणनीति बताती है कि पार्टी किसी चौंका देने वाले नाम पर मुहर लगाती है। ऐसे में आने वाले दिनों में ही यह तय होगा कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? सरकार बनने के बाद शुरुआती फैसले क्या होते हैं, इस पर भी नजर रहेगी।

आम आदमी पार्टी के खेमे में इस पर फैसला होगा कि विधानसभा में विपक्ष का नेता कौन बनेगा। आतिशी और गोपाल राय इस पद के दावेदार हैं।

लोकसभा चुनाव में अयोध्या जिले की फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा को हार मिली। यहां से सपा के अवधेश प्रसाद जीते। अवधेश उस वक्त जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट से विधायक थे। उनकी जीत के मायने इस बात से समझे जा सकते हैं कि जीत के बाद सदन में अवधेश प्रसाद पहली पंक्ति में जगह मिली। अवधेश पार्टी अध्यक्ष अखिलेश के बगल में बैठते दिखाई दिए। इस चुनाव को भाजपा ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई मंत्री चुनाव प्रबंधन में लगे हुए थे। 

अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान ने सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद को 61,639 मतों से करारी शिकस्त दी है। 30वें व अंतिम राउंड की गिनती के बाद भाजपा प्रत्याशी को एक लाख 45 हजार 893 मत मिले जबकि सपा प्रत्याशी को 84 हजार 254 वोट मिले। इस तरह भाजपा प्रत्याशी की 61 हजार 639 मतों से बड़ी जीत हुई।

इस जीत के बाद भाजपा यह बताने की कोशिश करेगी कि अयोध्या में उसकी पकड़ अब भी मजबूत है। भले सुरक्षित सीट ही क्यों न हो। वहीं, समाजवादी पार्टी अपनी हार को चुनाव आयोग की अनदेखी और प्रशासन के दुरुपयोग से जोड़कर दिखाएगी।

 

 

 

 


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