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कपास एमएसपी में बढ़ोतरी से घट सकता है रूई निर्यात : कपड़ा उद्योग

राष्ट्रीय            Jul 05, 2018


मल्हार मीडिया ब्यूरो।

केंद्र सरकार द्वारा कपास समेत 14 खरीफ फसलों के वर्ष 2018-19 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा के एक दिन बाद गुरुवार को देश के कपड़ा उद्योग ने कहा कि कपास के एमएसपी में भारी वृद्धि से रूई निर्यात प्रभावित होगा।

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने बुधवार को फसल वर्ष 2018-19 (जुलाई-जून) की खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में उत्पादन लागत पर 50 फीसदी लाभ के साथ वृद्धि की घोषणा की। समिति ने मीडियम स्टेपल कपास का एमएसपी 4,020 रुपये से बढ़ाकर 5,150 रुपये प्रति क्विं टल और लांग स्टेपल कपास का एमएसपी 4,320 रुपये प्रति क्विं टल से बढ़ाकर 5,450 रुपये कर दिया है।

भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सीआईटीआई) के अध्यक्ष संजय जैन ने कहा कि कपास (कॉटन) ऐसी नकदी फसल है जिसकी कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। इसलिए भारतीय रूई महंगी हो जाने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो सकती है।

उन्होंने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि विदेशी बाजार में दाम ऊंचे रहने पर भारतीय रूई की मांग बनी रहेगी जिसका फायदा उद्योग और किसान दोनों को मिलेगा। मगर, कपास या रूई की मौजूदा कीमतों से इसका आकलन नहीं किया जा सकता है। सीजन की शुरुआत में अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रूई की कीमतें ऊंची रहती हैं और डॉलर का भी सपोर्ट मिलता है, तो एमएसपी में वृद्धि से देसी उद्योग पर कोई असर नहीं पड़ेगा और निर्यात भी होगा। लेकिन, अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार या डॉलर का सपोर्ट नहीं मिलेगा तो एमएसपी वृद्धि का भारी असर पड़ेगा।"

जैन ने कहा कि ऐसी स्थिति में भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) पर कपास की खरीद का दबाव बढ़ जाएगा और देसी मिलें ऊंचे भाव पर कपास नहीं खरीदेंगी। चालू कपास सीजन में सीसीआई ने 12 लाख गांठ (170 किग्रा प्रति गांठ) कपास खरीदी है। सीसीआई एमएसपी पर कपास खरीदती है।

जैन ने कहा, "देसी उद्योग को अगर फायदा नहीं होगा तो वह भला घरेलू बाजार से रूई क्यों खरीदेगा। ऐसे में देश से रूई का निर्यात भी प्रभावित होगा।"

उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि एमएसपी मामले में भारत सरकार को चीन का अनुकरण करना चाहिए जहां एमएसपी और बाजार भाव का अंतर किसानों को सीधे अनुदान के तौर पर दिया जाता है।"

जैन की ही तरह वर्धमान टेक्सटाइल्स लिमिटेड के निदेशक (कच्चा माल) इंद्रजीत धूरिया का भी कहना है कि चीन का फॉमूर्ला अपनाने से सभी किसानों को फायदा होगा।

धूरिया ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "मध्य प्रदेश सरकार ने जो भावांतर स्कीम शुरू की थी, उसे अगर देशभर में लागू किया जाता तो वह ज्यादा व्यावहारिक होता।"

धूरिया ने कहा कि स्पिनर्स और जिनर्स को अगर देसी रूई में फायदा नहीं होगा तो वे आयात करेंगे। वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय रूई की कीमत ज्यादा होने से चीन, बांग्लादेश, म्यांमार या कोई अन्य आयातक देश भारत के बजाए अमेरिका, आस्ट्रेलिया और पश्चिमी अफ्रीकी देशों से रूई का आयात करेंगे।

हालांकि, कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अध्यक्ष अतुल गंतरा का कहना है कि वैश्विक मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने से कीमतों में तेजी बने रहने की संभावना है। अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो भारतीय किसानों को कपास की अच्छी कीमत मिल सकती है।

कपास का रकबा चालू बिजाई सीजन में पिछले साल से 30 फीसदी कम है। 28 जून 2018 तक देशभर में 32.2 लाख हेक्टेयर में कपास की बिजाई हुई है जबकि समान अवधि में पिछले साल 46.10 लाख हेक्टेयर में कपास की बिजाई हो चुकी थी। कपास के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र मध्य भारत में पिछले साल के मुकाबले तकरीबन 50 फीसदी रकबा कम है। जानकारों के अनुसार रकबा कम होने की वजह पानी की कमी और किसानों की कम दिलचस्पी हो सकती है। मगर आगे ज्यादा एमएसपी मिलने की उम्मीद में कपास की खेती में किसानों की दिलचस्पी बढ़ सकती है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, वर्ष 2017-18 में देश में कॉटन का उत्पादन 365 लाख गांठ रहने का अनुमान है और पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक 36 लाख गांठ जबकि 15 लाख गांठ आयात होने की संभावना है। इस प्रकार कुल आपूर्ति 416 लाख गांठ हो सकती है। वहीं मिलों की खपत 324 लाख गांठ और निर्यात 70 लाख गांठ होने पर बचा हुआ स्टॉक 22 लाख गांठ 2018-19 के लिए रहेगा।



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