श्रीश।
आधे साल का पूरा बजट देश की पहली महिला वित्त मंत्री ने पेश कर लोगों की परेशानी बढ़ा दी है। ख़ासकर डीज़ल पेट्रोल में आग लगा देने पर।
ऐसा प्राइमरी तौर मुझ जैसे बजट की सामान्य समझ रखने वाले को समझ आ गयी है। लेकिन दूसरी ओर देश के टेलीविजन पर वही परम्परागत ड्रामा जिसे देख—देख के हम सब ऊब चुके हैं देखना और झेलना पड़ रहा है।
सत्ता पक्ष इसमें सब कुछ शानदार जानदार देखने बताने पर तुला हुआ है कि बस इससे बेहतर कुछ न मुमकिन था। तो विपक्ष इसे देश को मामू बनाने वाला बोगस बजट बताकर बुक्का फाड़ रहा है।
मज़े की बात है क़ि यदि यही बजट कांग्रेस ने पेश किया होता हो तो दोनों की प्रतिक्रिया बस उलट होती।
यानि बजट ऐसे ही पेश किये जाते हैं और आगे भी किये जाते रहेंगे। एक तरफ ताली बजेगी तो दूसरी तरफ गाली।
चुनाव हो गया सरकार 5 साल के लिए पक्की बन चुकी है सो गला फाड़ो या बुक्का चीखो या सर पटको होना यही है 4 साल तक।
पांचवें वर्ष जरूर कुछ मुलायमियत नज़र आएगी वो 1 साल के लिए क़ि कैसे फिर बहलाया फुसलाया जाए।
टीवी चैनल जिधर से जुड़े हैं उस हिसाब से ढूंढ ढूंढ के अच्छाइयां उछाल रहे हैं तो जो उधर के पाले में हैं वे ढूंढ ढूंढ के कीड़े निकाल रहें है इस बजट में।
एक विचार
होना यह चाहिए क़ि सरकार के बजट पर विपक्ष को अपना एक प्रोक्सी बजट पेश करना चाहिए वो भी सरकारी कोष के आंकड़ों को समझकर। ताकि सिर्फ आलोचना हवा हवाई न होकर विपक्ष यह भी बता सके देश की जनता को क़ि यदि वे सत्ता में होते तो बजट से क्या क्या दम भर सकते थे। जब विपक्ष सरकार में कभी आता तो बेहतर बजट बनाने का अभ्यास भी बना रहता।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Comments